हेमंत चंद्र दुबे बबलू
सन 1983 की भारतीय क्रिकेट टीम की जीत पर बनी फिल्म काबिले तारीफ है । उस जीत के रोमांच का लुफ्त आज की नौजवान पीढ़ी नही उठा पाई थी लेकिन फिल्म ने आज उस जीत के रोमांच को रुपहले पर्दे पर सजीव कर दिखाया है।
हर खिलाड़ी की अपनी कहानी ,मैच दर मैच बनती रणनीति , हर रन , हर गेंद , हर कैच रोमंच से भर देने वाली कहानी है। हॉकी प्रेमी चाहते हैं कि देश का कोई फिल्म निर्माता देश की आजादी की वर्ष गांठ पर भारतीय हाकी टीम की जीत पर कोई फ़िल्म बनाए।
भारत की किसी भी खेल में यह वह ऐतिहासिक विजय है जिसके कारण हमने पहली बार विश्व विजेता होने का गौरव हासिल किया था। इस गोल्डन जीत के पीछे भी अनेको अनकही कहानियां जुड़ी हुई है जिसने आज से 47 वर्ष पूर्व 15 मार्च 1975 को मिली जीत ने करोड़ों भारतीयों को रोमांचित कर दिया था। यहां तक की फाइनल मैच की रेडियो कमेंट्री के दौरान भारत के उच्चतम न्यायालय ने भी अपनी सारी सुनवाई स्थगित कर दी थी और अवकाश घोषित कर दिया था।
यदि 1983के विश्व कप क्रिकेट मैच में भारत का जिम्बावे से मैच टूर्नामेंट का टर्निंग प्वाइंट था जिसे करो या मरो का मैच कहा गया। वह साधारण सा समझा जाने वाला मैच भारत के लिए जीवन मरण का प्रश्न बन गया था भारत के 17 रन पर 5 विकेट गिर चुके थे और मैच बचाने की कोई उम्मीद नहीं बची थी। फिर कपिल देव ने नाबाद धुंआधार 175की पारी खेली और भारत को विजय पथ पर अग्रसर कर दिया।
ठीक ऐसा ही मैच 1975 विश्व कप हाकी में भारत और मलेशिया का सेमी फ़ाइनल था जिसमे भारत मैच समाप्ति के निर्धारित समय से कुछ मिनटों पूर्व तक मलेशिया के खिलाफ 1गोल से पिछड़ रहा था और करोड़ो भारतीयों की धड़कने थम गई थीं। तभी भारत को अंतिम समय में पेनल्टी कॉर्नर मिल जाता है और भारत ने माइकल किंडो के स्थान पर मैदान में कुछ सैकेंडो पूर्व उतरे युवा खिलाड़ी असलम शेर खान पर भरोसा जताया और असलम शेर को पेनाल्टी कॉर्नर मारने के लिए भेज दिया।
असलम ने नीले आसमान को देखा अपने परवरदिगार को याद किया गले में मा के दिये हुए ताबीज को चूमा और मैच समाप्ति के 1 मिनट पूर्व मिले इस पेनल्टी कॉर्नर पर दनदनाती हिट से गोल पोस्ट के पटिए बजा दिए। उससे निकली आवाज ने दुनिया को बतला दिया की भारत ने मैच बराबरी पर ला खड़ा किया है। यह वह पल था जब पूरा भारत खुशी से झूम उठा और भारतीय हॉकी खिलाड़ियों ने असलम शेर खान को अपनी बाहों में भर लिया था। एक्स्ट्रा टाइम में भारतीय सेना के जांबाज कर्नल हरचरण सिंह ने विजयी गोल दागकर भारत की फाइनल में जगह पक्की कर दी।
फाइनल मैच भारत और पाकिस्तान के बीच होना था हाई वोल्टेज से भरा फाइनल मैच दोनो ही देशों में करोड़ो लोग दिल थामे बैठे थे की क्या होगा ?पाकिस्तान ने शुरूवात में ही मैच पर पकड़ बनाते हुए भारत की इस विश्व कप को जीतने के सपने पर ग्रहण लगा दिया था जब उसके फॉरवर्ड जाहिद खान ने भारत के खिलाफ गोल कर बढ़त हासिल कर ली थी।
