एआईएफएफ अध्यक्ष कल्याण चौबे और महासचिव शाजी प्रभाकरन ने एक लुभावनी घोषणा करके वाह-वाह लूटी है
उन्होंने भारतीय फुटबॉल की दशा और दिशा को बदलने के लिए 2047 तक का रोड मैप तैयार कर लिया है
दावा किया जा रहा है कि तब तक भारत एशिया की पहली चार टीमों में स्थान बना लेगा
लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि भारतीय फुटबॉल क्या अगले पच्चीस सालों में वहां तक पहुंच पाएगी जहां जापान, कोरिया, सऊदी अरब समेत दर्जन भर एशियाई देश पहले से ही विराजमान हैं?
भारत में फुटबॉल को करीब से देखने परखने वालों को लगता है कि दावे करना और शगूफे छोड़ने का चलन पुराना है
पूर्व अध्यक्षों जियाउद्दीन, दास मुंशी और प्रफुल्ल पटेल ने अपनी कुर्सी इसी अंदाज से बचाई और तब तक कुर्सी नहीं छोड़ी जब तक फुटबॉल की पूरी हवा नहीं निकल गई
राजेंद्र सजवान
अखिल भारतीय फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ) का अध्यक्ष पद संभालने के तुरंत बाद अध्यक्ष कल्याण चौबे और महासचिव शाजी प्रभाकरन ने एक लुभावनी घोषणा करते हुए जहां एक ओर अपने प्रशंसकों की वाह-वाह लूटी है तो दूसरी तरफ उन्हें शेखचिल्ली भी कहा जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि फेडरेशन के बड़ों ने भारतीय फुटबॉल की दशा और दिशा को बदलने के लिए 2047 तक का रोड मैप तैयार कर लिया है और दावा किया जा रहा है कि तब तक भारत एशिया की पहली चार टीमों में स्थान बना लेगा। अर्थात जो काम पिछले सौ सालों में नहीं हुआ वह अगले पचीस सालों में होने जा रहा है।
बेशक, एआईएफएफ की महत्वाकांक्षा काबिले तारीफ है, जिसके लिए बाकायदा प्रयास भी शुरू कर दिए गए हैं। शुरुआत हमेशा ग्रासरूट लेवल से करनी चाहिए और यह बात फेडरेशन की समझ में आ गई है। स्कूल कॉलेज और छोटी उम्र के लड़के और लड़कियों को फुटबॉल से जोड़ा जा रहा है। कल्याण चौबे और शाजी चाहते हैं कि फुटबॉल को देश में लोकप्रिय बनाया जाए ताकि अधिकाधिक बच्चे और खिलाड़ी इस खेल को अपने करियर के रूप में अपना लें और आने वाले सालों में खेलने वाले बढ़ें और खेल का स्तर ऊंचाई तक पहुंचे।
लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि भारतीय फुटबॉल क्या अगले पच्चीस सालों में वहां तक पहुंच पाएगी जहां जापान, कोरिया, सऊदी अरब, कुवैत, ईरान, उत्तर कोरिया और दर्जन भर अन्य देश पहले से ही विराजमान हैं? जो लोग भारत में फुटबॉल की हालत से वाकिफ हैं उन्हें नहीं लगता कि पहले चार में स्थान बनाना इतना आसान होने जा रहा है, क्योंकि भारतीय फुटबॉल को सबसे पहले पिछले पचास सालों के नुकसान की भरपाई करनी है, जिसमें वर्षों लग सकते हैं। एशिया के कुछ एक देश ऐसे भी हैं जो कि यूरोप और लैटिन अमेरिका के किसी भी चैम्पियन को धूल चटा सकते हैं और आने वाले सालों में उनकी ताकत और क्षमता का सहजता से अनुमान लगाया जा सकता है।
भारत में फुटबॉल को करीब से देखने परखने वालों को लगता है कि दावे करना और शगूफे छोड़ने का चलन पुराना है। पूर्व अध्यक्षों जियाउद्दीन, दास मुंशी और प्रफुल्ल पटेल ने अपनी कुर्सी इसी अंदाज से बचाई और तब तक कुर्सी नहीं छोड़ी जब तक फुटबॉल की पूरी हवा नहीं निकल गई। लेकिन वर्तमान अध्यक्ष के पक्ष में एक बड़ी बात यह जाती है कि चौबे और उनकी टीम अभी युवा हैं और अच्छी फुटबॉल भी खेले हैं। लेकिन लक्ष्य कठिन है और यदि नई टीम के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है तो कोई बड़ा चमत्कार ही भारत को विश्व फुटबॉल मानचित्र पर स्थान दिला सकता है।
कुछ पूर्व खिलाड़ियों और कोचों के अनुसार, एआईएफएफ की वर्तमान टीम को चार साल बिल्कुल छेड़ा नहीं जाना चाहिए, तत्पश्चात ही भविष्य की तस्वीर का अनुमान लगाया जा सकता है। लेकिन आलोचक कह रहे हैं कि दावे करने में क्या जाता है। पूर्व पदाधिकारियों का क्या बिगाड़ लिया? लेकिन एक वर्ग है जो कि अब भी उम्मीद लगाए बैठा है और यह मानता है कि कुछ ना कुछ बेहतर होने जा रहा है।