- देश-विदेश के विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारत को एशिया महाद्वीप में चीन, जापान और कोरिया जैसे देशों को पीछे छोड़ना है तो ग्रास रूट स्तर की तरफ गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है
- रूस, अमेरिका, चीन, फ्रांस, इटली, ब्राजील आदि देशों के खेल प्रमुखों, खिलाड़ियों, प्रशासकों से समय-समय पर हुई बातचीत में यह बात उभर कर आई कि उनके देश में चैम्पियन बनाने की शुरुआत बहुत छोटी उम्र से हो जाती है
- जहां तक अपने देश की बात है, तो अधिकतर माता-पिता और खुद खिलाड़ी पढ़ाई-लिखाई का बोझ असहनीय मानते हैं और खेल की तरफ ध्यान नहीं दे पाते
- चूंकि अब भारत के खेल आकाओं और सरकार की नजर खेल ‘महाशक्ति’ बनने पर टिकी है, इसलिए जरूरी यह हो गया है कि स्कूली जीवन की शुरुआत के साथ ही खेल का सबक भी सिखाया-पढ़ाया जाए
राजेंद्र सजवान
इसमें कोई दो राय नहीं कि भारतीय खिलाड़ी एशियाड और कॉमनवेल्थ गेम्स स्तर तक अच्छा प्रदर्शन करते आए हैं। लेकिन यदि भारत को एशिया महाद्वीप में चीन, जापान और कोरिया जैसे देशों को पीछे छोड़ना है तो ग्रास रूट स्तर की तरफ गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है, देश-विदेश के विशेषज्ञों का ऐसा मानना है।
समय-समय पर रूस, अमेरिका, चीन, फ्रांस, इटली, ब्राजील आदि देशों के खेल प्रमुखों, खिलाड़ियों, प्रशासकों से बातचीत में एक खास बात यह उभर कर आई कि उनके देश में चैम्पियन बनाने की शुरुआत बहुत छोटी उम्र से हो जाती है। जैसे ही खिलाड़ी स्कूल जाने की उम्र में प्रवेश करता है, उसे पसंद और शारीरिक बनावट को देखते हुए खेल मैदान पर उतार दिया जाता है। जहां तक अपने देश की बात है, तो अधिकतर माता-पिता और बच्चे स्कूल पास आउट होने के बाद भी यह तय नहीं कर पाते कि उन्हें किस खेल को अपनाना है। संभवत: ऐसा इसलिए होता है कि माता-पिता और खुद खिलाड़ी पढ़ाई-लिखाई का बोझ असहनीय मानते हैं और खेल की तरफ ध्यान नहीं दे पाते।
तैराकी और जिम्नास्टिक के कुछ जाने-माने कोचों के अनुसार, आप चीनी, अमेरिकी और ऑस्ट्रेलियाई अपने बच्चों को दो-तीन साल की उम्र में स्विमिंग पूल और जिम्नास्टिक रिंग में उतार देते हैं। जहां तक आम भारतीय की बात है तो उनके बच्चे प्राय: तब अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में उतरते हैं, जब चीनी और अमेरिकी तैराक ढेरों पदक जीतकर संन्यास की तरफ बढ़ रहे होते हैं। रूस, अमेरिका, चीन, जापान, रोमानिया आदि देशों के जिम्नास्ट 15 से 20 साल की उम्र में ओलम्पिक और विश्व स्तर पर तमाम खिताब जीत जाते हैं लेकिन हमारी 30 साल की जिम्नास्ट गंदी राजनीति खेल कर एशियाड और ओलम्पिक में क्यों जाना चाहती है?
हॉकी, फुटबॉल, एथलेटिक्स, कुश्ती, मुक्केबाजी, बैडमिंटन, टेनिस आदि खेलों में भी हमारे खिलाड़ी प्राय: तब उतरते हैं, जब उनका बचपना बीत चुका होता है। इतना ही नहीं, राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचने के बाद उन्हें विदेशी कोचों के हवाले कर दिया जाता है। विदेशी उन्हें नए सिरे ‘ए, बी, सी,’ सिखाते हैं। अर्थात उनका शुरुआती खेल जीवन व्यर्थ चला जाता है।
चूंकि अब भारत के खेल आकाओं और सरकार की नजर खेल ‘महाशक्ति’ बनने पर टिकी है, इसलिए जरूरी यह हो गया है कि स्कूली जीवन की शुरुआत के साथ ही खेल का सबक भी सिखाया-पढ़ाया जाए। बेशक, खेल का पहला सबक सीखने की सही उम्र पहली क्लास से शुरू हो जाना चाहिए।