- ब्रजभूषण के बिजनेस पार्टनर संजय सिंह की जीत जैसा उन्माद मचाया गया, उसकी हर तरफ निंदा हो रही है लेकिन एक वर्ग है, जो कि नेता जी के कारनामों और कीर्तिमानों का जमकर बखान कर रहा है
- कुश्ती प्रेमी और महिलाओं का सचमुच सम्मान करने वाले लोग देश के प्रधानमंत्री, खेलमंत्री, भारतीय ओलम्पिक संघ और तमाम जिम्मेदार इकाइयों से पूछ रहे हैं कि क्या यही महिला सशक्तिकरण है?
- भले ही साक्षी मलिक के संन्यास और बजरंग के पद्मश्री लौटाने से अधिकारियों को कोई फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन देश में खेलों के विकास और प्रचार-प्रसार का सच राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबको पता चल गया है
- कुछ तमाशबीन कह रहे हैं कि साक्षी, बजरंग और विनेश में अब दम नहीं रहा लेकिन ऐसे आरोप लगाने वालों को शर्म जरूर आनी चाहिए
- ब्रजभूषण पर लगाए गए यौन शोषण के आरोप कितने सही है, फैसला कोर्ट को करना है लेकिन कुश्ती में मचे घमासान के बाद आम माता-पिता हैरान परेशान जरूर हैं
- बेटियों को खेल से जोड़ा जाए या नहीं, माता-पिता यह तय नहीं कर पा रहे हैं
- हॉकी, निशानेबाजी, मुक्केबाजी और तमाम खेलों में अधिकारी, कोच और मंत्री स्तर के लुटेरे-दबंग भरे पड़े हैं
- तारीफ की बात यह है कि हमारी सरकारें और अदालतें किसी भी भ्रष्ट, बलात्कारी व अपराधी को सजा नहीं दिला पाती हैं और उल्टे उन्हें हीरो बनाया जा रहा है
- हरियाणा और गांव देहात के बेटे-बेटियां देश के लिए नाम-सम्मान कमा रहे हैं लेकिन हरियाणा सरकार का लाडला चरित्रहीन मंत्री सरेआम घूम रहा है
राजेंद्र सजवान
कुश्ती फेडरेशन की चुनावी लड़ाई में भले ही संजय सिंह को जीत मिल गई हो, लेकिन ब्रजभूषण शरण सिंह को विजयी मुद्रा दर्शाने और ताल ठोकने का सुअवसर मिल गया। ‘दबदबा था और दबदबा रहेगा’ जैसे नारे भी लगे, लेकिन साक्षी मलिक का बूट टांगना और बजरंग पूनिया का पद्मश्री लौटाना क्या कहते हैं? यह सवाल आज कुश्ती प्रेमियों, खेल प्रेमियों और महिलाओं के प्रति आदर सम्मान का भाव रखने वालों की जुबान पर है।
ब्रजभूषण के बिजनेस पार्टनर संजय सिंह की जीत जैसा उन्माद मचाया गया, उसकी हर तरफ निंदा हो रही है लेकिन एक वर्ग है, जो कि नेता जी के कारनामों और कीर्तिमानों का जमकर बखान कर रहा है। तारीफ की बात यह है कि ब्रजभूषण के अपनों की जीत को देश की जीत, एक राजनीतिक पार्टी की जीत और कुश्ती की जीत कहा जा रहा है। लेकिन अलग राय रखने वाले कुछ एक कुश्ती प्रेमी और महिलाओं का सचमुच सम्मान करने वाले लोग देश के प्रधानमंत्री, खेलमंत्री, भारतीय ओलम्पिक संघ और तमाम जिम्मेदार इकाइयों से पूछ रहे हैं कि क्या यही महिला सशक्तिकरण है?
भले ही साक्षी मलिक के संन्यास और बजरंग के पद्मश्री लौटाने से अधिकारियों को कोई फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन देश में खेलों के विकास और प्रचार-प्रसार का सच राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबको पता चल गया है। कुछ तमाशबीन कह रहे हैं कि साक्षी, बजरंग और विनेश में अब दम नहीं रहा। लेकिन ऐसे आरोप लगाने वालों को शर्म जरूर आनी चाहिए। उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज भारतीय खेल जहां खड़े हैं, उसमें कुश्ती और खासकर बजरंग, साक्षी, विनेश और दर्जनों अन्यों का बड़ा योगदान रहा है।
यह भी आरोप लगाया जा रहा है कि विरोध करने वालों का इरादा राजनीति करने का है और उन्हें विपक्षी दल उकसा रहे हैं। यदि ऐसा है तो भी उनकी उपलब्धि का सम्मान कम नहीं हो जाता। ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी खिलाओ, बेटी बचाओ’ जैसे नारे लगाने वालों के झूठ पर पहलवानों की उपलब्धियां बहुत भारी पड़ती हैं।
ब्रजभूषण पर लगाए गए यौन शोषण के आरोप कितने सही है, फैसला कोर्ट को करना है लेकिन कुश्ती में मचे घमासान के बाद आम माता-पिता हैरान परेशान जरूर हैं। बेटियों को खेल से जोड़ा जाए या नहीं, वे यह तय नहीं कर पा रहे हैं। अन्य खेलों में भी गंदगी भरी पड़ी है। हॉकी, निशानेबाजी, मुक्केबाजी और तमाम खेलों में अधिकारी, कोच और मंत्री स्तर के लुटेरे-दबंग भरे पड़े हैं। तारीफ की बात यह है कि हमारी सरकारें और अदालतें किसी भी भ्रष्ट, बलात्कारी और अपराधी को सजा नहीं दिला पाती हैं। उल्टे उन्हें हीरो बनाया जा रहा है।
हरियाणा और गांव देहात के बेटे-बेटियां देश के लिए नाम-सम्मान कमा रहे हैं। दूसरी तरफ हरियाणा सरकार का लाडला चरित्रहीन मंत्री सरेआम घूम रहा है। पिछले कुछ सालों में जो कुछ घटित हुआ है, उसे देखते हुए लगता नहीं है कि भारत कभी खेल महाशक्ति बन सकता है।