- पिछली बार के उप-विजेता गढ़वाल हीरोज ने इस बार अपना लीग अभियान खिताबी जीत के साथ समाप्त किया
- वाटिका ने पिछली बार डीएसए को मोटी धनराशि देकर सीधे प्रीमियर लीग में एंट्री मारी और खिताबी जीत के साथ बड़ा धमाका किया लेकिन वो इस बार तीसरे स्थान रही
- रॉयल रेंजर्स ने इस बार उप-विजेता की ट्रॉफी जीती और उसकी कामयाबी में कोच पैरी की बड़ी भूमिका रही
- दिल्ली एफसी ने सात मैचों में सात खिलाड़ी उतारकर और वॉकओवर देकर जो तमाशेबाजी की, ऐसा उदाहरण विश्व फुटबॉल में कहीं देखने को मिलेगा
- इस प्रकरण में पता नहीं दोष किसका है, लेकिन यह ‘काले अध्याय’ के रूप में राजधानी की फुटबॉल में दर्ज हो चुका है
- रिजवान-उल-हक, हरगोपाल, नईम और राजेश जझारिया की आयोजन समिति ने अपना रोल बखूबी निभाया
- ग्राउंड की अनुपलब्धता के कारण बार-बार मैच स्थलों में बदलाव स्थानीय इकाई की विफलता मानी जाएगी
- शनिवार और रविवार को मैच नहीं खेले गए, जो कि फुटबॉल के प्रसार के साथ मजाक है, क्योंकि छुट्टी के दिन ही आधिकतर फुटबॉल प्रेमी उपस्थित रहते हैं
राजेंद्र सजवान
साल 2022-23 की पहली दिल्ली प्रीमियर लीग में राजधानी के जाने-माने क्लब गढ़वाल हीरोज ने उप-विजेता का सम्मान पाया था और इस बार गढ़वाल ने अपना लीग अभियान खिताबी जीत के साथ समाप्त किया है। बेशक, टीम प्रबंधन, खिलाड़ी, कोच और तमाम स्टाफ साधुवाद के पात्र है।
अब बात करते हैं राजधानी की फुटबॉल में एक अनजान क्लब वाटिका की, जिसका स्थानीय फुटबॉल से कोई लेना-देना नहीं था। दिल्ली सॉकर एसोसिएशन (डीएसए) को मोटी धनराशि देकर वाटिका ने सीधे प्रीमियर लीग में एंट्री मारी और खुद को साबित भी किया। लाखों के क्लब ने खिताबी जीत के साथ बड़ा धमाका कर डाला। वाटिका को दिल्ली की फुटबॉल में नई क्रांति के रूप में देखा गया। टीम के कोच कुलभूषण, जो कि खुद भी बेहतरीन खिलाड़ी रहे हैं। रातों-रात बड़े कद का मालिक हो गए। लेकिन वर्ष 2023-24 की प्रीमियर लीग में वाटिका पहले से तीसरे स्थान पर फिसल गई जबकि उप-विजेता का मिला रॉयल रेंजर्स को, जिसकी कामयाबी में कोच पैरी की बड़ी भूमिका रही।
जहां तक वाटिका की बात है, तो उसे अपनी गिरेबां में झांकने की जरूरत है। क्यों एक टॉप क्लब अचानक ध्वस्त होता नजर आया? शुरुआती मुकाबलों बहुत कुछ ठीक-ठाक चल रहा था लेकिन अंत में गढ़वाल और रॉयल रेंजर्स के हाथों हुई पिटाई दुखदाई रही। शायद खिलाड़ियों की अनुशासनहीनता और अहंकार टीम को ले डूबा। बाकी टीमों की बात करें तो सीआईएसएफ प्रोटेक्टर्स, फ्रेंड्स यूनाइटेड और सुदेवा ने संतुलित प्रदर्शन किया। इन टीमों ने कुछ हैरान करने वाले रिजल्ट दिए लेकिन राजधानी के जाने-माने क्लब दिल्ली एफसी के कारण स्थानीय फुटबॉल एसोसिएशन और उसकी आयोजन समिति उपहास की पात्र बनी।
दिल्ली एफसी ने सात मैचों में सात खिलाड़ी उतारकर और वॉकओवर देकर जो तमाशेबाजी की, ऐसा उदाहरण विश्व फुटबॉल में कहीं देखने को मिलेगा। क्लब के अनुसार डीएसए ने उन्हें धोखे में रखा। पता नहीं दोष किसका है, लेकिन यह प्रकरण ‘काले अध्याय’ के रूप में राजधानी की फुटबॉल में दर्ज हो चुका है।
जहां तक आयोजन की बात है तो रिजवान-उल-हक, हरगोपाल, नईम और राजेश जझारिया की आयोजन समिति ने अपना रोल बखूबी निभाया। सभी मैच समय के अनुरूप रहे लेकिन ग्राउंड की अनुपलब्धता के कारण बार-बार मैच स्थलों में बदलाव स्थानीय इकाई की विफलता मानी जाएगी। खासकर शनिवार और रविवार को मैच नहीं खेले गए, जो कि फुटबॉल के प्रसार के साथ मजाक है, क्योंकि छुट्टी के दिन ही आधिकाधिक फुटबॉल प्रेमी उपस्थित रहते हैं।