भारतीय हॉकी: क्या सचमुच घोड़ों को खच्चर तैयार कर रहे हैं?
- एफआईएच प्रो-लीग में भारतीय महिला और पुरुष टीमों ने जैसा प्रदर्शन किया उसे देखकर हॉकी इंडिया, एफआईएच व आआईओए के पूर्व अध्यक्ष नरेन्द्र बत्रा हैरान हैं
- बत्रा ने अपने कॉलम में हॉकी टीमों के प्रदर्शन चिंता व्यक्त करते हुए ऐसी बहुत सी खामियों को उजागर कर किया है, जिन्हें सुधारे बिना हॉकी का भला नहीं हो सकता
राजेंद्र सजवान
भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय हॉकी के शीर्ष पदों पर रहे और भारतीय हॉकी को नई दिशा देने वाले नरेन्द्र ध्रुव बत्रा को लगता है कि भारतीय हॉकी ट्रैक से उतर गई है और गलत दिशा में बढ़ रही है। हाल ही में उन्होंने अपने एक कॉलम में चिंता व्यक्त करते हुए ऐसी बहुत सी खामियों को उजागर कर किया है, जिन्हें सुधारे बिना हॉकी का भला नहीं हो सकता। खासकर, अच्छे और बेहतर रिकॉर्ड वाले कोच और दूरदर्शी सोच वाले एक्सपर्टस की जरूरत पर उन्होंने जोर दिया है। वे नहीं चाहते कि खच्चरों को घोड़ों को सिखाने-पढ़ाने की जिम्मेदारी सौंपी जाए लेकिन ऐसा हो रहा है।
इसमें दो राय नहीं कि भारतीय हॉकी फेडरेशन (आईएचएफ) की केंचुली उतारकर बत्रा ने हॉकी को नई दिशा दिखाई, भारतीय ओलम्पिक संघ (आईओए) और एफआईएच के अध्यक्ष भी बने। तत्पश्चात उनके नेतृत्व में हॉकी इंडिया लीग का आयोजन और अन्य कई प्रयोग किए गए, जिसका नतीजा देर से ही सही, दो ओलम्पिक कांस्य के रूप में सामने आया। लेकिन हाल ही में महिला और पुरुष खिलाड़ियों का दयनीय प्रदर्शन चिंता का विषय बन गया है। एफआईएच प्रो-लीग में महिला और पुरुष टीमों ने जैसा प्रदर्शन किया उसे देखते हुए न सिर्फ नरेन्द्र बत्रा हैरान हैं बल्कि तमाम हॉकी प्रेमी और हॉकी जानकार कह रहे हैं कि हमारी हॉकी गलत और कमजोर हाथों पड़ गई है। लेकिन ऐसा क्यों हो रहा है? क्यों लगातार दो ओलम्पिक खेलों में रजत पदक जीतने वाले देश में मैच विजेता खिलाड़ियों का अकाल पड़ गया है? क्यों रक्षा, आक्रमण, पेनल्टी कॉर्नर और गोल जमाने की कलाकारी में हमारे खिलाड़ी असहज नजर आते हैं? क्यों आसान मौकों पर गोल नहीं कर पा रहे और क्यों एक टीम के रूप में नजर नहीं आते?
बेशके, भारतीय हॉकी का हाल का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। खराब प्रदर्शन पर हॉकी फेडरेशन की चुप्पी से आलोचकों के मुंह खुल गए हैं। कोई कह रह है कि टीम में एकजुटता की कमी है तो अन्य को लगता है कि हॉकी इंडिया के शीर्ष पदाधिकारियों के आपसी मतभेद टीम के चयन में बाधक बन रहे हैं। कुछ पूर्व खिलाड़ियों के अनुसार टीम का चयन श्रेष्ठता के आधार पर नहीं किया जा रहा जिसका नतीजा सामने है। शायद इसीलिए डॉक्टर बत्रा ने कहा कि घोड़ों को खच्चर तैयार कर रहे हैं।