- कहा, ये राष्ट्रीय खेल हॉकी भारत की धरोहर है, क्योंकि हॉकी ने 1928, 1932, 1936 में ओलम्पिक गोल्ड मेडल जीतकर भारत का नाम व सम्मान पूरी दुनिया में किया, जब हम गुलाम थे और राजा-रजवाड़ों, नवाबों, जागीरदारों में बंटे हुए थे
- पूर्व हॉकी स्टार ने युवा खिलाड़ियों को प्रेरित करते हुए कहा, आज इन बच्चों को ब्रॉन्ज को सिल्वर में, सिल्वर को गोल्ड में तब्दील करना है, वे ऐसा कर सकते हैं क्योंकि कोई काम असंभव नहीं है इस दुनिया में। जो कुछ भी आप सीखते हैं उसको मैदान पर आजमाना है और निर्णायक अवसरों पर अपने नर्वस सिस्टम पर काबू रखना है, जो ऐसा कर लेता है वो ही विजेता बनता है
अजय नैथानी
नई दिल्ली। “बाप के नाम का अवार्ड बेटे को मिले, मैं समझता हूं इससे बढ़कर कुछ नहीं हो सकता है,” यह शब्द पूर्व हॉकी दिग्गज अशोक कुमार ने हॉकी इंडिया मेजर ध्यानचंद लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार पाने के बाद कहे। इस अवार्ड के लिए खुद को चुने जाने से अचंभित अशोक कुमार को इस सम्मान की उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी और वह अपने पिता के नाम के पुरस्कार की पर्ची में अपना नाम पाकर हक्का-बक्का रह गए।
इस अवार्ड को पाने के बाद अशोक ध्यानचंद ने विचार व्यक्त करते हुए कहा, “यह अवार्ड रूह-आत्मा को सुकून देने वाला है, क्योंकि हॉकी इंडिया और भारतीय खेल संघ द्वारा मेरे उस योगदान को सराहा गया है। मेरी सबसे बढ़कर अनुभूति, फीलिंग या कहे अहसास है कि मेरे पिता जी के नाम का यह अवार्ड जो मुझे मिला है यह मेरे लिए सर्वोपरि है, यह मेरे लिए अमूल्यवान चीज है कि उस हॉकी की बदौलत मेजर ध्यानचंद जी के नाम का अवार्ड मेरे कुछ कार्यों के लिए मिला है, जो मैंने देश के लिए किए हैं। इसके लिए हॉकी इंडिया का तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूं।”
हॉकी जादूगर के बेटे ने आगे कहा, “हॉकी इंडिया ने आज मुझे बहुत बड़ा सरप्राइज दिया है। उम्मीद नहीं थी कि यह अवार्ड मुझे मिलेगा। क्योंकि अपने पिता के नाम के इस अवार्ड को मैं उन खिलाड़ियों को देने समारोह में आया करता था, जिन्होंने भारतीय हॉकी की सेवा की। पर्चा खोलकर उस नाम के खिलाड़ी को दिया करता था, जिसका नाम उसमें रहता था। लेकिन आज जब मैंने पर्चा खोला, तो उसमें मेरा ही नाम था। मेरी अवाज, मेरे शब्द अटक गए और मैं उसको पढ़ नहीं सका, हक्का-बक्का रह गया। मुझे विश्वास नहीं हुआ, क्योंकि समारोह में कई बड़े खिलाड़ी मौजूद थे, जो इस अवार्ड के लिए डिजर्व करते हैं और उनको हॉकी इंडिया द्वारा रिकॉगनाइजेशन मिलना चाहिए। ऐसे में मेरे लिए तो बड़ी अजीब सी स्थिति हो गई थी। आप इसे समझ इस सकते हैं।”
समारोह के दौरान बने हॉकीमय माहौल पर उन्होंने कहा, “ये राष्ट्रीय खेल हॉकी भारत की धरोहर है। हॉकी ने भारत का नाम व सम्मान पूरी दुनिया में किया है। जब हम गुलाम थे, तब हॉकी ने 1928, 1932, 1936 में ओलम्पिक गोल्ड मेडल भारत को दिए। उस समय हमारा गुलाम देश राजा-रजवाड़ों, नवाबों, जागीरदारों में बंटा हुआ था। ऐसे में हॉकी ने सभी को भारतीय कहलाने का गौरव दिया। उस समय लोग यह कहा करते थे कि हम भारतीय हॉकी को देखने जा रहे हैं। मैं समझता हूं कि यह हॉकी की देन है, जिसने बिना किसी भेदभाव के पूरे देश को एकसूत्र में पिरोया। यह हॉकी की सबसे बड़ी उपलब्धि थी।”
