लक्ष्मी झा के लिए अब एवरेस्ट चढ़ने का ‘अवसर’

  • बिहार की बेटी तुर्की की सबसे ऊंची चोटी माउंट अरारत पर तिरंगा फहरा चुकी है
  • उसने हरियाणा की जानी-मानी पर्वतारोही अनीता कुंडू अपनी गुरु व मार्गदर्शक बताया
  • उसने पूर्व सांसद व अवसर ट्रस्ट के संस्थापक आर.के. सिन्हा से मिले आर्थिक सहयोग की सराहना की

राजेंद्र सजवान

तुर्की की सबसे ऊंची चोटी माउंट अरारत पर तिरंगा फहराने के बाद अब बिहार की बेटी लक्ष्मी झा दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर एवरेस्ट पर कदम रखना चाहती है। आज यहां प्रेस क्लब में आयोजित एक समारोह में लक्ष्मी ने कहा कि वह एवरेस्ट चढ़ने की तैयारी में जुट गई है। इस मिशन में उसे हरियाणा की जानी-मानी पर्वतारोही अनीता कुंडू सहयोग कर रही हैं। लक्ष्मी के अनुसार अनीता उसकी गुरु और मार्गदर्शक है और अब तक जो कुछ हासिल किया है उसमें अनीता की बड़ी भूमिका रही है साथ ही उसने पूर्व सांसद और अवसर ट्रस्ट के संस्थापक आर.के. सिन्हा द्वारा दिए गए आर्थिक सहयोग की जम कर सराहना की। लक्ष्मी के अनुसार श्री सिन्हा सभी खेलों से जुड़े खिलाड़ियों और पर्वतारोहियों के लिए आशा की किरण हैं।

  पूर्व सांसद के अनुसार पर्वतारोहण एक जोखिम भरा खेल है, जिसमें जिंदगी मौत के बीच जंग चलती रहती है। लेकिन अपने देश में पर्वतारोहण को पता नहीं क्यों गंभीरता से नहीं लिया जाता। उनके अनुसार अवसर ट्रस्ट ने सैकड़ों खिलाड़ियों को अवसर दिया और करोड़ों खर्च किए। अनीता और लक्ष्मी की कामयाबी में भी ट्रस्ट की बड़ी भूमिका रही है। हॉकी, फुटबॉल, वॉलीबॉल, क्रिकेट, मुक्केबाजी, शतरंज आदि खेलों को ट्रस्ट से सहयोग मिलता रहा है।

 

   हरियाणा में ओएसडी मोटिवेशन के पद पर कार्यरत अनीता तीन बार एवरेस्ट चढ़ चुकी हैं। उनके अनुसार हर अभियान पहले से ज्यादा चुनौतीपूर्ण होता है लेकिन कामयाब वही हो पाता है जो कि बड़े जिगरवाला होता है और पर्याप्त ट्रेनिंग के बाद ही बड़ी चुनौती के लिए कदम बढ़ाता है। अनीता ने श्री सिन्हा को अपनी प्रेरणा बताया और कहा कि उनकी मदद से ही तीन बार विश्व की सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ पाई। अनीता मानती है कि एवरेस्ट चढ़ने के नाम पर फर्जीवाड़ा चल रहा है। कई लोगों  के पास फर्जी प्रमाणपत्र मिल जाएंगे। ऐसे लोग पर्वतारोहण जैसे पवित्र और साहसिक खेल को बदनाम कर रहे हैं। उन्होंने कभी पर्वत नहीं देखा लेकिन एवरेस्ट लांघने का दावा करते हैं।

   सातों महाद्वीपों के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर छूने वाली अनीता का दर्द यह है कि उनके खेल को प्रायोजक नहीं मिल पा रहे। एवरेस्ट चढ़ने के लिए चालीस से पचास लाख का खर्च आता है, जिसको जुटाना आसान काम नहीं है। नतीजन गरीब घरों के साहसी और तकनीकी रूप से समृद्ध युवाओं को मन मसोजकर रह जाना पड़ता है।

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