सुब्रतो फुटबॉल: कहां गुम हो जाते हैं प्रतिभावान खिलाड़ी?
- आयोजकों का दावा है कि उनका टूर्नामेंट देश के स्कूली खिलाड़ियों का एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जहां से निकलकर वे अच्छा फुटबॉलर बनने की दिशा में तेज कदम बढ़ा सकते हैं
- लेकिन भारतीय पुरुष टीम के खराब प्रदर्शन के मद्देनजर अक्सर यह सवाल पूछा जाता है कि सुब्रतो कप के आयोजन से भारतीय फुटबॉल को क्या मिला?
- इसमें कोई शक नहीं है कि सुब्रतो कप में भाग लेकर कई खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय टीम तक का सफर तय किया लेकिन 133वें फीफा रैकिंग वाली फुटबॉल लगातार पिछड़ रही है
- सुब्रतो कप में भाग लेने वाले बहुत से खिलाड़ी सीनियर स्तर तक पहुंचते-पहुंचते कहां गायब हो जाते हैं?
राजेंद्र सजवान
भारतीय वायुसेना की मेजबानी में सुब्रतो मुखर्जी फुटबॉल टूर्नामेंट अपने 64वें संस्करण में दाखिल हो गया है। इस बार देश के 106 चैंपियन स्कूल ख़िताबी होड़ में शामिल हैं। इसमें दो राय नहीं कि भारतीय वायुसेना ग्रासरूट स्तर पर खेल को प्रोमोट करने के लिए बड़ा योगदान दे रही है लेकिन अक्सर यह सवाल पूछा जाता है कि सुब्रतो कप के आयोजन से भारतीय फुटबॉल को क्या मिला? पुरुष टीम के खराब प्रदर्शन को लेकर सुब्रतो फुटबॉल के लिए आयोजित संवाददाता सम्मेलन में पत्रकारों द्वारा ऐसे सवाल अक्सर पूछ लिए जाते हैं।
आयोजकों का दावा है कि उनका टूर्नामेंट देश के स्कूली खिलाड़ियों का एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जहां से निकलकर वे अच्छा फुटबॉलर बनने की दिशा में तेज कदम बढ़ा सकते हैं। लेकिन अंडर 15 व 17 के आयोजनों से भारतीय फुटबॉल का क्या और कैसे भला हो सकता है? यह सवाल बार बार और लगातार पूछा जाता रहा है।
बालकों के आयोजन 15 और 17 साल के आयुवर्ग में तय हैं, जबकि बालिकाओं को 17 साल के वर्ग में खेलने का मौका मिलता है। हालांकि सुब्रतो फुटबॉल टूर्नामेंट सोसाइटी अपने दम पर आयोजन करती है और तमाम खर्च भी उठाती है, लेकिन रिजल्ट कहां है? इस बारे में एयर मार्शल एस. शिवाकुमार कहते हैं कि भारतीय वायुसेना और सुब्रतो सोसाइटी का काम देश भर के उभरते खिलाड़ियों को एक बैनर के नीचे प्लेटफार्म देना है और इस उदेश्य को पाने में उन्हें सफलता मिली है।
इसमें कोई शक नहीं है कि सुब्रतो कप में भाग लेकर कई खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय टीम तक का सफर तय किया लेकिन 133वें फीफा रैकिंग वाली फुटबॉल लगातार पिछड़ रही है। चूंकि सुब्रतो कप में देश के तमाम प्रतिभावान खिलाड़ी भाग लेते हैं ऐसे में सवाल यह बनता है कि सुब्रतो कप में भाग लेने वाले खिलाड़ी सीनियर स्तर तक पहुंचते-पहुंचते कहां गायब हो जाते हैं? बेशक, सुब्रतो कप में भाग लेने वाले दर्जनों खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय टीम को सेवाएं दीं। बाईचुंग भूटिया और सुनील क्षेत्री जैसे खिलाड़ी सुब्रतो कप में चमक बिखेर कर राष्ट्रीय टीम तक पहुंचे लेकिन भारतीय फुटबॉल का स्तर नहीं सुधर पाया। लड़कों के मुकाबले लड़कियां बेहतर जरूर कर रही हैं। लेकिन सुब्रतो फुटबॉल टूर्नामेंट सोसाइटी के प्रयासों का फल अभी आना बाकी है। फुटबॉल जानकारों की माने तो सुब्रतो टूर्नामेंट के बाद खिलाड़ियों को भुला दिया जाता है या ज्यादातर खिलाड़ी गुमनामी में खो जाते हैं।