भारतीय फुटबॉल: लौट के बुद्धू घर को आए!
- एक के बाद एक हार के चलते फीफा रैकिंग में लगातार गिरावट के बाद नए कोच की तलाश में शुरू हो गई हैं
- भारतीय टीम के खराब प्रदर्शन के कारण स्पेनिश कोच मैनोलो मार्कुएज की विदाई हो गई
- (एआईएफएफ) की माने तो 170 कोचों ने भारतीय टीम का कोच बनने के लिए आवेदन किए थे और तीन नाम दौड़ में रह गए हैं
- इंग्लिश कोच स्टीफन कांस्टेटाइन, भारतीय कोच खालिद जमिल हैं और स्लोवेकियाई कोच स्टीफेन तारकोविच में से कौन कोच बनेगा यह फेडरेशन को तय करना है
- विदेशी कोच के साथ जुगलबंदी का सिलसिला पिछले कई दशकों से चल रहा है लेकिन पंचर फुटबॉल है कि सुधरने का नाम ही नहीं लेती क्योंकि बीमारी जड़ों को लगी है लेकिन ग्रासरूट फुटबॉल पर किसी का ध्यान नहीं है
राजेंद्र सजवान
भारतीय फुटबॉल ने साबित कर दिया है कि फुटबॉल की दुनिया वाकई गोल है। इसलिए क्योंकि भारतीय फुटबॉल ने जहां से अभियान शुरू किया था वहीं लुढ़कती नजर आ रही है। फीफा रैकिंग में लगातार गिर रहे हैं और अब कोचिंग में खामियां बताकर नए कोच की तलाश में जुट गए हैं। यह सिलसिला पिछले कई दशकों से चल रहा है लेकिन पंचर फुटबॉल है कि सुधरने का नाम ही नहीं लेती। बीमारी जड़ों को लगी है लेकिन ग्रासरूट फुटबॉल पर किसी का ध्यान नहीं है।
पिछले कोच मैनोलो मार्कुएज के इस्तीफे के बाद से नए कोच की तलाश जारी है। ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ) की माने तो 170 कोचों ने भारतीय टीम का कोच बनने के लिए आवेदन किए थे। सूत्रों की माने तो काट-छांट के बाद अब तीन नाम दौड़ में रह गए हैं, जिनमे पहला नाम इंग्लिश कोच स्टीफन कांस्टेटाइन है। दूसरे भारतीय कोच खालिद जमिल हैं और तीसरे हैं स्लोवेकियाई स्टीफेन तारकोविच। कौन कोच बनेगा यह फेडरेशन को तय करना है। लेकिन यदि कांस्टेटाइन को फिर से दायत्व सौंपा जाता है तो फेडरेशन की जग-हंसाई हो सकती है, क्योंकि श्रीमानजी पहले भी यह दायत्व निभा चुके हैं। जहां तक खालिद को कोच बनाने की बात है तो एआईएफएफ को ताना दिया जाएगा कि तमाम विदेशी कोचों के फ्लॉप होने के बाद लौट के बुद्धू घर को आ रहे हैं। दशकों बाद अपने कोच की याद आई है। तीसरे कोच तारकोविच हैं, जिनकी आजमाइश बाकी है।
हैरानी वाली बात यह है कि भारतीय टीम लगातार हार रही है और उसकी फीफा रैकिंग गिर रही है लेकिन फेडरेशन और उसके सलाहकारों ने शायद ही कभी समस्या की जड़ में घुसने की कोशिश की होगी। फीफा रैकिंग में हम 133वें हैं और लगातार गिरने का सिलसिला जारी है। लेकिन क्या एकबार फिर कोच बदलने से हम जग जीत जाएंगे? जानकारों की माने तो देश कि फुटबॉल को चलाने वाले पगला गए हैं। बौखलाहट में अनाप-शनाप निर्णय ले रहे हैं। उन्हें समस्या की जड़ नजर नहीं आ रही। ग्रास रूट फुटबॉल को सुधारने कि बजाय धूल में लट्ठ चला रहे हैं। नतीजा सामने है। फुटबॉल जगत में भारत की थू-थू हो रही है। लानत ऐसी फुटबॉल को!