Video referrals don't put hockey out of the Olympics

वीडियो रेफरल कहीं हॉकी को ओलंम्पिक बाहर न कर दे!

क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान

टोक्यो ओलंम्पिक में खेले जा रहे हॉकी मैचों पर सरसरी नजर डालें तो कुछ एक मैचों में अम्पायरिंग को लेकर बड़ा विवाद नहीं हुआ। शुरुआती मुकाबलों में बड़े उलट फेर भी देखने को नहीं मिले।

लेकिन पूर्व ओलम्पियनों, खिलाड़ियों और हॉकी प्रेमियों को यह बात खल रही है कि वीडियो रेफरल प्रणाली से सही नतीजे तक पहुंचने में वीडियो अंपायर बहुत ज्यादा समय ले रहे हैं। नतीजन खेल की गति और खिलाड़ियों के उत्साह पर बुरा असर पड़ रहा है और खेल की निरंतरता बाधित हो रही है।

यह सही है कि वीडियो रेफ़रल प्रणाली लगभग सभी खेलों का हिस्सा बन चुकी है। फुटबाल, क्रिकेट और तमाम खेलों में कैमरों की नजर से नतीजे तय हो रहे हैं। एक तरह से यह प्रथा सही भी है, जिसको अपनाने से रेफरी, अंपायरों पर आरोप लगाने का सिलसिला लगभग थम गया है।

हॉकी जैसे तेज तर्रार खेल में जब कोई टीम अंपायर के फैसले को चुनौती देती है या वीडियो कैमरे के जरिए फिर से भूल सुधार के लिए कहा जाता है तो अन्य खेलों की तुलना में यहां ज्यादा समय लग रहा है, जोकि अच्छा संदेश नहीं है। बेशक, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हॉकी की बॉल फुटबाल जैसी नहीं होती। लेकिन समय की पाबंदी आवश्यक है।

हॉकी प्रेमी जानते हैं कि हॉकी को ओलंम्पिक से बाहर करने के बारे में कई बार चर्चाएं चलीं। अन्तरराष्ट्रीय ओलंम्पिक कमेटी ने भारत, पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया, हॉलैंड, जर्मनी आदि देशों की एकजुटता और एक राय का मान रखा और बार बार हॉकी को मौके दिए जाते रहे हैं। लेकिन हॉकी पर से खतरा अभी पूरी तरह टला नहीं है। आज भी रह रह कर हॉकी पर खतरा मंडरा रहा है।

भले ही 1976 के बाद और नकली घास के मैदानों के अस्तित्व में आने से हॉकी में तेजी आई लेकिन कौशल का ह्रास हुआ है। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि खेल का आकर्षण कम हुआ है, जिस कारण से हॉकी को ओलंम्पिक बाहर किए जाने की आशंका बढ़ी है। खासकर , वीडियो रेफरल के नाम पर हो रही समय की बर्बादी से हॉकी प्रेमी बेहद नाराज हैं।

हॉकी जादूगर दद्दा ध्यान चंद युग और आज की हॉकी में भारी बदलाव आया है। मैदान के आकार प्रकार से लेकर नियम जब तब बदलते रहे हैं। घास से टर्फ(नकली घास) तक की विकास यात्रा के बाद का हिसाब किताब लगाएं तो एशियाई हाकी को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है।

खासकर , भारत और पकिस्तान से उनकी बादशाहत छिन गई। दूसरी तरफ यूरोपीय देशों ने अपनी सुविधा के हिसाब से मैदान और नियमों में बदलाव किए और सालों पहले भारत और पाकिस्तान को शीर्ष से बाहर खदेड़ दिया। नतीजा सामने है। भारतीय टीम 2008 के बीजिंग ओलंम्पिक में जगह नहीं बना पाई थी तो टोक्यों से पाकिस्तान नदारद है।

हालांकि भारत-पाक हॉकी दिग्गजों ने हॉकी पर गहराते संकट को यूरोप की साजिश बताया पर साल दर साल सब कुछ शांत हो गया और यह मान लिया गया कि हॉकी की घास पर वापसी अब संभव नहीं। लेकिन जानकार और विशेषज्ञ अब रेफरल नियम को नया संकट मान रहे हैं।

ऐसा इसलिए क्योंकि चार- पांच कैमरों के बावजूद वीडियो अंपायर को निर्णय लेने में कई बार चार से पांच-सात मिनट लग जाते हैं। समय तो बर्बाद होता ही है, खिलाड़ी और खेल प्रेमियों का उत्साह भी ठंडा पड़ जाता है।

यह न भूलें की अंतर राष्ट्रीय ओलंम्पिक समिति ओलंम्पिक खेलों के चयन में लगातार बदलाव करती आ रही है। यही कारण है कि टोक्यो में चार नये खेल शामिल किए गए हैं। जो खेल कम आकर्षक हैं या बार बार नियमों में छेड़ छाड़ करते हैं या टीवी दर्शकों के हिसाब से उबाऊ लगते हैं, उन्हें बाहर का रास्ता भी दिखाया जा रहा है।

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