DSA Football League

लीग सम्पन्न लेकिन पिक्चर अभी बाकी है!

क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान

महामारी के डर भय से बे खबर यूरोप, लेटिन अमेरिका, अफ्रीका और एशिया में फुटबाल सहित तमाम खेल गतिविधियां जारी हैं। तारीफ की बात यह है कि फुटबाल लीग के आयोजन में दिल्ली भी उनसे पीछे नहीं रही। दिल्ली का उल्लेख इसलिए किया जा रहा है क्योंकि 140 करोड़ की आबादी वाले सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी है , जहां फुटबाल खासा लोकप्रिय खेल है। हालांकि भारतीय फुटबाल की हैसियत किसी से छिपी नहीं है और दिल्ली तो फुटबाल मानचित्र पर पिद्दी सी इकाई है।

तमाम उठा पटक के चलते डीएसए फुटबाल लीग का सुखद समापन हो गया है जोकि कोरोना काल में राजधानी की फुटबाल के लिए गर्व करने योग्य नतीजा है। वर्ष 2021 की सीनियर डिवीज़न लीग के पूरे होने को लेकर जो आशंका व्यक्त की जा रही थी वह भी गलत साबित हुई है। बेशक, कुछ विरोधियों के कलेजे में सांप जरूर लोट रहे होंगे लेकिन फुटबाल दिल्ली कठिन वक्त की चुनौती को पार पाने में बखूबी सफल रही।

सफल आयोजन के लिए दिल्ली साकर एसो., उसकी लीग सब कमेटी, भाग लेने वाले क्लब, क्लब अधिकारी, खिलाड़ी और मुट्ठी भर दर्शक साधुवाद के पात्र हैं। डीएसए अध्यक्ष शाजी प्रभाकरण और उनकी कर्मठ टीम की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम होगी।

कोरोना काल में राजधानी के नेहरू और अंबेडकर स्टेडियमों में मैचों का आयोजन न सिर्फ चुनौतीपूर्ण था, जोखिम भरा भी था। ऐसे में उन रेफरी लाइन्समैन की पीठ जोर से थपथपाने कीजरूरत है जिन्होंने गुंडई पर उतरे क्लब अधिकारियों का सामना निर्भीकता से किया और जरूरत पड़ने पर लाल पीले कार्ड भी दिखाए। ऐसे हिम्मतवर मैच संचालकों को सलाम!

दिल्ली एफसी का चैंपियन बनना डीएसए के इतिहास में एक ऐतिहासिक अध्याय जैसा है। विजेता टीम खूब खेली। बीच मैदान में उसके खिलाड़ियों का प्रदर्शन और व्यवहार सराहनीय रहे लेकिन टीम प्रबंधन को लेकर शिकायतों का अंबार लग गया। कुछ क्लब खुलकर तो कुछ एक चोरी छिपे विजेता टीम को कोसते देखे गए।

ज्यादातर अधिकारियों को शिकायत है कि दिल्ली एफसी को लेकर आयोजकों ने लचर रवैया अपनाया। लेकिन अब लाठी पीटने से कोई फायदा नहीं होने वाला। इतना जरूर है कि जिस क्लब को अजेय माना जा रहा था उसकी काट रेंजर्स क्लब ने खोज ली और 1-0 से पटखनी दे डाली। गढ़वाल एफसी ने भी वर्ष 2021 के अघोषित विजेता को ड्रा पर रोक कर अपनी ख्याति को बनाए रखा। बाकी क्लब भी खूब खेले। सुदेवा, हिंदुस्तान, रॉयल रेंजर्स, उत्तराखंड, तरुण संघा, एयर फोर्स और फ्रेंड्स यूनाइटेड ने कई यादगार मैच खेले।

लीग लगभग पूरी हो गई है। शायद चैंपियन का फैसला भी हो चुका है फिरभी कुछ तकनीकी पहलू बाकी हैं। अब बारी चुनाव की है। जी हां, अब दिल्ली की फुटबाल में सबसे गरमा गरम मुद्दा चुनाव का रहेगा। देखना यह होगा कि अध्यक्ष शाजी प्रभाकरण को चुनौती देने कौन मैदान में उतरेगा। सूत्रों की मानें तो चुनौती देने वाले एक से दो गुट हो सकते हैं।

लेकिन यदि शाजी निर्विरोध चुने जाएँ तो भी हैरानी नहीं होगी, क्योंकि पिछले चार सालों में उन्होंने दिल्ली की फुटबाल के चरित्र को बखूबी भांप लिया है। आम खिलाड़ी और क्लब शाजी की वर्किंग को पेशेवर मानते हैं जोकि आज की फुटबाल की बड़ी जरूरत है। देखते हैं ऊंट किस करवट बैठता है। लेकिन इतना तय है कि जो टीम शाजी को कोस रहे हैं वही सबसे पहले बे पेंदी के लोटे साबित होंगे।

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