हॉकी मांगे मोर!
राजेंद्र सजवान
लगातार दो ओलम्पिक खेलों में कांस्य पदक जीतने के बाद से भारतीय हॉकी से देशवासियों की उम्मीदें बढ़ गई हैं। जाहिर है कि खिलाड़ियों के हौसले बुलंद हैं और अच्छे और स्तरीय खिलाड़ी राष्ट्रीय टीम से जुड़ रहे हैं। लेकिन इसका यह मतलब कदापि नहीं है कि भारतीय हॉकी अपने स्वर्णिम युग की तरफ सरपट दौड़ने लगी है। इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि हम अगले ओलम्पिक या विश्व कप के पदक विजेताओं में शुमार हो जाएंगे।
ऐसा इसलिए माना जा रहा है, क्योंकि हम विश्व रैंकिंग में फिलहाल पांचवें स्थान पर है और कुल प्रदर्शन के आधार पर नीदरलैंड, बेल्जियम, इंग्लैंड और जर्मनी भारत से बेहतर स्थिति में हैं। लेकिन इसके यह मायने नहीं है कि रैंकिंग में बेहतर टीमें ही विश्व विजेता बनती हैं या ओलम्पिक स्वर्ण जीत ले जाती हैं। फिलहाल ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना और स्पेन भारत से पिछड़े हैं लेकिन ऑस्ट्रेलिया ऐसी टीम है जो कि भारतीय हॉकी के लिए हमेशा बड़ा खौफ रही है। अर्जेंटीना, स्पेन, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड और कुछ अन्य टीमें भी कभी भी अप्रत्याशित परिणाम निकालने में माहिर हैं। यह ना भूले कि ऑस्ट्रेलिया भले ही रैंकिंग में थोड़ा पीछे चल रही है लेकिन कंगारुओं ने अनेकों बार भारत को बुरी तरह पीटा है और कभी भी फॉर्म में लौट सकते हैं।
हालांकि भारतीय हॉकी में हर तरफ अमन चैन है और हॉकी इंडिया एशियाड, ओलम्पिक और विश्व कप में खिताब जीतने या श्रेष्ठ प्रदर्शन का लक्ष्य लेकर चल रही है। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि हमें वर्ल्ड कप जीते 50 साल हो गए हैं और ओलम्पिक में 45 साल पहले विजेता बने थे। यदि आने वाले दो-तीन सालों में फिर से शीर्ष पर चिन्ह लग सकता है। हल्की-फुल्की कामयाबी से भारतीय हॉकी प्रेमी कदापि संतुष्ट नहीं होने वाले।