- इंदर 70 के दशक के कुछेक ऐसे खिलाड़ी थे जिनकी एक झलक देखने और खेल कौशल के दर्शन करने के लिए फुटबॉल प्रेमी हजारों की संख्या में जुटते थे
- वह लीडर्स क्लब और जेसीटी फगवाड़ा के लिए स्ट्राइकर की भूमिका में खेले और खूब नाम कमाया
- पांच फुट का यह स्ट्राइकर भारतीय फुटबॉल में इतना लोकप्रिय था जितना लोकप्रिय आज का सुनील क्षेत्री है या कुछ साल पहले बाईचुंग भूटिया को पसंद किया जाता था
- इंदर उस दौर के खिलाड़ी थे जब हर पोजीशन पर कड़ी प्रतिस्पर्धा थी और प्रतिभावान खिलाड़ियों की कोई कमी नहीं थी
- क्षेत्री आज उस दौर का खिलाड़ी है जब भारतीय फुटबॉल अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच कर अपनी साख बचाने के लिए संघर्ष कर रही है
राजेंद्र सजवान
हाल ही में एक मित्र द्वारा भेजी गई एक प्रेस क्लिपिंग से 70 के दशक की भारतीय फुटबॉल की याद ताजा हो गई। हालांकि भारत फुटबॉल में लगातार नीचे लुढ़क रहा था लेकिन तब कुछेक ऐसे खिलाड़ी थे जिनकी एक झलक देखने और उनके खेल कौशल के दर्शन करने के लिए फुटबॉल प्रेमी हजारों की संख्या में जुटते थे। इन लोकप्रिय खिलाड़ियों में एक बड़ा नाम था, इंदर सिंह, जो कि लीडर्स क्लब और जेसीटी फगवाड़ा के लिए स्ट्राइकर की भूमिका में खेले और खूब नाम कमाया। पांच फुट का यह खिलाड़ी भारतीय फुटबॉल में इतना लोकप्रिय था जितना लोकप्रिय आज का सुनील क्षेत्री है या कुछ साल पहले बाईचुंग भूटिया को पसंद किया जाता था। लेकिन देश के फुटबॉल जानकार इंदर को सर्वश्रेष्ठ आंकते हैं।
खेल विशेषज्ञों की राय में इंदर का छोटा कद कई खिलाड़ियों पर बहुत भारी पड़ता था। बॉल कंट्रोल और गोल जमाने की कलाकारी में उन्हें देश का सर्वकालीन श्रेष्ठ माना जाता है। इतना बड़ा कि 50-60 के दशक के फुटबॉलर भी उनके सामने फीके पड़ जाते हैं। यह वह दौर था जब भारत ने दो बार एशियाड जीता और कई बड़े आयोजनों में बड़ी उपलब्धि पाई।
सुनील क्षेत्री पर भारतीय फुटबॉल प्रेमियों को इसलिए गर्व है क्योंकि वह भारत की तरफ से अंतर्राष्ट्रीय फुटबॉल में सबसे कामयाब खिलाड़ी है। वह रोनाल्डो और मैसी की तरह गोल जमाने में माहिर है। यह बात अलग है कि उसके रहते भारत ने कोई बड़ा खिताब नहीं जीता लेकिन उसकी प्रसिद्धि ओलम्पिक में पदक जीतने वाले खिलाड़ियों जैसी है।
देखा जाए तो क्षेत्री उस दौर का खिलाड़ी है जब भारतीय फुटबॉल अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच कर अपनी साख बचाने के लिए संघर्ष कर रही है। बेशक, फुटबॉल का हर सबक उसने बखूबी पढ़ा है। गोल करने में भी वह अद्वितीय है। लेकिन इंदर उस दौर के खिलाड़ी थे जब हर पोजीशन पर कड़ी प्रतिस्पर्धा थी और प्रतिभावान खिलाड़ियों की कोई कमी नहीं थी। तब बंगाल के खिलाड़ियों और क्लबों की तूती बोलती थी। लेकिन पंजाब के इंदर, हरजिंदर और परमिंदर की क्लास ही अलग थी।
जालंधर में आयोजित संतोष ट्रॉफी राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में इंदर द्वारा बंगाल पर जमाई गई डबल हैट्रिक और इंदर को श्रेष्ठ खिलाड़ी आंका जाना रिकॉर्ड पुस्तिकाओं में दर्ज हैं। बेशक, आज इंदर जैसा खिलाड़ी एक भी नहीं है। यही कारण है कि भारतीय फुटबॉल कहीं भी नहीं है।