उसके बाद मिले पेनल्टी कॉर्नर पर ग्रेट सुरजीत सिंह ने गोल दागकर भारत को बराबरी पर ला खड़ा किया और मैच में इसके बाद की कहानी तो दुनिया के महान हाकी खिलाड़ी हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद से जुड़ी हुई है। उनके सुपुत्र दुनिया के उस समय के बेहतरीन राइट इन साइड अशोक कुमार ने अपनी बेहतरीन हाकी कला की बदौलत एक बहुत ही सुंदर गोल भारत के लिए कर दिया।
कप्तान अजीत पाल सिंह ने अशोक कुमार का माथा ऐसा चूमा जैसे कोई मां अपने बच्चे की कामयाबी पर उसका माथा चूमती है सारे खिलाड़ियों ने अशोक कुमार को बच्चे की भांति अपनी गोद में उठा लिया पूरा का पूरा हिंदुस्तान खुशी के मारे पागल हो गया भारत की सड़को पर लाखो लोग एक साथ निकल पड़े।
यह तय हो चुका था भारत ने किसी भी खेल में पहली बार विश्व विजेता बनने का गौरव हासिल करने से कुछ ही सैकंड दूर है किंतु पाकिस्तान के खिलाड़ी इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं थे की भारत के लिए अशोक कुमार ने विजय गोल कर दिया है उस गोल को लेकर पाकिस्तानी खिलाड़ी अपना विरोध दर्ज कराते हुए अंपायर को चारो और से घेर लेते है किंतु अंपायर अपने फैसले पर अडिग रहते है और मैदान पर मैच समाप्ति की लंबी सिटी के साथ भारत विश्व विजेता बनने का गौरव हासिल कर लेता है।
भारत के कप्तान अजीत पाल सिंह के हाथो में चमचमाता हुआ विश्व कप होता है जन गण मन के साथ सारे भारतीय हाकी खिलाड़ी तिरंगा को आसमान की ऊंचाइयों को छूते देख गर्व से भर जाते है और उनकी आंखो से खुशी के आसू निकल पड़ते है।
विश्व कप हाकी की जीत में न जाने कितनी कहानियां छुपी हुई है ,हर मूव की अपनी कहानी है हर मैच की अपनी कहानी है , हर गोल की अपनी कहानी है ,गोलकीपर अशोक दीवान लेज़ली फ्रांडीज की अपनी कहानी है, फुल बैक सुरजीत सिंह,माइकल किंडो की अपनी कहानी है , हाफ लाइन में कप्तान अजीत पाल सिंह ,वीरेंद्र सिंह ,मोहिंदर पाल सिंह,ओंकार सिंह की अपनी कहानी है फॉरवर्ड गोविंदा ,शिवाजी पंवार ,चिमनी ,फिलिप्स ,हरचरण सिंह , पी कैलिया की अपनी कहानी है।
टीम के मैनेजर ग्रेट बलबीर सिंह , कोच बी एस बोधी की अपनी कहानी है। यहां तक की टीम के डाक्टर कार्ला की अपनी कहानी है कोई तो कभी इन सब महान खिलाड़ियों को उनकी जुबानी देश की इस महान जीत की कहानी को सुने और उसे रुपहले पर्दे पर फिल्म के रूप में लेकर आए।
जब विश्व विजेता भारतीय हाकी टीम स्वदेश लौटी तो फिल्मी सितारों ने देश के इन असली नायकों के साथ बंबई के वानखेड़े स्टेडियम में हाकी मैच खेला। भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने आवास पर इस टीम के स्वागत में समारोह का आयोजन किया। कई महीनो तक देश जश्न में डूबा रहा और महान कॉमेंटेटर जसदेव सिंह की कमेंट्री 47 वर्षो के बाद भी करोड़ो भारतीयों के कानो में गूंज रही है।