डीएसए का फुटबॉल छलावा: क्लब, कोच और रेफरी ‘खेला’ में शामिल!

  • दिल्ली सॉकर एसोसिएशन (डीएसए) के अधिकारी काफी ना- नुकुर करते-करते मान चुके हैं कि उनकी प्रमुख लीग में कहीं न कहीं बड़ी गड़बड़ चल रही है
  • दिल्ली की क्लब फुटबॉल का हाल भी राष्ट्रीय फुटबॉल की तरह बद से बदतर होता जा रहा है, क्योंकि पिछले कुछ सालों में जब से मैचों में फिक्सिंग और सट्टेबाजी के आरोप लगने शुरू हुए हैं, फुटबॉल प्रेमियों ने स्टेडियम में आना छोड़ दिया है
  • दिल्ली की फुटबॉल के लिए अच्छी बात यह है कि डीएसए अध्यक्ष अनुज गुप्ता ने तुरत-फुरत में कदम उठाया और फुटबॉल के हत्यारे क्लब के विरुद्ध गंभीर कदम उठाने की घोषणा कर दी
  • डीएसए के कुछ पूर्व पदाधिकारियों ने दोषियों को कड़े से कड़ा दंड देने की मांग की फिर चाहे कोई कितने भी बड़े क्लब का मालिक क्यों न हो
  • डीएसए के अनेक शीर्ष पदों पर रहे नरेंद्र कुमार भाटिया के अनुसार सबसे पहले सदस्यों की जांच पड़ताल हो और हर रजिस्टर्ड क्लब का खाता चेक किया जाना चाहिए तथा साथ ही खिलाड़ियों, कोचों और रेफरियों की भी जांच-पड़ताल जरूरी है

राजेंद्र सजवान   

इसमें दो राय नहीं कि तमाम विफलताओं के बावजूद भी भारत में फुटबॉल की लोकप्रियता में कोई गिरावट नहीं आई है। भले ही हम पिछले पचास सालों में कोई बड़ा खिताब नहीं जीत पाए, लेकिन तमाम विफलताओं के बावजूद फुटबॉल को आम भारतीय बेहद पसंद करता है। इतना जरूर है कि देश के फुटबॉल प्रेमियों ने अपनी फुटबॉल देखना लगभग बंद कर दिया है। लेकिन यूरोप, लैटिन अमेरिका और अफ्रीकी देशों के मैच देखने के लिए भारतीय फुटबॉल प्रेमी भी रात भर जागते हैं। दिल्ली की क्लब फुटबॉल का हाल भी राष्ट्रीय फुटबॉल की तरह बद से बदतर होता जा रहा है। पिछले कुछ सालों में जब से मैचों में फिक्सिंग और सट्टेबाजी के आरोप लगने शुरू हुए हैं, फुटबॉल प्रेमियों ने स्टेडियम में आना छोड़ दिया है। ऐसा इसलिए क्योंकि मैदानी फुटबॉल का रिमोट फिक्सरों और सट्टेबाजों ने थाम लिया है।

   देर से ही सही देश की राजधानी की फुटबॉल की पोल खुल चुकी है। ना- नुकुर करते-करते दिल्ली सॉकर एसोसिएशन (डीएसए) के अधिकारी मान चुके हैं कि उनकी प्रमुख लीग में कहीं न कहीं बड़ी गड़बड़ चल रही है। हाल ही में एक क्लब के खिलाड़ियों द्वारा दो आत्मघाती गोल जमाने वाले प्रकरण ने खिलाड़ियों, कोचों, रेफरियों, आयोजन समिति और डीएसए के पदाधिकारियों  पर शिकंजा कस गया है। लेकिन यह पहला और आखिरी मामला नहीं है। वर्षों से यह खेल खेला जा रहा है लेकिन बकरे की मां कब तक खैर मनाती। अंततः फुटबॉल के खेल में ‘खेला’ करने वाले लपेटे में आ ही गए।

   दिल्ली की फुटबॉल के लिए अच्छी बात यह है कि डीएसए अध्यक्ष अनुज गुप्ता ने तुरत-फुरत में कदम उठाया और फुटबॉल के हत्यारे क्लब के विरुद्ध गंभीर कदम उठाने की घोषणा कर दी। अनुज ने सभी क्लबों को सावधान रहने की चेतावनी दी है साथ ही पदाधिकारियों को भी आगाह कर दिया है, जो कि डीएसए के छाते के नीचे बैठ कर सटोरियों और फिक्सरों के हाथों खेल रहे हैं। अनुज के अनुसार उन्हें पहले से ही शिकायतें मिल रही थीं। आखिर वह दिन भी आ गया जब दूध का दूध हो गया है।

   इस बारे में जब डीएसए के कुछ पूर्व पदाधिकारियों की राय ली गई तो सभी ने दोषियों को कड़े से कड़ा दंड देने की मांग की फिर चाहे कोई कितने भी बड़े क्लब का मालिक क्यों न हो। डीएसए के अनेक शीर्ष पदों पर रहे डीएसए के पितामह नरेंद्र कुमार भाटिया के अनुसार फुटबॉल चलाने वाले भ्रष्ट लोग सारे फसाद की जड़ है। ज्यादातर भटके हुए क्लब डीएसए के अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के हैं। वे चाहते हैं कि सबसे पहले सदस्यों की जांच पड़ताल हो। हर रजिस्टर्ड क्लब का खाता चेक किया जाना चाहिए। साथ ही खिलाड़ियों, कोचों और रेफरियों की भी जांच-पड़ताल जरूरी है।

   दूसरे वरिष्ठ अधिकारी हेमचंद भी श्री भाटिया से सहमत हैं। उनकी राय में ऐसे लोग क्लबों के मालिक हैं जिनका फुटबॉल से दूर-दूर का रिश्ता नहीं रहा। कोच ऐसे हैं जिन्होंने फुटबॉल नहीं खेली और रेफरी हर ऐरा-गैरा बन रहा है।  गढ़वाल हीरोज से जुड़े मगन सिंह पटवाल, सीमा सुरक्षा बल के पूर्व कप्तान और कोच सुखपाल बिष्ट और अन्य फुटबॉल प्रेमी भी चाहते हैं कि ऐसे लोगों को बागडोर सौंपी जाए जिनका निहित स्वार्थ न हो। डीएसए अध्यक्ष अनुज गुप्ता और उनकी टीम द्वारा उठाए गए कदमों को सभी ने सराहा।

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