फुटबॉलर सावधान! करियर बर्बाद हो सकता है

  • एआईएफएफ मान चुका है कि भारतीय फुटबॉल में फिक्सिंग और सट्टेबाजी का गोरख धंधा चल रहा है, इसलिए आईएसएल, आई-लीग, स्टेट लीग और तमाम आयोजनों में खलबली का माहौल है
  • जहां तक फेडरेशन की बता है उसका भ्रष्टाचार दासमुंशी, पटेल से होता हुआ चौबे तक आ पहुंचा है
  • आई-लीग और स्थानीय लीग में खेलने वाले खिलाड़ी और क्लबों में से कुछ मानते हैं कि असामाजिक तत्व दिल्ली की फुटबॉल में भी घुसपैठ कर चुके हैं
  • नए और डरे-सहमें खिलाड़ी असमंजस में हैं और उन्हें पता है कि जरा सी चूक उनका करियर बर्बाद कर सकती है
  • ले-देकर खिलाड़ियों और क्लब संचालकों को अपने विवेक से काम लेने की जरूरत है, क्योंकि जरा सी चूक, थोड़ा सा लालच उनका का भविष्य बर्बाद कर सकते हैं और उनको आपको बचाने कोई नहीं आएगा

राजेंद्र सजवान

खेलों में मैच फिक्सिंग और सट्टेबाजी का खेल नया नहीं है। सालों से क्रिकेट और फुटबॉल जैसे लोकप्रिय खेलों में फिक्सिंग और सट्टेबाजी के धुरंधर खिलाड़ी जौहर दिखाते आ रहे हैं। बेशक, इस खेल का ओर-छोर पाना आसान नहीं है। लेकिन कुछ एक अवसरों पर अपराध में लिप्त खिलाड़ी, क्लब और टीम एवं प्रशासकों को दंडित किया जा चुका है। जहां तक फुटबॉल की बात है तो स्पेन, ब्राजील, अर्जेंटीना, इंग्लैंड, नीदरलैंड, डेनमार्क आदि कई देशों में खिलाड़ियों और क्लबों को आजीवन प्रतिबंध झेलना पड़ा है और अब भारतीय भी रडार पर हैं।

 

  चूंकि अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) मान चुका है कि भारतीय फुटबॉल में फिक्सिंग और सट्टेबाजी का गोरख धंधा चल रहा है, इसलिए आईएसएल, आई-लीग, स्टेट लीग और तमाम आयोजनों में खलबली का माहौल है। फिक्सिंग में लिप्त खिलाड़ियों, क्लबों, मैच अधिकारियों और दलालों से ज्यादा चिंतित वे खिलाड़ी हैं जिनका इस खेल से कोई लेना-देना नहीं है।

   इस संवाददाता ने दिल्ली, बंगाल, हरियाणा, पंजाब, मणिपुर, मिजोरम, उत्तराखंड, यूपी आदि प्रदेशों के कुछ खिलाड़ियों से संपर्क किया तो यह पाया कि भारतीय फुटबॉल में खौफ का माहौल है। नए और डरे-सहमें खिलाड़ी असमंजस में हैं। उन्हें पता है कि जरा सी चूक उनका करियर बर्बाद कर सकती है। उन्हें लाइफ बैन का सामना करना पड़ सकता है। क्लब अधिकारी जान चुके हैं जिस क्लब को उन्होंने सालों साल सजाया संवारा है, उसका अस्तित्व मिट सकता है।

 

  आई-लीग और स्थानीय लीग में खेलने वाले खिलाड़ी और क्लबों में से कुछ मानते हैं कि असामाजिक तत्व दिल्ली की फुटबॉल में भी घुसपैठ कर चुके हैं। लेकिन कौन, कैसे और किसके साथ खेल रहा है, फिक्सिंग और सट्टेबाजी के खिलंदड़ बेहतर जानते हैं। यह तक कहा जा रहा है कि मैचों के नतीजे उनके इशारों पर तय हो रहे हैं। लेकिन पक्के प्रमाण नहीं है। इसलिए दावे के साथ किसी पर उंगली नहीं उठाई जा सकती है।

   ले-देकर खिलाड़ियों और क्लब संचालकों को अपने विवेक से काम लेने की जरूरत है। जरा सी चूक, थोड़ा सा लालच और रातों-रात लाखों कमाने की भूख खिलाड़ियों का भविष्य बर्बाद कर सकते हैं। उभरते खिलाड़ी गांठ बांध लें कि आपको बचाने कोई नहीं आएगा। जहां तक फेडरेशन की बता है उसका भ्रष्टाचार दासमुंशी, पटेल से होता हुआ चौबे तक आ पहुंचा है। चूंकि फेडरेशन में दम नहीं है इसलिए भुगतना फुटबॉल को पड़ेगा।    

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