क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान और समाधि, चाहे कुछ भी कह लें, लेकिन अब योग को आप खेल भी कह सकते हैं, क्योंकि भारत सरकार ने इस विशुद्ध भारतीय कला को अब खेल का दर्जा दे दिया है। खेल मंत्रालय द्वारा योग को प्रतिस्पर्धी खेल केरूपमें अपनाए जाने के साथ ही अब ना सिर्फ़ योग का महत्व बढ़ा है, अपितु भारतीय जीवन शैली, संस्काओं, ऋषि मुनियों की जीवन पद्वति के प्रति सम्मानभाव बढ़ना भी स्वाभाविक है।
खेल और आयुष मंत्रालय के संयुक्त प्रयासों से योग को खेल के रूप में मान्यता का मतलब यह है कि जहां एक ओर योग हर आम और खास आदमी से जुड़ेगा तो साथ ही योग को अवसरवादियों और खेल बिगाड़नेवालों से भी सावधान रहना होगा।
मिल सकता हैओलंपिक खेल का दर्जा:
सरकार ने चूँकि योग को प्रतिस्पर्धी खेल मान लिया है, ऐसे में देश में योग को संचालित करने वाली सर्वमान्य संस्था का प्रयास रहेगा कि इस खेल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिलाई जाए
यदि यह संभव हो पाता है तो एशियन, विश्व स्तरीय और कामनवेल्थ स्तर की प्रतियोगिताओं का आयोजन भारत की अंतरराष्ट्रीय ख्याति को चार चाँद लगाएगा।
और जिस दिन योग को ओलंपिक खेल का दर्जा हासिल होगा वह दिन शायद भारतीय खेल इतिहास का स्वर्णिम दिन कहलाएगा। भले ही अभी सफ़र लंबा है लेकिन योग में है दम और देश की सरकार भी ज़रूर चाहेगी कि योग ओलंपिक खेलों के बीच जगमगाए।
ब्रेक डांस को टक्कर:
योग और ब्रेक डांस ठीक वैसे ही खेल हैं जैसे भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने ब्रेक डांस को स्पेन ओलंपिक 2024 में खेल के रूप में अपनाने का फ़ैसला किया है। यह तो वक्त ही बताएगा कि इस पाश्चात्य खेल में हमारे खिलाड़ी कितने सफल रहते हैं पर ब्रेक डांस को टक्क्र देने के लिए हमारा योग मैदान में उतर सकता है।
हालाँकि भारतीय संस्कृति लगभग लुप्त होती जा रही है और पश्चिम के देश भारतीय संस्कारों और संस्कृति की तरफ उन्मुख हो रहे हैं। दूसरी तरफ भारत में ब्रेक डांस का क्रेज़ बढ़ रहा है पर देखना होगा कि हमारे ब्रेक डाँसर सिर्फ़ फिल्मों या गली कूचों में ही कमर तोड़ डांस कर सकते हैं या ओलंपिक पदक की कसौटी पर भी खरा उतर पाएंगे।
बेदम कबड्डी और खो खो
कबड्डी, खोखो, मलखंब जैसे भारतीय खेल आज कहाँ है किसी से छिपा नहीं है। कबड्डी में भारत ने सात बार एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक जीते, विश्व चैंपियन भी बने। कुछ समय पहले कहा जा रहा था कि यह खेल एक दिन ओलंपिक में शामिल होगा और भारतीय पदक उम्मीदों को बढ़ाएगा।
लेकिन आज कबड्डी वहाँ खड़ी है जहाँ से कोई भी रास्ता ओलंपिक गाँव की तरफ नहीं जाता। प्रो कबड्डी लीग के सफल आयोजन के बाद भी यह खेल सिर्फ़ भारत के गांवों और चंद शहरों तक ही लोकप्रिय हो पाया है। पिछले एशियाड में ईरान से पिटने के बाद तो सारी उम्मीदें ख़त्म हो गई हैं। खो खो और मलखंब को लेकर हम चाहे कितने भी कसीदे पढ़ लें लेकिन इन खेलों में ओलंपिक घुसपैठ का दम कदापि नहीं है। हां, दिल बहलाने के लिए ग़ालिब का ख्याल अच्छा है!
चैम्पियनों के दिन की शुरुआत योग से:
योग ना सिर्फ़ शरीर को निरोग बनाता है अपितु बीमारियों और अन्य विकारों से लड़ने की क्षमता भी बढ़ाता है। खिलाड़ी चाहे क्रिकेट का हो, हॉकी, फुटबाल, एथलेटिक, बास्केट बाल, वॉली बाल, जिम्नास्टिक, तैराकी, मुक्केबाज़ी, कुश्ती टेनिस, बैडमिंटन या अन्य किसी भी खेल का, लगभग सभी योग के साथ दिन की शुरुआत करते हैं।
दुनिया के तमाम बड़े छोटे खिलाड़ी योग करते हैं। भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली, नामी पहलवान सुशील कुमार, योगेश्वर दत्त, नर सिंह, बैडमिंटन स्टार, सिंधु और सानिया, मुक्केबाज़ विजेंद्र सिंह, मैरी काम और अन्य सभी की दिनचर्या योग से शुरू होती है। ज़ाहिर है उनके लिए योग एक जीवन दायी संजीवनी है, जिसे अपनी आदतों में शुमार करने से वे चैम्पियन बन कर उभरे हैं।
सरकार के नियंत्रण मे रहे:
भारतीय खेल संघों और संगठनों पर सरसरी नज़र डालें तो हर तरफ गंदी राजनीति का खेल चल रहा है। नतीजन दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र खेलों में एक पिछड़ी क़ौम बन कर रह गया है। ऐसे में डर इस बात का है कि जिस योग को भारत के ऋषि मुनियों और ज्ञानियों ने घोर तपस्या का माध्यम बनाया, उसके खेल दर्जा पा जाने के बाद भी कहीं अन्य खेलों की तरह गंदा खेल शुरू ना हो जाए। यदि ऐसा हुआ तो भारतीय मूल्यों और आदर्शों को गहरा आघात पहुँचेगा।
ज़रूरत इस बात की है कि योग को एक पवित्र खेल के रूप में अपनाया जाए और योग खिलाड़ियों एवम् साधकों को कड़ी स्पर्धा के चलते भी धैर्य बनाए रखने की सीख दी जाए। ऐसा तब ही संभव है जब योग फ़ेडेरेशन का नियंत्रण सरकार के हाथों में रहे और योग सीखने वाली संस्थाओं और संगठनों को समुचित सम्मान दिया जाए। उनमें तालमेल बैठाना भी ज़रूरी है।
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