ओलम्पिक साल में भारतीय हॉकी की स्थिति पर पूर्व खिलाड़ी ने कहा, “मैं दस साल देश के लिए हॉकी खेला हूं। इस दौरान जब मैं एशियाड में सिल्वर-ब्रॉन्ज मेडल और ओलम्पिक के अंदर सिल्वर-ब्रॉन्ज मेडल लाता था तो मेरे बाबू जी बहुत डांटते थे और मैंने डर कर उनको अपने मेडल कभी दिखाए भी नहीं। वे खिलाड़ी गोल्ड मेडल लाने वाले थे, आज तो हॉकी में बहुत सुविधाएं बढ़ गई हैं लेकिन उस जमाने में जब खिलाड़ी अपने आप से खेलता था। तब खिलाड़ी बेहद कम सहूलियत के अपने फ्री-टाइम में सीखो, आगे बढ़ो और देश के लिए खेलो। तब खेलना बेहद मुश्किल था। इस दौर में जब बाबू जी की बातें मेरे लिए सीख थी, वह कहते थे कि पूर्व खिलाड़ी भारत में सोना लाते थे और तुम लोग सिल्वर-ब्रॉन्ज मेडल ला रहे हो। उनको बहुत दुख होता था इस बात का।”
युवा खिलाड़ियों को प्रेरित करते हुए अपने खेल के दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा, “अब मैं चाहूंगा कि आने वाले ओलम्पिक में भारतीय खिलाड़ी गोल्ड मेडल जीत कर आएं, जिससे हम चूक गए थे। जिस रेपोटेशन को हम हासिल नहीं कर पाए, आज की जनरेशन ध्यानचंद और कैप्टन रूप सिंह के सपने को पूरा करे। ध्यानचंद और उस पीढ़ी ग्वालियर वाले केडी सिंह बाबू, किशन दादा, बलबीर सिंह, उधम सिंह ये वो नाम हैं, जिन्होंने हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। इन से प्रेरित होकर मौजूदा खिलाड़ी हॉकी इंडिया के समारोह से जो माहौल बना है, उसे अपने सीने में जब्ज करके यह इरादा बनाए कि मुझे अगली बार भी अवार्ड लेना है, तो उसके लिए गोल्ड मेडल जीतना है। इसके लिए ज्यादा कुछ नहीं करना है, बस अंदर के जुनून को मैदान पर उतरना है और खेलना है। निश्चित रूप से हमारी टीम जीतकर आएगी।”
पूर्व हॉकी स्टार अशोक ध्यानचंद ने आगे कहा, “भारत की हॉकी जिसने आज तक हमारे देश को आठ ओलम्पिक गोल्ड और वर्ल्ड कप जीता कर दिए हैं। इसमें सरदार बलबीर सिंह, उधम सिंह साहब, कैप्टान रूप सिंह, हेम लाल शर्मा, केडी सिंह बाबू जैसे दिग्गज हॉकी खिलाड़ियों का खून-पसीना शामिल है। आज ये जो युवा बच्चे सामने बैठे हैं, उनको ब्रॉन्ज को सिल्वर में, सिल्वर को गोल्ड में तब्दील करना है। वे ऐसा कर सकते हैं। कोई काम असंभव नहीं है इस दुनिया में। जो कुछ भी आप सीखते हैं उसको मैदान पर निकालना है और निर्णायक अवसरों पर अपने नर्वस सिस्टम पर काबू रखना है, जो ऐसा कर लेता है वो ही विजेता बनता है। आप लोगों को अपनी जीत और हार से दोनों का ही विश्लेषण करना है कि आप जीते तो क्यों जीते और हारे तो उसके पीछे क्या वजह रही। आपको अपना विश्लेषण खुद से करना है, ना कि कोई दूसरा करे। हॉकी इंडिया ने अच्छे कोच समेत तमाम सुविधाएं आपको दी है और अब आपकी ड्यूटी बनती है कि अपना समय बर्बाद न करें, आप अपना काम इस सही ढंग से अंजाम दें और किसी तरह की ढिलाई न बरते। अगर आप ऐसा करते हैं तो हम आगामी ओलम्पिक जीत सकते हैं।”
अशोक कुमार के करियर की कुछ मुख्य बातें इस प्रकार हैं:-
• 1975 विश्व कप स्वर्ण पदक विजेता भारतीय टीम के सदस्य
• 1972 म्यूनिख ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय टीम के सदस्य
• 1971 बार्सिलोना विश्व कप में कांस्य पदक भारतीय टीम का भी हिस्सा
• 1973 विश्व कप में रजत पदक जीतने वाली भारतीय टीम का भी हिस्सा
• 1974 अर्जुन पुरस्कार विजेता
• 2024 में हॉकी इंडिया मेजर ध्यानचंद लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार विजेता