क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान
किसी भी खेल में वही कामयाबी का शिखर चूमता है जोकि कड़ी मेहनत और पूरी निष्ठा के साथ अपने सफर पर आगे बढ़ता है, जो लक्ष्य को पाने के लिए शॉर्ट कट नहीं अपनाता और जिसका लक्ष्य मछली की आंख पर होता है। लेकिन क्या कोई खिलाड़ी या टीम जादू, टोने, टोटके या मंत्र तंत्र से सफल हो सकती हैं? इस सवाल का जवाब ‘बिल्कुल नहीं’, हो सकता है परंतु खिलाड़ियों , खेल प्रेमियों और आधिकारियों का एक ऐसा वर्ग भी है जिसका भाग्य और अंधविश्वासों पर पूरा भरोसा है।
देश कि राजधानी दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई, नार्थ ईस्ट, केरल, आंध्रा और तमाम प्रदेशों की फुटबाल में जादू टोने का खेल उतना ही पुराना है, जितना पुराना फुटबाल का खेल है। सवाल यह पैदा होता है कि यह जादू टोना भारतीय फुटबाल का भला क्यों नहीं कर पाया?
सबसे पहले आपको राजधानी के नेहरू स्टेडियम लिए चलते हैं, जहां फुटबाल दिल्ली द्वारा आईलीग में भाग लेने वाली स्थानीय टीम की भागीदारी तय करने के मुकाबले आयोजित किए जा रहे हैं। मैच से पहले खिलाड़ियों से ज्यादा भाग दौड़ एक क्लब के अधिकारी कर रहे हैं। दोनों टीमें मैदान में हैं। रेफरी लाइंसमैन तैयार हैं। खोजी पत्रकार के कान में उड़ती खबर आई,”तैयारी पूरी है। गोल-पोल बांध दिए है। खिलाड़ियों से कहो पहले हाफ में दो चार गोल कर जीत पक्की कर लें”।
पहला हाफ समाप्त हुआ। स्कोर 0-0 है। इस बीच दूसरे क्लब के अधिकारियों और उनके समर्थकों के बीच मंत्रणा चल रही है। उन्हें शक है कि तमाम दबदबे के बाद भी गोल नहीं हो रहा तो निश्चित रूप से जादू टोना किया गया है, जिसकी काट खोजी जा रही है। एक समर्थक कहता है, गोल पोस्ट के पास जाकर पेशाब कर दें।
दूसरा कुछ और फार्मूला सुझाता है। इतने में उनका सबसे वरिष्ठ और अनुभवी अधिकारी चुपके से कहता है, “काम हो गया है। गोल पोस्ट पर नींबू काट दिया है। बंधन खुल गए हैं। अब गोलों की बरसात देखो”। और सचमुच ऐसा ही हुआ। एक..दो..चार, गोल होते चले गए। दूसरी तरफ टोटका करने वाली टीम के खिलाड़ी एक एक कर चोटिल होते रहे।
जब तंत्र मंत्र के माहिरों से पूछा गया तो बोले, पांसा उल्टा पड़ गया, पराजित टीम के खिलाड़ियों का चोटिल होने का कारण भी पलट वार है।
कोलकाता लीग, गोवा, महाराष्ट्र और अन्य प्रदेशों में भी फुटबाल अंधविश्वास के भरोसे खेली जाती रही है। इस खेल का सच आज तक समझ नहीं आया। खेल जारी है। लगभग सभी क्लब जंतर मंतर गोल भगन्तर की रणनीति से फुटबाल खेल रहे हैं। मैदान पर मूत्र का छिड़काव, मांस के टुकड़े बिखेरने, नींबू काटने, खून टपकाने और ना जाने कैसे कैसे आडंबर रचे जाते रहे हैं। बेशक, अन्य देश भी पीछे नहीं हैं लेकिन उनकी फुटबाल लगातार आगे बढ़ रही है।
अधिकांश फुटबाल प्रेमी यह तो जानते ही हैं कि ओलंम्पिक फुटबाल में भारत को खेलने का मौका क्यों नहीं मिल पा रहा? जी हां, हमारा स्तर इतना गिर चुका है कि सालों और शायद सदियों में भी ओलंम्पिक और विश्वकप खेलना नसीब नहीं हो पाएगा। चार ओलंम्पिक खेल चुकी भारतीय फुटबाल को क्या हो गया है? कभी यूरोप की टॉप टीमों को टक्कर देने वाली भारतीय फुटबाल क्यों प्रगति नहीं कर पा रही? हमारे मंत्र तंत्र कहाँ गए? कहाँ गए वो तांत्रिक जो पिछले विश्व कप में ब्राजील को चैंपियन बनाने का मंत्र फूंकते रह गए ? जर्मनी ने मेजबान ब्राजील की कैसी हवा निकाली थी यह भी हर किसी ने देखा।
दुनिया ने यह भी देखा कि कैसे एक ऑक्टोपस ‘पाल बाबा’ ने विश्व फुटबाल को उसका चैंपियन दिया! कैसे अफ्रीका और दक्षिण एशिया में फुटबॉल और क्रिकेट मुकाबलों से पहले बारिश रोकने और किसी स्टार खिलाड़ी को बांधने के लिए ओझा और मंत्र फूंकने वालों का इस्तेमाल किया जाता है। हैरानी इस बात की है कि दुनिया के सबसे अंधविश्वासी और काले पीले जादू के देश भारत महान के पास एक भी ऐसा तांत्रिक नहीं जोकि भारतीय फुटबाल को बंधन मुक्त कर सके! आपकी नजर में हो तो एआईएफएफ को जरूर बता दें।
इसमें दो राय नहीं कि भारतीय फुटबाल शेष विश्व के साथ नहीं दौड़ पाई। कारण, सरकार, फुटबाल संघ और उसकी इकाइयों ने गंभीरता नहीं दिखाई। ऐसे बहुत से कारण हैं जिनके चलते हमारी फुटबाल एशिया के शीर्ष स्थान से लुढ़कते लुढ़कते वहां पहुंच गई है जहां से एशियायी खेलों की डगर भी मुश्किल हो गई है। रहा विश्व कप तो कोई मंजा हुआ तांत्रिक और नामी गिरामी ओझा ही हमारी फुटबाल का भूत झाड़ सकता है।