- भारतीय महिला हॉकी की विदेशी कोच जेनेक शॉपमैन का आरोप, “भारत में महिलाओं की कद्र नहीं है”
- रांची में हॉकी प्रेमियों का दिल तोड़ देने वाले प्रदर्शन के बाद भारतीय महिला टीम की खराब फॉर्म भुवनेश्वर एफआईएच प्रो-लीग में भी जारी है
- भले ही प्रो लीग में कुछ मैच जीते लेकिन ओलम्पिक खेलने का मौका हाथ से फिसल जाने के बाद लकीर पीटने से कोई फायदा नहीं है
- टोक्यो ओलम्पिक में चौथा स्थान अर्जित करने के बाद हॉकी इंडिया के बड़े अधिकारी और कुछ चाटुकार मीडियाकर्मी भारतीय टीम, उसकी खिलाड़ियों और टीम प्रबंधन को सातवें आसमान पर उछाल रहे थे
राजेंद्र सजवान
“भारत में महिलाओं की कद्र नहीं है”, यह आरोप लगाया है भारतीय महिला हॉकी की विदेशी कोच जेनेक शॉपमैन ने। डच कोच ने अपने पद से इस्तीफा देते हुए हॉकी इंडिया और उसके पदाधिकारियों पर महिला कोच के प्रति दुर्भावना का आरोप भी लगाया है। ज्यादा वक्त नहीं बीता है, जब भारतीय महिला हॉकी टीम की तारीफों के पुल बांधे जा रहे थे। हॉकी इंडिया के बड़े अधिकारियों और कुछ चाटुकार मीडियाकर्मी टोक्यो ओलम्पिक में चौथा स्थान पाने वाली टीम, उसकी खिलाड़ियों और टीम प्रबंधन को सातवें आसमान पर उछाल रहे थे। लेकिन जिस टीम को ओलम्पिक गोल्ड की दावेदार कहा जा रहा था उसका दमखम पहले ही जवाब दे चुका है।
पेरिस ओलम्पिक क्वालीफायर में अमेरिका और जापान से पिटने वाली भारतीय लड़कियों को अपने मैदान और दर्शकों के सामने सिर झुकाकर मैदान छोड़ना पड़ा था। उनकी विदेशी कोच शॉपमैन की भूमिका पर सवाल उठे लेकिन हॉकी इंडिया ने उसे बनाए रखा है। अब वही कोच आरोप लगा रही है। रांची में हॉकी प्रेमियों का दिल तोड़ देने वाले प्रदर्शन के बाद महिला टीम ने भुवनेश्वर एफआईएच प्रो-लीग में भी खराब प्रदर्शन का सिलसिला बरकरार रखा है। भले ही छुट-पुट मैच जीते हैं लेकिन इस कामयाबी के कोई मायने नहीं हैं क्योंकि ओलम्पिक खेलने के रास्ते बंद हो चुके हैं। भले ही प्रो लीग में कुछ मैच जीते लेकिन ओलम्पिक खेलने का मौका हाथ से फिसल जाने के बाद लकीर पीटने से कोई फायदा नहीं है।
भारतीय हॉकी प्रेमी जानते हैं कि टोक्यो ओलम्पिक में चौथा स्थान अर्जित करने के बाद भारतीय महिला हॉकी के कर्णधारों ने हुंकार भरते हुए कहा था कि पेरिस ओलम्पिक में गोल्ड मेडल जीतेंगे। लेकिन अमेरिका और जापान से हारने के बाद इस टीम के बारे में आम धारणा बदल रही है। हॉकी जानकारों के अनुसार कुछ खिलाड़ियों पर उम्र भारी पड़ रही है और उनके लिए खेल बोझ बन सकता है। हार का एक बड़ा कारण पेनल्टी कॉर्नर पर गोल बचाना और पेनल्टी कॉर्नर पर गोल बनाना भी है और दोनों ही क्षेत्र में भारतीय लड़कियां कमजोर पड़ रही हैं।
कुल मिलाकर भारतीय महिला हॉकी के लगभग सभी दरवाजे बंद हो चुके हैं। लाखों-करोड़ों बहाने के बाद भी ओलम्पिक क्वालीफायर नहीं जीत पाए। अर्थात अब एक बार फिर शुरू से शुरू करना होगा। विदेशी कोच को लेकर हॉकी इंडिया के बड़े आपस में टकरा रहे है। कुल मिला कर महिला हॉकी में विवाद बढ़ने के साथ प्रदर्शन घट रहा है।