बजट की बचत, यह कैसा कल्याण?
- राज्य सभा में सरकारी प्रतिनिधि द्वारा जो स्पष्टीकरण दिया गया उसके अनुसार फुटबॉल, मुक्केबाजी, तीरंदाजी और नौकायन फेडरेशन ने 2024-25 के लिए अलॉट बजट का आधा भी खर्च नहीं किया
- सरकारी आंकड़ों के अनुसार, फुटबॉल (एआईएफएफ) को 8.78 करोड़ रुपये अलॉट किए गए थे, जिनमें से फुटबॉल डेवलपमेंट पर 4.38 करोड़ खर्च किए गए
- फुटबॉल के चाहने वाले, पूर्व खिलाड़ी और कोच अपनी फेडरेशन के उदासीन रवैये से खफा हैं क्योंकि सवाल यह है कि एक तरफ तो एआईएफएफ सुविधाओं का रोना रोता है तो दूसरी तरफ सरकारी भीख का संपूर्ण और सही उपयोग नहीं किया गया
- फेडरेशन खुद को पाक-साफ और पैसा बचाऊ साबित करना चाहता है, जबकि दूसरी तरफ एआईएफएफ पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं
- अध्यक्ष कल्याण चौबे खुद उनके करीबियों और फेडरेशन सदस्यों को कटघरे में खड़ा किया जा चुका है, क्योंकि उनकी घुसपैठ के बाद से भारतीय फुटबॉल लगातार बर्बाद हुई है और 133वें रैंक तक लुढ़क गई है
राजेंद्र सजवान
अक्सर देखा गया है कि जब कभी भारतीय खेलों के पिछड़ेपन और बदहाली की चर्चा होती है तो देश के तमाम खेल फेडरेशन अपने भ्रष्टाचार और लूट-खसोट को दरकिनार करके सरकार पर पलटवार करते हैं। सारा दोष सरकारी मशीनरी और खेल नीति पर मढ़ दिया जाता है। खेल मंत्रालय और भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) को भर-भर कर गालियां दी जाती हैं। आरोप लगाया जाता है कि खेल बजट ऊंट के मुंह में जीरा समान है तो फिर खेल क्या तरक्की करेंगे?
अब मुद्दे पर आते हैं और पूरे देश को बताते हैं कि राज्य सभा में सरकारी प्रतिनिधि द्वारा जो स्पष्टीकरण दिया गया उसके अनुसार फुटबॉल, मुक्केबाजी, तीरंदाजी और नौकायन फेडरेशन ने 2024-25 के लिए अलॉट बजट का आधा भी खर्च नहीं किया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, फुटबॉल (फेडरेशन) को 8.78 करोड़ रुपये अलॉट किए गए थे, जिनमें से फुटबॉल डेवलपमेंट पर 4.38 करोड़ खर्च किए गए। जहां तक मुक्केबाजी, तीरंदाजी और नौकायन की बात है तो इन खेलों का प्रदर्शन लगातार गिर रहा है, जिस कारण से फेडरेशन, खिलाड़ियों और खेल प्रेमियों ने कोई आवाज नहीं उठाई। दूसरी तरफ, भारतीय फुटबॉल लगभग मर चुकी है लेकिन फुटबॉल क्योंकि पूरी दुनिया का प्रिय खेल है इसलिए फुटबॉल के चाहने वाले, पूर्व खिलाड़ी और कोच अपनी फेडरेशन एआईएफएफ के उदासीन रवैये से खफा हैं। यह पूछा जा रहा है कि एक तरफ तो फेडरेशन सुविधाओं का रोना रोता है तो दूसरी तरफ सरकारी भीख का संपूर्ण और सही उपयोग नहीं किया गया। ऐसा क्यों?
क्या फेडरेशन खुद को पाक-साफ और पैसा बचाऊ साबित करना चाहता है, जबकि दूसरी तरफ एआईएफएफ पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं। अध्यक्ष कल्याण चौबे खुद उनके करीबियों और फेडरेशन सदस्यों द्वारा कटघरे में खड़ा किया जा चुका है। इसलिए क्योंकि उनकी घुसपैठ के बाद से भारतीय फुटबॉल लगातार बर्बाद हुई है और 133वें रैंक तक लुढ़क गई है। आरोप यह है कि बजट का बड़ा हिस्सा चौबे एंड कंपनी पर खर्च किया जाता है। फुटबॉल डेवलपमेंट के नाम पर किए गए खर्च को लेकर भी उंगलियां उठाई जा रही हैं। भारतीय फुटबॉल की बदहाली को देखते हुए यहां तक मांग की जाने लगी है कि फेडरेशन को उसके हाल पर छोड़ दिया जाए। सरकार बेहद घटिया प्रदर्शन के बावजूद फुटबॉल को गले लगा रही है। आईएसएल और आई-लीग बर्बादी की कगार पर हैं तो चौबे साहब फुटबॉल का यह कैसा कल्याण कर रहे हैं? (जारी)