क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
हालाँकि भारतीय ओलंपिक समिति के अध्यक्ष डॉक्टर नरेंद्र बत्रा कह रहे हैं कि स्थगित ओलंपिक खेलों का आयोजन निर्धारित तिथियों पर किया जाएगा और कोई भी ताकत हमारे खिलाड़ियों को भाग लेने से नहीं रोक सकती। उन्हें यह भी पता है कि यूरोप और अमेरिका के तमाम देश और अधिकांश एशियाई देशों ने फिलहाल भारतीयों को स्वीकार नहीं करने का फैसला किया है।
ऐसा भारत में लगातार बढ़ रहे कोरोना के मामलों के कारण हो रहा है। भारत आने जाने वाली हवाई यात्राएं भी स्थगित हैं। बेशक खिलाड़ी भी डरे सहमे हो सकते हैं।
कोरोना के फैलाव को लेकर दुनियाभर में भारत सरकार की विफलता की चर्चा हो रही है , जिसका सीधा असर खेलों पर भी पड़ा है। भारतीय खिलाड़ियों के लिए अधिकांश देशों में ट्रेनिंग लेना मुश्किल होता जा रहा है। ओलंपिक के लिए मात्र तीन महीने का समय बचा है और हमारे खिलाड़ी बीच मझधार में फंस गए हैं।
नतीजन आशंका व्यक्त की जा रही है कि कहीं अन्तरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ऐन मौके पर भारत की भागीदारी को लेकर सवाल खड़े न कर दे। यदि ऐसा कोई निर्णय लिया जाता है तो देश के लिए शर्मनाक होगा।
हालांकि मेजबान जापान भी महामारी के चलते ओलंपिक आयोजन के मामले में दो फाड़ है। एक धड़ा चाहता है कि आपदा के चलते खेल रद्द कर दिए जाएं। दूसरी तरफ सरकार और टोक्यो आयोजन समिति कह रहे हैं कि अरबों खर्च हो चुका है। यदि खेल रद्द हुए तो इतिहास जापान को कभी माफ नहीं करेगा। उसकी प्रतिष्ठा को गहरा आघात पहुंचेगा।
ज्यादातर खेलों के ओलंपिक क्वालीफायर हो चुके हैं और सौ से अधिक भारतीय खिलाड़ी भाग लेने की पात्रता पा सकते हैं लेकिन कितने मैडल जीत सकते हैं, कहना मुश्किल है। वैसे भी इस बार बहाने की जरूरत नहीं है। कोरोना पहले ही बहाना बन चुका है। फिरभी कुश्ती, मुक्केबाजी, निशानेबाजी और हॉकी में पदक विजयी प्रदर्शन की उम्मीद की जा रही है।
देखा जाए तो भारत के लिए टोक्यो ओलंपिक खासा चुनौती पूर्ण होने जा रहा है। पहली चुनौती विश्व समुदाय का दबाव हो सकती है। यदि अन्य देशों ने भारत में कोरोना के बढ़ते मामलों को लेकर विरोध किया और भारत को भाग लेने से रोका तो ओलंपिक आंदोलन को आघात पहुंचेगा और गुटबाजी भी हो सकती है।
ऐसी स्थिति में भारत का साथ देने वाले देश भी ज्यादा नहीं होंगे। इतना तय है कि अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति इस बार भारत के दल का विशाल आकार स्वीकार ना करे। कुल मिलाकर भारतीय ख़िलाड़ियों के सामने भाग लेने से पहले की चुनौती खासी कड़ी हो सकती है। नतीजन, सरकार, आईओए, खेल संघ और खिलाड़ियों पर दबाव होना स्वाभाविक है। यदि इस मुद्दे को जल्द नहीं सुलझाया गया तो भारत अलग थलग भी पड़ सकता है।