कुश्ती गुरु स्वर्गीय गुरु हनुमान का उनके शिष्यों के बीच द्रोणाचार्य की तरह सम्मान है
चाहे गुरु का जन्मदिन हो या फिर पुण्य तिथि उनके शिष्य तन, मन और धन से गुरु को याद करते हैं
ऐसा कोई दूसरा उदाहरण शायद ही कहीं मिले
15 मार्च को गुरु जी के 123वें जन्मदिन पर उनके शिष्यों ने हर साल की तरह अपने गुरु को याद किया
उनकी याद में गुरु हनुमान बिड़ला व्यायामशाला में हर साल की तरह हवन, लंगर का आयोजन किया गया
इसमें अखाड़े के पहलवानों, गुरु खलीफाओं, कुश्ती प्रेमियों और अन्य ने बढ़-चढ़कर योगदान दिया
राजेंद्र सजवान
भले ही द्रोणाचार्य को भारतीय इतिहास का श्रेष्ठतम गुरु का सम्मान प्राप्त है लेकिन भारतीय खेल इतिहास में जिस गुरु की सबसे ज्यादा पूजा अर्चना की जाती है, जिसे उसके शिष्य हमेशा के लिए श्रेष्ठ मानते आए हैं वह निश्चित तौर पर कुश्ती गुरु स्वर्गीय गुरु हनुमान ही हो सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि गुरु का जन्मदिन हो या पुण्य तिथि उनके शिष्य तन, मन और धन से गुरु को याद करते हैं। ऐसा कोई दूसरा उदाहरण शायद ही कहीं मिले।
15 मार्च को गुरु जी के 123वें जन्मदिन पर उनके शिष्यों ने हर साल की तरह अपने गुरु को याद किया। उनकी याद में गुरु हनुमान बिड़ला व्यायामशाला में हर साल की तरह हवन, लंगर का आयोजन किया गया, जिसके लिए अखाड़े के पहलवानों, गुरु खलीफाओं, कुश्ती प्रेमियों और अन्य ने बढ़ चढ़कर योगदान दिया। ऐसा इसलिए क्योंकि जिस अखाड़े को गुरु हनुमान ने अपने खून पसीने से सींचा, जिसकी सेवा में पूरा जीवन लगा दिया उसके प्रति लाभार्थियों का भी कोई कर्तव्य तो बनता है।
भले ही आज गुरु हनुमान अखाड़े की चमक कुछ फीकी पड़ गई है और अब इस अखाड़े से चैम्पियन पहलवान बहुत कम निकल पा रहे हैं लेकिन एक जमाना वह भी था जब ओलम्पिक, एशियाड और विश्व चैम्पियनशिप में भाग लेने वाले भारतीय दल में हनुमान अखाड़े के पहलवानों की संख्या अधिकाधिक होती थी। इसलिए क्योंकि उनके अखाड़े का नाम था और हर पहलवानी का शौकीन माता-पिता अपने बेटे को गुरु हनुमान के सुपुर्द कर खुद को धन्य मान लेता था।
बेशक, गुरु हनुमान और उनका अखाड़ा विश्व प्रसिद्ध हुए। एक से एक धुरंधर पहलवान उनकी चरणों की धूल का तिलक लगाकर चैम्पियन बने। कुश्ती जानकार कभी भी नहीं समझ पाए कि अनपढ़ और साधनहीन विजय पाल कैसे खलीफा से कुश्ती गुरु और फिर गुरु द्रोणाचार्य बना। कैसे उसने बीसवीं सदी के चार स्वर्णिम दशकों में भारतीय कुश्ती का डंका बजाया। भले ही उनका कोई शिष्य ओलम्पिक पदक नहीं जीत पाया लेकिन भारतीय कुश्ती की बुनियाद को मजबूत करने का ऐतिहासिक काम उनके द्वारा संपन्न हो चुका था। तत्पश्चात उनके शिष्यों और उनके बाद की पीढ़ी ने भारतीय कुश्ती को वहां पहुंचाया जहां गुरु हनुमान देखना चाहते थे।
यह सही है कि अन्य खेलों में भी कई श्रेष्ठ गुरु और कोच हुए लेकिन शायद ही कोई और भारतीय खेल होगा जिसने देश को ढेरों अर्जुन अवॉर्ड, ध्यान चंद अवार्ड, खेल रत्न, पद्मश्री, और द्रोणाचार्य दिलाए हों। यही कारण है कि गुरु हनुमान को गुरु श्रेष्ठ और महान गुरु माना जाता है। हजारों पहलवानों को कुश्ती ज्ञान देने वाले इस महान संत को करीब से देखने परखने के बाद यह निष्कर्ष निकला है कि गुरु हनुमान के सामने द्रोणाचार्य का कद भी छोटा लगता है।