- एआईकेएफ द्वारा राष्ट्रीय चैम्पियनशिप का आयोजन बताता है कि खेल के उत्थान को लेकर गम्भीरता की कमी अब भी बरकरार है
- कुछ विरोधी गुटों के आयोजकों पर गंभीर आरोप के बावजूद छह साल से बड़े खिलाड़ियों का उत्साह, खेल के प्रति उनका समर्पण, उनकी फिटनेस और विशेषकर माता-पिता का जुड़ाव दर्शनीय लगा
- एआईकेएफ कराटे की सबसे पुरानी और मान्यता प्राप्त संस्था है जिसे तोड़ मरोड़ कर कई संस्थाएं बनाई गईं और उन्होंने अपने अपने तरीके से खेल को लूटा
- एक अनुमान के अनुसार देश में हर रोज कोई न कोई कराटे चैम्पियनशिप आयोजित की जाती है और आयोजक दोनों हाथों से कमाते हैं तो खिलाड़ियों एवं अभिभावकों को भी कोई मलाल नहीं होता है
- एआईकेएफ की राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में भाग लेने वाले खिलाड़ियों और उनके अभिभावकों में से ज्यादातर ने कराटे में कभी सुधार की उम्मीद छोड़ दी है
राजेंद्र सजवान
कोर्ट के निर्देशानुसार देश के खेल मंत्रालय ने सबसे लोकप्रिय मार्शल आर्ट्स खेल कराटे को पटरी पर लाने और लुटेरों से बचाने के लिए कड़े और सराहनीय कदम उठाने का फैसला किया है। हाल ही में राजधानी के इंदिरा गांधी स्टेडियम में आयोजित दो दिवसीय ट्रायल द्वारा एशियाई खेलों की टीम का चयन किए जाने को लेकर कराटे में उम्मीद और उत्साह का माहौल देखने को मिला। फिलहाल खिलाड़ियों का प्रदर्शन भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) की फाइलों में बंद है और उम्मीद की जा रही है कि चीन में होने जा रहे एशियाड में भारतीय खिलाड़ी भाग ले पाएंगे।
उम्मीद और उत्साह के चलते कराटे की गुटबाजी पर विराम लगता नजर आ रहा है लेकिन साई की देखरेख में आयोजित ट्रायल के दो दिन बाद ही तालकटोरा स्टेडियम में एआईकेएफ द्वारा राष्ट्रीय चैम्पियनशिप का आयोजन बताता है कि खेल के उत्थान को लेकर गम्भीरता की कमी अब भी बरकरार है। हालांकि आयोजक कह रहे हैं कि तथाकथित राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में आठ सौ के लगभग कराटेबाजों ने हाथ आजमाए लेकिन स्टेडियम का खचाखच भरा होना संख्या को दोगुना करता है। भले ही कुछ विरोधी गुटों ने आयोजकों पर गंभीर आरोप लगाए लेकिन छह साल से बड़े खिलाड़ियों का उत्साह, खेल के प्रति उनका समर्पण, उनकी फिटनेस और विशेषकर माता-पिता का जुड़ाव दर्शनीय लगा।
खिलाड़ी और उनके मां-बाप जानते हैं कि दो-तीन हजार की फीस देकर उनके बच्चे को सौ रुपए का मेडल थमाया जाएगा, उन्हें यह भी पता है कि इस खेल में कोई भविष्य नहीं है, फिर भी वे इसलिए जुड़े हुए हैं क्योंकि उनके बच्चे की इच्छा है और उसके स्कूल का दबाव भी होता है। दूसरा पहलू यह है कि ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों को सेल्फ डिफेंस का पाठ पढ़ाना चाहते हैं। खासकर देश के बिगड़ते माहौल में बालिकाओं को आज बचाव के तौर-तरीके सीखने जरूरी हैं। कुछ अभिभावक कहते हैं कि भले ही अन्य खेलों में मान-सम्मान, पैसा और मेडल मिलते हैं लेकिन उनका खेल बच्चों को फिट और तन्दुरुस्त बनाता है।
चूंकि कराटे की तरफ बच्चे और उनके माता-पिता खिंचे चले आते हैं और भागीदारी में यह खेल क्रिकेट से भी आगे है, इसलिए कराटे एक कला के रूप में लगातार लोकप्रिय हो रहा है। एआईकेएफ कराटे की सबसे पुरानी और मान्यता प्राप्त संस्था है जिसे तोड़ मरोड़ कर कई संस्थाएं बनाई गईं, जिन्होंने अपने अपने तरीके से खेल को लूटा। एक अनुमान के अनुसार देश में हर रोज कोई न कोई कराटे चैम्पियनशिप आयोजित की जाती है, अर्थात साल में 365 से भी ज्यादा आयोजन होते हैं। आयोजक दोनों हाथों से कमाते हैं तो खिलाड़ियों और अभिभावकों को भी कोई मलाल नहीं।
एआईकेएफ की राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में भाग लेने वाले खिलाड़ियों और उनके अभिभावकों से बात करने पर पता चला कि ज्यादातर ने उम्मीद छोड़ दी है। उन्हें नहीं लगता कि कराटे में कभी सुधार हो पाएगा।