फुटबॉल की मौत का मातम…
राजेंद्र सजवान
प्रधानमंत्री जी/खेलमंत्री जी
इसमें कोई दो राय नहीं है कि सरकार देश के खेलों और खिलाड़ियों को बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। खिलाड़ियों को पर्याप्त सुविधाएं मिल रही है लेकिन कुछ खेलों में हमारे खिलाड़ी देश का नाम खराब करने वाला प्रदर्शन कर रहे हैं, जिनमें फुटबॉल पहले नंबर पर है।
यह सही है कि जब ओलम्पिक गेम्स में भारतीय खिलाड़ी रिकॉर्डतोड़ प्रदर्शन करते हैं, क्रिकेट में जीत का डंका बजाते हैं तो हर भारतीय का सीना 56-58 इंच का हो जाता है लेकिन दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेल में हम पिछले पचास सालों से लगातार नीचे लुढ़क रहे हैं। जिस फुटबॉल में भारत ने कभी ओलम्पिक में नाम कमाया, दो एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक जीते और जिसने दर्जनों विख्यात खिलाड़ी पैदा किए उसकी हालत साल दर साल, मैच दर मैच खराब हो रही है। गिरते प्रदर्शन के चलते अपना भारत महान फीफी रैंकिंग में 133वें स्थान पर पहुंच गया है, जो कि दुनिया की सबसे बड़ी आबादी और सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए बड़े शर्म की बात है।
यह सही है कि हार-जीत खेल का हिस्सा है लेकिन फुटबॉल हम सिर्फ हारने के लिए खेल रहे हैं। पिछला मैच कब जीते थे, शायद ही किसी को याद होगा। अफसोस इस बात है कि हम फीफा वर्ल्ड रैंकिंग के महाफिसड्डी देशों से भी हार रहे हैं। मसलन बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल, थाईलैंड, हॉन्गकॉन्ग और अन्य हमें जब चाहे पटखनी दे डालते हैं। एएफसी कप में हुई हार से फुटबॉल प्रेमी बेहद दुखी हैं और यहां तक मांग कर रहे हैं कि भारत में फुटबॉल पर प्रतिबंध लगाया जाए या तब तक टीम को खेलने ना दिया जाए जब तक मैच विजेता खिलाड़ी टीम में शामिल न हों।
हाल के शर्मनाक प्रदर्शन के बाद मांग की जा रही है कि ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ) अध्यक्ष कल्याण चौबे को तुरंत पदमुक्त किया जाए, विदेशी कोचों पर करोड़ों रुपये बर्बाद न किए जाए और राष्ट्रीय टीम को ‘ब्लू टाइगर्स’ कहना बंद कर दिया जाए। यह भी मांग की जा रही है कि सरकार एक कमेटी का गठन करके कल्याण चौबे एंड कंपनी के खातों की जांच करें, टीम के चयन मे होने वाली धांधली को जांचा जाए और कुछ बूढ़े खिलाड़ियों को टीम से बाहर किया जाए। पानी सिर से ऊपर हो गया है, जिसमें भारतीय फुटबॉल मान-सम्मान पूरी तरह डूब चुका है। जाहिर है देश का नाम भी खराब हो रहा है।