- कई बड़े फेरबदल करने वाली मौजूदा सरकार यदि ध्यानचंद को मरणोपरांत भारत रत्न दे सके तो उसकी कीर्ति में चार चांद लग सकते हैं, वैसे भी वो पिछली सरकारों की गलती सुधार रही है और हो सके तो एक और बड़ी भूल सुधार कर ले
- दुर्भाग्यवश, देश की सरकारों और खेलों के ठेकेदारों ने कभी भी ध्यानचंद और उनके भाई रूप सिंह की उपलब्धियों को गंभीरता से नहीं लिया
- यह ना भूलें कि हॉकी के जादूगर ध्यानचंद का कद क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर से बहुत बड़ा था लेकिन सचिन भारत रत्न पा गए लेकिन दद्दा की जीते जी पूछ नहीं हुई
- अगर एक गुलाम देश का कोई खिलाड़ी किसी भी क्षेत्र विशेष में देश को बुलंदियों पर पहुंचाता है तो यह उपलब्धि अभूतपूर्व कही जाएगी
- कहा जाता है कि ध्यानचंद की कलाकारी देखने के लिए जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर भी पहुंचा था और उनकी हॉकी जादूगरी से गद-गद हुआ था
राजेंद्र सजवान
इसमें कोई दो राय नहीं है कि मेजर ध्यानचंद ना सिर्फ भारतीय अपितु विश्व हॉकी के सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी रहे हैं। भले ही उनके करिश्मों की कहानी आजादी के पूर्व की है लेकिन एक गुलाम देश का कोई खिलाड़ी किसी भी क्षेत्र विशेष में बुलंदियों को छूता है तो यह उपलब्धि अभूतपूर्व कही जाएगी। दुर्भाग्यवश, देश की सरकारों और खेलों के ठेकेदारों ने कभी भी ध्यानचंद और उनके भाई रूप सिंह की उपलब्धियों को गंभीरता से नहीं लिया। नतीजा सामने है, आज भारतीय हॉकी अपना अस्तित्व बचाने के लिए छटपटा रही है।
ध्यानचंद, रूप सिंह और दर्जनों अन्य चैम्पियनों ने भारतीय हॉकी को तब विश्व विजेता बनाया, जब भारतीय खिलाड़ियों के पास पहनने के लिए अच्छे जूते और खेलने के लिए हॉकी स्टिक नहीं थी। लेकिन कहा जाता है कि ध्यानचंद की कलाकारी देखने के लिए जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर भी पहुंचा था और उनकी हॉकी जादूगरी से गद-गद हुआ था। लेकिन भारत महान के शासकों ने उन्हें कोई बड़ा सम्मान नहीं दिया। क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर भारत रत्न पा गए लेकिन दद्दा ध्यानचंद की जीते जी पूछ नहीं हुई।
पिछले चालीस सालों से जब तब ध्यानचंद को भारत रत्न दिए जाने की मांग उठती रही है। उनके सुपुत्र व पिता की तरह हॉकी जादूगरी के उस्ताद अशोक कुमार और उनके चाहने वालों ने अनेकों बार ध्यानचंद को सम्मान दिए जाने की मांग की लेकिन सरकारों के कान में जूं तक नहीं रेंगी। हैरानी वाली बात यह है कि ध्यानचंद के नाम पर तमाम राष्ट्रीय खेल अवार्डों का नामकरण कर दिया गया है। पहले इन पुरस्कारों के साथ पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का नाम जुड़ा था। इतना बड़ा फेरबदल करने वाली सरकार यदि ध्यानचंद को मरणोपरांत भारत रत्न दे सके तो उसकी कीर्ति में चार चांद लग सकते हैं। फिलहाल सही मौका है। यह ना भूलें कि ध्यानचंद का कद सचिन से बहुत बड़ा था। यूं भी सरकार पिछली सरकारों की गलती सुधार रही है। हो सके तो एक और बड़ी भूल सुधार कर ले।