- भारतीय कुश्ती के युग पुरुष पद्मश्री द्रोणाचार्य गुरु हनुमान अपनी जीत पक्की समझ बैठे थे लेकिन उन्हें मात्र तीन वोट मिले और बुरी तरह हार गए
- देश के महान बैडमिंटन खिलाड़ी प्रकाश पादुकोण को भी बीएआई चुनावों में कुछ इसी प्रकार की स्थिति का सामना करना पड़ा था
- हाल फिलहाल कुश्ती फेडरेशन के चुनाव में जैसी राजनीति देखने को मिल रही है, उसे लेकर सत्ता के गलियारों और खेल हलकों में यह चर्चा जोरों पर है कि खेल हमेशा राजनीति के गुलाम रहेंगे
- ताजा उदाहरण कुश्ती फेडरेशन के चुनाव हैं, जिनमें निवर्तमान विवादास्पद अध्यक्ष और सांसद बृज भूषण शरण सिंह के करीबी, सरकार और आईओए प्रतिनिधि सीधे-सीधे भाग ले रहे हैं
- यह बात अलग है कि सरकार कोई बड़ी चाल चल जाए और आईओए की तरह कुश्ती भी उसकी जेबी फेडरेशन बन जाए
राजेंद्र सजवान
बात अप्रैल 1997 की है। जयपुर में भारतीय कुश्ती फेडरेशन के चुनाव थे। अध्यक्ष पद के लिए जीएस मंडेर के सामने भारतीय कुश्ती के युग पुरुष पद्म श्री द्रोणाचार्य गुरु हनुमान खड़े थे, जिनके कई शिष्य विभिन्न प्रदेशों से वोट पाने और वोट देने के लिए पहुंचे थे। गुरु हनुमान अपनी जीत पक्की समझ बैठे थे लेकिन उन्हें मात्र तीन वोट मिले और बुरी तरह हार गए। मीडिया ने उनकी एकतरफा जीत का संकेत दे दिया था, क्योंकि हर कोई गुरु हनुमान के नाम की माला जप रहा था।
लेकिन यह पहली घटना नहीं है। देश के महान बैडमिंटन खिलाड़ी प्रकाश पादुकोण को भी बीएआई चुनावों में कुछ इसी प्रकार की स्थिति का सामना करना पड़ा था। उन्हें भी बड़े दुख और सदमे के साथ बैडमिंटन की राजनीति से हटना पड़ा था। हाल फिलहाल कुश्ती फेडरेशन के चुनाव में जैसी राजनीति देखने को मिल रही है, उसे लेकर सत्ता के गलियारों और खेल हलकों में यह चर्चा जोरों पर है कि खेल हमेशा राजनीति के गुलाम रहेंगे। कुछ तो यहां तक कह रहे हैं कि बिना राजनीति के खेल हो ही नहीं सकते। ताजा उदाहरण कुश्ती फेडरेशन के चुनाव हैं, जिनमें निवर्तमान विवादास्पद अध्यक्ष और सांसद बृज भूषण शरण सिंह के करीबी, सरकार और आईओए प्रतिनिधि सीधे-सीधे भाग ले रहे हैं।
भले ही बृज भूषण के नाते रिश्तेदार चुनाव नहीं लड़ रहे लेकिन यह तय माना जा रहा है कि जीत उसी की होगी जो नेता जी का चहेता होगा। यह बात अलग है कि सरकार कोई बड़ी चाल चल जाए और आईओए की तरह कुश्ती भी उसकी जेबी फेडरेशन बन जाए। लेकिन इस प्रकार के विवाद एक-दो खेलों में नहीं हैं। देश के अधिकांश खेल गंदी राजनीति और गुटबाजी में फंस कर रह गए हैं। कुश्ती इसलिए चर्चा में है क्योंकि महिला पहलवानों ने अपने अध्यक्ष पर यौन शोषण के आरोप लगाए हैं।
पिछले कुछ सालों में भारतीय खेलों में गंदी राजनीति का प्रवेश जोर शोर से हुआ है। नेता और उनके बेटे क्रिकेट से फुटबाल तक घुसपैठ कर चुके हैं। इतना ही नहीं उडन परी पीटी ऊषा का आईओए अध्यक्ष बनना भी बड़ी राजनीतिक घटना माना जा रहा है। कुल मिला कर कल तक जो लोग खेलों को राजनीति और राजनेताओं से दूर रखने की बात करते थे मौन हो गए हैं!
एशियाई खेलों में भाग लेने वाले खिलाड़ियों के साथ उनके खेल संघ जैसा व्यवहार कर रहे हैं उसे लेकर हर तरफ असंतोष व्याप्त है। खेल संघ दो से ज्यादा धड़ों में बंटे हैं और अधिकारी अपनी सुविधा और स्वार्थ के चलते नियमों से खेलकर खिलाड़ियों का भविष्य बर्बाद कर रहे हैं। दूसरी तरफ सरकारी प्रतिनिधि और आईओए चैन की बंसी बजा रहे हैं। आगामी एशियाड में भाग लेने वाले कई खेलों की भागीदारी अधर में लटकी है और फेडरेशन की गुटबाजी के कारण खिलाड़ी कोर्ट कचहरी की शरण ले रहे हैं।