- “बूढ़े शेर” रोहन बोपन्ना 43 साल 6 महीने के बोपन्ना 43 साल 6 महीने की उम्र में उपविजेता बनकर टेनिस इतिहास के सबसे उम्रदराज खिलाड़ी बन गए हैं
- टेनिस प्रेमियों का एक बड़ा वर्ग मानता है कि भारतीय टेनिस की हालत खस्ता है, क्योंकि भारत ने प्रतिभावान खिलाड़ी पैदा करना बंद कर दिया है, जिस कारण से बोपन्ना और कुछ अन्य वेटरन जमे हुए हैं
- आज के भारतीय खिलाड़ियों पर सरसरी नजर डालें तो चार-छह खिलाड़ी अपना श्रेष्ठ देने के बावजूद सर्वश्रेष्ठ से मीलों की दूरी पर हैं
राजेंद्र सजवान
भले ही किसी भारतीय टेनिस खिलाड़ी ने हाल फिलहाल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई बड़ा खिताब नहीं जीता लेकिन “बूढ़े शेर” रोहन बोपन्ना ने प्रतिष्ठित ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट अमेरिकी ओपन का पुरुष युगल फाइनल खेल कर एक शानदार रिकॉर्ड स्थापित किया है, जिसकी चर्चा आम है। 43 साल 6 महीने के बोपन्ना और ऑस्ट्रेलिया के मैथ्यू अब्दाने की जोड़ी उपविजेता रही। ऐसा करिश्मा करने वाले बोप्पना टेनिस इतिहास के सबसे उम्रदराज खिलाड़ी बन गए हैं।
बोपन्ना की उपलब्धि पर भारतीय टेनिस प्रेमियों को गर्व करना चाहिए या देश में टेनिस का कारोबार करने वालों को कोसना चाहिए, नजरिया अपना-अपना हो सकता है लेकिन एक बड़ा वर्ग मानता है कि भारतीय टेनिस की हालत खस्ता है। बेशक, बोपन्ना अपने से आधी उम्र के खिलाड़ियों के दांत खट्टे कर रहे हैं, जो कि काबिले तारीफ है। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि भारतीय टेनिस ने प्रतिभावान खिलाड़ी पैदा करना बंद कर दिया है, जिस कारण से बोपन्ना और कुछ अन्य वेटरन जमे हुए हैं।
इसमें दो राय नहीं कि बोपन्ना एक बेहतरीन खिलाड़ी रहे हैं, जिनके नाम एशियाई खेलों का स्वर्ण पदक भी दर्ज है। डबल्स में भी उन्हें बड़ी कामयाबी मिली। जहां तक सिंगल्स में प्रदर्शन की बात है तो 2007 में 213वीं रैंकिंग और डबल्स में 2013 में तीसरी रैंकिंग प्राप्त खिलाड़ी ने डेविस कप में भी शानदार प्रदर्शन किया। लेकिन बोपन्ना अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन बहुत पीछे छोड़ने के बावजूद इसलिए कोर्ट में डटे हुए हैं क्योंकि देश में अच्छे खिलाड़ी निकल कर नहीं आ रहे।
पिछले दो-तीन दशकों में लिएंडर पेस, महेश भूपति, सोमदेव, सानिया मिर्जा आदि खिलाड़ियों ने भारतीय टेनिस का मान-सम्मान बचाए रखा। लिएंडर ने महेश भूपति के साथ मिलकर डबल्स के दिग्गजों को आड़े हाथों लिया और अनेक बड़े खिताब जीते। इन खिलाड़ियों में से ज्यादातर ने टॉप फॉर्म चले जाने के बावजूद अपने अनुभव का भरपूर लाभ उठाया और डबल्स में खिताब जीतना जारी रखा। इनसे पहले रामनाथन कृष्णन, विजय अमृतराज और रमेश कृष्णन ने विश्व टेनिस में अनेकों बार भारत का झंडा बुलंद किया। भले ही कोई भी सिंगल्स में ग्रैंड स्लैम नहीं जीत पाया लेकिन उनका प्रदर्शन भारतीय टेनिस का सबसे बेहतरीन दौर आंका गया। समकालीन चैम्पियनों ने भी रामनाथन पिता पुत्र और अमृतराज बंधुओं के कौशल को सम्मान दिया।
आज के भारतीय खिलाड़ियों पर सरसरी नजर डालें तो चार-छह खिलाड़ी अपना श्रेष्ठ देने के बावजूद सर्वश्रेष्ठ से मीलों की दूरी पर हैं। उनमें रामनाथन, रमेश, विजय और लिएंडर जैसी योग्यता नजर नहीं आती। जाहिर है कि भारतीय टेनिस को संरक्षण देने वाली इकाई अपना काम ईमानदारी से नहीं कर रही।