स्थानीय और राष्ट्रीय फुटबॉल की उपेक्षा करता है प्रिंट मीडिया
प्रिंट मीडिया की बदहाली का आलम यह है कि मुख्य एवं खेल पृष्ठ फीफा वर्ल्ड कप से भरे हुए हैं लेकिन वे स्थानीय और राष्ट्रीय फुटबॉल की तरफ झांकते तक नहीं है
क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
फुटबॉल का महाकुम्भ फीफा वर्ल्ड कप निपट गया। जो श्रेष्ठ था कप ले उड़ी लेकिन एक बार फिर जतला गया कि इस दुनिया का असल खेल सिर्फ और सिर्फ फुटबॉल है और जो देश इस खेल को गंभीरता और ईमानदारी के साथ लेते हैं उन्हें दुनिया भर में मान सम्मान मिलता है और पूजा जाता है। भले ही अपना देश फुटबॉल में महा फिसड्डी है पर वर्ल्ड कप के आते ही भारत महान फुटबॉल मय हो जाता है। गांव-देहात और छोटे-बड़े शहरों में फुटबॉल की चर्चा चल निकलती है लेकिन कोई भी कभी भी इस बारे में कभी बात नहीं करता कि दुनिया के सबसे पसंदीदा खेल में हम कहां हैं और क्यों हैं।
बेशक, भारत के तमाम प्रचार माध्यमों ने हमेशा की तरह फीफा वर्ल्ड कप का जमकर प्रचार-प्रसार किया। खासकर, हमारे प्रिंट मीडिया ने ऐसा बखान किया जैसे कि भारत वर्ल्ड कप में खेल रहा हो और खिताब का प्रबल दावेदार हो। लियोनेल मेस्सी, एमबापे, नेमार, रोनाल्डो और दुनियाभर के स्टार खिलाड़ियों को सभी अखबारों ने जमकर छापा। उन्हें ऐसे प्रचारित किया जैसे कि वे अपने ही खिलाड़ी हों। सेमीफाइनल और फाइनल मुकाबलों के लिए सभी अखबारों ने स्टार खिलाड़ियों का इस प्रकार स्तुतिगान किया जैसा अपने क्रिकेट सितारों का होता आया है।
देश के कुछ पूर्व फुटबाल खिलाड़ियों को इस बात की हैरानी है क़ि बहुत से समाचार पत्रों ने मुख पृष्ठ से लेकर खेल पृष्ठ वर्ल्ड कप पर कुर्बान कर दिए। नामी खिलाड़ियों पर बड़े-बड़े ग्रन्थ लिखे गए। कौन चैम्पियन बनेगा और कौन खिलाड़ी श्रेष्ठ है इस पर खूब कागज काले किए गए। तारीफ की बात यह है कि इन सब किस्से कहानियों के ज्यादातार रचनाकार वे महाशय हैं जिन्हें फुटबॉल की एबीसी भी नहीं पता और जिनकी सारी जिंदगी क्रिकेट और क्रिकेटरों की चाटुकारिता में बीत गई।
कुछ पूर्व खिलाड़ी जानना चाहते हैं कि भारतीय मीडिया को फुटबॉल की याद हर चार साल बाद ही क्यों आती है? क्यों भारतीय समाचार पत्र और टीवी चैनल अपनी फुटबॉल को याद नहीं करते? क्यों कभी भारतीय फुटबॉल के पिछड़ेपन की बात नहीं की जाती? देश भर के वे खिलाड़ी जो कि आईएसएल, आई-लीग और संतोष ट्रॉफी राष्ट्रीय फुटबॉल चैम्पियनशिप में भाग लेते हैं, उन्हें क्यों नहीं पूछा जाता? अफसोस की बात यह है कि छपने से पहले बिकने वाले जो भारतीय अखबार फीफा वर्ल्ड कप पर ज्यादा मेहरबान थे उनमें स्थानीय और राष्ट्रीय फुटबॉल से जुड़ी खबरें खोजे नहीं मिल पातीं। उनकी प्राथमिकता सिर्फ और सिर्फ क्रिकेट रही है।
देश के ज्यादातर फुटबॉल जानकार, खिलाड़ी, कोच और फुटबॉल प्रेमी मानते हैं कि भारतीय फुटबॉल की बदहाली में मीडिया की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह न भूलें कि फुटबॉल ने अफ्रीका और लेटिन अमेरिका के बहुत से समस्याग्रस्त देशों की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है। इन देशों के हजारों-लाखों खिलाड़ी यूरोप के धनाढ्य देशों में खेलकर अपने परिवार और देश की सेवा कर रहे हैं। ब्राजील, अर्जेंटीना, मैक्सिको, पेरू, सेनेगल, कैमरून, मोरोक्को जैसे समस्याग्रस्त देश यदि आज दुनिया में विख्यात हुए हैं और उनका कद ऊंचा हुआ है तो फुटबॉल के कारण।