क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान
टोक्यो ओलंम्पिक शुरू होने को है। लेकिन अपने देश में फिलहाल भारतीय क्रिकेट टीम के विदेश दौरों , फुटबाल के यूरो कप एवम कोपा अमेरिका फुटबाल की चर्चा जोरों पर है। यह सही है कि क्रिकेट भारत का और फुटबाल सबका लोकप्रिय खेल है। लेकिन हम भूल जाते हैं कि ओलंम्पिक पूरी दुनिया के खेलों का सबसे बड़ा खेल मेला है।
यही वक्त है जब आम भारतीय को समझ लेना चाहिए कि ओलंम्पिक खेलों में भाग लेना या पदक जीतना क्रिकेट में कमाए करोड़ों से कहीं ऊपर हैं। खासकर, उन लाखों करोड़ों माँ बाप की तरह आप भी खबरदार हो जाइए जोकि अपने बेटे को बड़ा क्रिकेटर बनाने की चाह में अपना सब कुछ दांव पर लगा देते हैं। लेकिन जब उनकी नींद टूटती है तो सब कुछ लूट चुका होता है।
जैसे कि आई ए एस, आई पी एस, डाक्टर या इंजीनियर बनने का सपना देखने वाले हर युवा को कामयाबी नहीं मिल पाती उसी प्रकार हर बच्चा कामयाब क्रिकेटर नहीं बन सकता। लेकिन ओलंम्पिक खेलों में खुला आसमान है और क्रिकेट की तरह घमासान नहीं मैच है। देर सबेर योग्य खिलाड़ी कोई ना कोई राह चुन सकते हैं। लेकिन क्रिकेट खिलाड़ी बनने का ख्वाब देखने वाले को तब घोर निराशा होती है जब वह हज़ारों लाखों खिलाड़ियों की भीड़ में खो जाता है और फिर एक वक्त ऐसा भी आता है जब उसे कोई और राह नहीं सूझती।
क्रिकेट पहली पसंद क्यों?:
इसमें दो राय नहीं कि क्रिकेट आज हर बच्चे और युवा का पहला खेल बन गया है। इसका बड़ा कारण यह है कि जाने अंजाने ही सही माता पिता बच्चे को गेंद बल्ला थमा देते हैं और समय के साथ साथ उसमें कल का चैम्पियन क्रिकेटर देखने लगते हैं। स्कूली दिनों में वह क्रिकेट को इस कदर समर्पित हो जाता है कि अन्य किसी खेल की तरफ उसका ध्यान ही नहीं जाता। जैसे जैसे उम्र बढ़ती है, कड़ी प्रतिस्पर्धा के चलते वह खुद को बीच भंवर में पाता है तो उसके सारे सपने चकना चूर हो जाते हैं।
हर कोई स्टार क्रिकेटर नहीं बन सकता:
क्रिकेट में पैसा है और मान सम्मान की कमी नहीं। खिलाड़ी मैदान में रहते और उसके बाद भी लाखों करोड़ों कमा रहे हैं लेकिन हर कोई सचिन, विराट या धोनी नहीं बन सकता। सच माने तो गावसकर, कपिल, सचिन, धोनी और विराट जैसे खिलाड़ी ऊपर से बन कर आते हैं या उनकी मेहनत, लगन और माँ बाप का त्याग उन्हें उँचाई प्रदान करता है।
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि खिलाड़ी संघर्ष करना छोड़ दें या उनके पालनहार अच्छे सपने देखना ही छोड़ दें। लेकिन जो लोग अपने बच्चे की क्षमता और योग्यता को देखे परखे बिना ही बड़े बड़े ख्वाब सज़ा लेते हैं उन्हें निराशा का सामना भी करना पड़ सकता है, क्योंकि हर बच्चे में स्टार क्रिकेटर बनने की क़ाबलियत नहीं हो सकती। हो सकता है वह किसी अन्य खेल की जरूरत हो।
आईपीएल से गुमराह:
भले ही क्रिकेट के प्रति रुझान वर्षों पुराना है पर आईपीएल के लाखों करोड़ों हर किसी के दिल दिमाग़ में घर कर चुके हैं। जब एक अदना सा क्रिकेटर पाँच सात करोड़ पा रहा है तो कोई भला दूसरा खेल क्यों चुनेगा! लेकिन यह ना भूलें कि करोड़ों में से चार पाँच सौ खिलाड़ी आईपीएल का सुखभोग कर पाते हैं, जबकि दस-बीस ही देश के लिए खेल पाते हैं। यह समीकरण देश के युवाओं को ना सिर्फ़ भटका रहा है अपितु अन्य खेलों के रास्ते भी बंद कर रहा है।
ओलंम्पिक खेलों को चुने :
उस समय जबकि पूरी दुनिया ओलंम्पिक खेलों पर नजरें गड़ाए है, भारतीय
क्रिकेट में घमासान मचा है। हर गली कूचे, गाँव शहर, स्कूल, कालेज, पार्क और खलिहान से लेकर खेतों में सिर्फ़ और सिर्फ़ क्रिकेट खेली जा रही है। जो युवा चैम्पियन एथलीट या तैराक बन सकता था, फुटबाल या हॉकी में नाम कमा सकता था, क्रिकेट की मृग मरीचिका में भागता फिर रहा है और अपना भविष्य भी खराब कर रहा है।
यही मौका है जबकि भारतीय अविभावक ओलंम्पिक खेलों के महत्व के बारे में सोच सकते हैं। दद्दा ध्यान चंद, बलबीर सीनियर, अभिनव बिंद्रा, सशील, योगेश्वर दत्त, मैरीकॉम, बिजेंद्र , सायना नेहवाल, पीवी सिंधू को पूरी दुनिया जानती है। क्रिकेट के पास पैसा ज्यादा हो सकताहै लेकिन 10 देशों का खेल 210 देशों के खेलों पर भारी नहीं हो सकता। बेहतर होगा भारतीय माता पिता ओलंम्पिक वर्ष में ओलंम्पिक खेलों को समझने का प्रयास करेंगे।