Have won a lot of hearts, now show by winning a medal in Olympics

दिल बहुत जीत लिया अब पदक जीत कर दिखाओ!

क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान

ओलंम्पिक में हमारे खिलाड़ी, कोच, अधिकारी और भारतीय ओलंम्पिक संघ के बड़े, बड़े -बड़े दावों के साथ जाते हैं। लेकिन जब एक एक कर तमाम दावे फ्लाप साबित होते हैं तो इधर उधर ताक झांक कर बहाने तलाशे जाते हैं।

तब कुछ ऐसे खिलाड़ियों का जिक्र किया जाता है, जिनका प्रदर्शन थोड़ा बहुत ठीक ठाक रहता है या हार से पहले कुछ संघर्ष कर गुजरते हैं। हैरानी वाली बात यह है कि हमारे तथाकथित बड़े खेल पत्रकार और कोच भी फ्लाप खिलाड़ियों के पक्ष में खड़े दिखाई देते हैं।

कोई कहता है, फलां टेबल टेनिस खिलाड़ी खूब खेला और कड़े संघर्ष के बाद ही हारा। ‘भाई ने दिल जीत लिया’। दूसरा सुर्रा छोड़ता है, ‘हमारे निशानेबाजों का भाग्य ने साथ नहीं दिया। उनके निशाने थोड़े से भटक गए। अभी उम्र ही क्या है, अगले ओलंम्पिक तक फिट हो जाएंगे’! तलवार बाजी में भाग लेने वाली खिलाड़ी के बारे में कहा जा रहा है, ‘बड़ी हिम्मत से लड़ी, खूब मुकाबला किया। हार गई पर दिल जीत लिया।

टेनिस और तीरंदाजी में खानापूरी करने वालों की पीठ भी जोर शोर से थप थपाई जा रही है। तीरंदाजी के हमारे विश्व विजेताओं के तीर हवा बहा ले जा रही है और उनका बचाव करने वाला मीडिया कह रहा है, जरा सा चूक गए, दौड़ से बाहर हो गए पर दिल जीत लिया।

एक बात समझ नहीं आती कि हमारे खिलाड़ी पिछले सौ सालों से सिर्फ दिल ही क्यों जीत रहे हैं। वे पदक कब जीतेंगे? चानू से सबक क्यों नहीं लेते, जिसने पदक जीत कर पूरे देश का दिल जीत लिया है।

ओलंम्पिक में 13 साल की लड़की और 58 साल का बुजुर्ग गोल्ड जीत रहे हैं और भारतीय खिलाड़ी सहानुभूति जीत कर और देश का करोड़ों बर्बाद कर लौट आते हैं। आईओए, फेडरेशन और साई के अधिकारी उनके प्रदर्शन का आकलन करते हुए कहते हैं, ‘भई फलां खिलाड़ी या टीम ने दिल जीत लिया’।

सवाल यह पैदा होता है कि भारी भरकम दल भेजने और देश के करोड़ों खर्च करने के बाद भी हमारे ख़िलाड़ी पदक विजेता प्रदर्शन क्यों नहीं कर पाते? सालों साल विदेशों में ट्रेनिंग ले रहे हैं, मनमर्जी के कोच उपलब्ध हैं और कुछ खिलाड़ियों के अलग से नखरे भी उठाने पड़ते हैं। हार पर हमारे खिलाड़ी कैसे कैसे बहाने बनाते हैं, यह भी जग जाहिर है।

हमारे खेल आकाओं ने टोक्यो में दर्जन भर पदक जीतने का दावा किया था। हालांकि अभी कुश्ती, मुक्केबाजी, बैडमिंटन, हॉकीऔर निशानेबाजी में संभावनाएं बरकरार हैं लेकिन इन खेलों में भी यदि सिर्फ दिल जीता तो भारत खेल महाशक्ति कैसे बनेगा?

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