- आंदोलनकारी पहलवानों को ट्रायल में लाभ पहुंचाना और मात्र एक कुश्ती लड़कर एशियाड का टिकट पाने का फैसला योगेश्वर को रास नहीं आ रहा
- कुश्ती प्रेमी योगेश्वर और बजरंग के बीच वाक-युद्ध के कारण यौनाचार के आरोपी बृज भूषण चैन की बंसी बजा रहे हैं
- दोनों दिग्गज पहलवानों का यह दांव भारतीय कुश्ती को फिर से मिटटी में मिला दे तो हैरानी नहीं होनी चाहिए
राजेंद्र सजवान
भारतीय कुश्ती में विवादों का दौर थामे नहीं थम रहा। पूर्व अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह के विरुद्ध महिला पहलवानों के धरना प्रदर्शन के साथ शुरू हुआ कुश्ती का गृह-युद्ध अब विश्व युद्ध जैसी शक्ल लेने लगा है। चुनाव की तिथियों में बार-बार और लगातार हो रहे बदलावों से यह साफ हो गया है कि भारतीय कुश्ती किसी बड़े अपशगुन को आमंत्रित कर रही है। हालांकि फिलहाल बृज भूषण का मामला ठंडा पड़ गया है और आंदोलनकारी पहलवानों ने भी मान लिया है कि अब वे सड़क पर उतरने की बजाय न्याय पालिका पर भरोसा करेंगे। अर्थात जब तक पूरी छानबीन नहीं हो जाती और कोर्ट अंतिम फैसला नहीं सुना देता तब तक बृज भूषण राहत की सांस ले सकते हैं।
आंदोलनकारी पहलवानों ने रेलवे में अपनी ड्यूटी ज्वाइन कर ली थी और जब यह माना जाने लगा था कि एडहॉक कमेटी, आईओए और खेल मंत्रालय मिल बैठकर देश की कुश्ती को फिर से पटरी पर ले आएँगे, यकायक गृह- युद्ध जैसे हालात बन गए हैं। आंदोलनकारी पहलवानों और कुछ पूर्व पहलवानों के बीच पहले वाक्-युद्ध और अब सोशल मीडिया पर तू तड़ाक से लेकर पोल खोल वाली राजनीति शुरू हो गई है। जो योगेश्वर और बजरंग कभी भाई-भाई और गुरु चेले थे आज एक-दूसरे को नीचे दिखाने का कोई मौका नहीं चूक रहे। बजरंग, साक्षी मलिक और विनेश फोगाट और उनकी पूरी टीम योगेश्वर पर टूट पड़ी है।
यह सही है कि भारतीय खेल इतिहास के सबसे शर्मनाक काण्ड का सम्बन्ध उसके अपने सरंक्षक बृज भूषण से है। महिला पहलवानों द्वारा लगाए गए यौनाचार के आरोपों की जांच चल ही रही थी कि अब लड़ाई का रुख बदल गया है। बृज भूषण को जैसे फिलहाल भुला दिया गया है। अब गुरु योगेश्वर और बजरंग पूनिया के बीच घमासान मचा है दोनों के समर्थक भी मैदान में उतर गए हैं और ऐसे आरोप लगा रहे हैं जिनके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता।
योगेश्वर और बजरंग दोनों ही ओलम्पिक पदक विजेता हैं और भारतीय कुश्ती में उन्हें बड़ा मान-सम्मान प्राप्त है। यह सही है कि पिछले दो तीन सालों से उनके सम्बन्ध बहुत मधुर नहीं रहे लेकिन शायद ही किसी ने सोचा होगा कि उनके दिल में एक-दूसरे के लिए इस कदर जहर भरा होगा। आंदोलनकारी पहलवानों को ट्रायल में लाभ पहुंचाना और मात्र एक कुश्ती लड़कर एशियाड का टिकट पाने का फैसला देश के अन्य पहलवानों को रास नहीं आ रहा। इस मुद्दे पर योगेश्वर भी सहमत नहीं हैं। हालांकि लाभ पाने वाले पहलवान कह रहे हैं कि इस प्रकार के फैसले से उनका कोई लेना-देना नहीं है।
योगेश्वर और उनके पक्षधर मानते हैं कि देश के युवा पहलवानों को आंदोलन कर रहे पहलवानों की तरह विरोध का रास्ता पकड़ना चाहिए, क्योंकि उनकी सालों की तैयार पर मुफ्त का लाभ पाने वाले भरी पड़ सकते हैं। अर्थात सालों से अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों में भाग लेने की तैयारी करने वाले पहलवानों को उकसाया जा रहा है। फेडरेशन के चुनाव लटकाए जा रहे हैं, नामी पहलवान आपस में लड़ रहे हैं, कुश्ती प्रेमी योगेश्वर और बजरंग खेमों में बंट गए हैं और बृज भूषण चैन की बंसी बजा रहे हैं। उनका यह दांव भारतीय कुश्ती को फिर से मिटटी में मिला दे तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। चूंकि योगी और बजरंग बड़े हस्ताक्षर हैं, उन्हें कुश्ती के कीचड़ से बच कर रहना होगा।