अशोक ध्यानचंद
(हॉकी ओलंपियन, वर्ल्ड चैंपियन)
हिंदी के प्रख्यात कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला 1918 स्पेनिश फ्लू से हुई तबाही का वर्णन करते लिखते है – गंगा के तट पर मैं माँ गंगा में तैरती हुई लाशों को तिनके की भांति तैरते हुये देख रहा हूँ ।मेरी आँखों के सामने से देखते देखते मेरा परिवार गायब हो गया ।बस कोविड 19 की महामारी की दूसरी लहर ने हम सबको हिला कर रख दिया है।आज ऐसा ही कुछ मंजर मेरी आँखो के सामने तैरते हुये नजर आता हैं जब साथ मे काम किये ,साथ खेल मैदानों में प्रतियोगिता का उदघाटन समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बैठे मेरे आपके साथी यूं ही अचानक असमय ही हमे अलविदा कह देंगे, कभी सोचा भी नही था। आज उन्ही साथियों में से एक शानदार शख्सियत बी जी जोशी हमारा साथ छोडकर चले गए।
हॉकी के आंकड़ो के इस जादूगर से मेरी पहली मुलाकात 2007 में भोपाल के मयूर पार्क स्थित ट्रांजिट हॉस्टल के छोटे से कमरे में हुई थी। तब मैं मध्यप्रदेश हॉकी के मुख्य प्रशिक्षक के पद पर पदस्थ हुआ था। अपनी मिठास भरी मुस्कान बिखरते हुये उन्होंने मेरे कमरे में प्रवेश किया था। उनके चेहरे पर जो मुस्कान थी वही इस बात का परिचय दे रही थी कि मैं किसी अद्भुत और हॉकी को बेइंतहा चाहने वाले व्यक्तित्व से मिलने जा रहा हूं और उन्होंने परिचय के साथ ही अपने साथ लाये फ़ाइल फौल्डर को खोलकर मेरे सामने रखना शुरू किया।
मैं अचंभित औऱ अवाक था कि कोई व्यक्ति किसी खिलाड़ी के किसी खेल के इतने आंकड़े एक साथ कैसे संकलित कर सकता है। मेरे सम्पूर्ण खेल जीवन का व्यवस्थित लेखाजोखा औऱ मेरा ही क्या सम्पूर्ण हॉकी जगत का सारा इतिहास उनके खजाने में व्यवस्थित रखा होता था।एक खिलाड़ी न होकर खेल और खिलाड़ी के लिए ऐसा जबरदस्त जुनून देखने को शायद ही किसी ने देखा हो, जैसा मैं बी जी में देखता था।
रोम रोम में उनके हॉकी और उसके आंकड़े बसते थे ।कौन सा ओलिम्पिक , कौन सा विश्व कप, कौन सा एशियन गेम्स कौन सा खिलाड़ी कौनसा अपम्पायर, कौन सा फ़ाउल किंतने मिनट में किंतने पेनाल्टी कार्नर किंतने पेनाल्टी स्ट्रोक क्या क्या आँकड़े जोशी जी के पास नही होते थे । मैं जब उनके पास बैठता तो ऐसा महसूस होता हैं कि मैने अभी अभी 1975 का विश्व कप फाइनल में गोल किया है और विश्व कप जीता है।
आंकड़ो के संकलन से मैच का सजीव चित्रण आँखो के सामने कर देने की जोशी जी को महारथ थी । बी जी जोशी की एक याद जो मानवीय कार्य से जुड़ी हुई है। जब मैं बैतूल प्रवास के दौरान मेजर ध्यानचंद हॉकी स्टेडियम पहुचा तब वहां लहराहते पौधे को देख मैंने सहज ही इस पौधे के बारे में पूछ लिया तो पता चला कि यह पौधा बी जी जोशी के हाथों से लगा लछमी तरु का पौधा है जो आज कैंसर पीड़ितों के उपचार के लिये उपयोग में लाया जा रहा है जिससे आज वहाँ से मानवता की निरतंर सेवा हो रही है लेकिन उस मानवता के पौधे को लगाने वाला वह इंसान जिसने उसको स्वयं पानी से सींचकर लगाया था ।अब हमारे बीच नही है बस आंकड़े है और उनकी यादे है।
नेकदिल सौम्य मुस्कान बिखरने वाले बी जी जोशी का निधन हॉकी जगत की बहुत बडी त्रासदी है जिसका भरा जाना न केवल असंभव है बल्कि नामुमकिन है। मैं स्वयं और पूरे हॉकी जगत की ओर से अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ।