लौट के बुद्धू (फेडरेशन) घर आया!
- एआईएफएफ ने खालिद जमील को भारतीय फुटबॉल टीम का नया कोच बना दिया है और इस प्रकार पिछले कई सप्ताह से चल रहे लो वोल्टेज ड्रामे पर पूर्ण विराम लग गया है
- कुवैत में जन्में खालिद पिछले दो सालों से भारत के श्रेष्ठ कोच होने का सम्मान पा चुके हैं लेकिन उनकी असली परीक्षा होनी बाकी है
- 13 सालों के बाद किसी भारतीय को राष्ट्रीय टीम का दायित्व सौंपा गया है
- 2011-12 में सेवियो मिरांडा भारतीय राष्ट्रीय टीम के कोच थे और तत्पश्चात लगातार विदेशी कोच भारतीय फुटबॉल से खेलते रहे
- देखते हैं कि लुटी-पिटी फिसड्डी टीम और आरोपों से घिरी एआईएफएफ के साथ खालिद की कैसी पटती है
राजेंद्र सजवान
देर से सही भारतीय फुटबॉल के ठेकेदारों ने अंतत: विदेशी कोच का मोह त्याग कर अपने कोच को राष्ट्रीय सीनियर टीम को सिखाने-पढ़ाने की जिम्मेदारी सौंपने का फैसला किया है और खालिद जमील को नया कोच बना दिया है। इस प्रकार पिछले कई सप्ताह से चल रहे लो वोल्टेज ड्रामे पर पूर्ण विराम लग गया है। ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ) सूत्रों के अनुसार, अध्यक्ष कल्याण चौबे, उपाध्यक्ष एनए हैरिस, निमल घोष, अरमांडो कोलासो, शाबिर अली, साबिर पाशा, सुब्रतो पॉल जैसे नामों द्वारा हरी झंडी दिखाए जाने के बाद खालिद जमील का रास्ता साफ हुआ है। इस दौड़ में दो विदेशी कोच स्टीफन कॉन्स्टेंटाइन और स्टेफान तारकोविच भी शामिल थे। लेकिन सालों बाद किसी भारतीय को राष्ट्रीय टीम का दायित्व सौंपा गया है।
दर्जन भर विदेशी कोचों को आजमाने और करोड़ों बहाने के बाद देश की फुटबॉल फेडरेशन को 13 साल बाद अपने कोच का ख्याल आना हैरानी वाला निर्णय है। तकनीकी समिति के चेयरपर्सन और जाने-माने खिलाड़ी रहे आईएम विजयन ने भारतीय कोचों सुखविंदर सिंह और सैयद नईमुद्दीन के कार्यकाल की न सिर्फ प्रशंसा की अपितु यह भी कहा कि खालिद उनके नक्शेकदम पर चलकर देश की फुटबॉल को पटरी पर ला सकता है। अब यह तो वक्त ही बताएगा कि अपने कोच की देखरेख में भारतीय फुटबॉल क्या गुल खिलाती है लेकिन देर से ही सही लौट कर बुद्धू वापस घर आ गया है। अब देखना यह होगा कि देश की पंचर फुटबॉल अपने हेड कोच की देखरेख में क्या कमाल करती है। 48वर्षीय खालिद जमील का नाम तब सुर्खियों में आया जब 2017 में आइजोल एफसी ने उनकी देखरेख में आई-लीग खिताब जीता था। फिलहाल, वह जमशेदपुर एफसी से जुड़े हैं।
2011-12 में सेवियो मिरांडा भारतीय राष्ट्रीय टीम के कोच थे। तत्पश्चात लगातार विदेशी कोच भारतीय फुटबॉल से खेलते रहे। कुवैत में जन्में खालिद पिछले दो सालों से भारत के श्रेष्ठ कोच होने का सम्मान पा चुके हैं। लेकिन असली परीक्षा होनी बाकी है। देखते हैं कि लुटी-पिटी फिसड्डी टीम और आरोपों से घिरी एआईएफएफ के साथ उनकी कैसी पटती है।