Why Australian Lisa slapped BCCI cheek

बीसीसीआई के गाल पर ऑस्ट्रेलियन लिजा ने क्यों जड़ा थप्पड़?

क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान

भले ही क्रिकेट भारत में नंबर वन खेल है और हर बच्चा बस क्रिकेटर बनाना चाहता है। लेकिन यह सच्चाई सिर्फ पुरुष क्रिकेट तक सीमित है। महिला क्रिकेट की हालत ठीक अन्य खेलों जैसी है, जिन्हें अपना अस्तित्व बचाने के लिए सालों से संघर्ष करना पड़ रहा है।

कोरोना काल में आईपीएल खेला गया। क्रिकेट गतिविधियां भी चलती रहीं पर सिर्फ पुरुष खिलाड़ियों तक सीमित रहीं। इस बीच कुछ स्टार खिलाड़ियों से लेकर रणजी और स्थानीय खिलाड़ियों ने कोरोना की वैकशीन भी लगवाईं औऱ देश के प्रचार माध्यमों ने इस खबर को प्रमुखता से छापा।

दूसरी तरफ 1000 रन और 100 विकेट का कीर्तिमान स्थापित करने वाली भारत की वेदा कृष्णमूर्ति ने अपनी मां और बड़ी बहन को खो दिया लेकिन उसकी किसी ने खबर नहीं ली। दुखों का पहाड़ यहीं तक नहीं टूटा। उसे इंग्लैंड जाने वाली भारतीय टीम में भी स्थान नहीं मिल पाया।

हैरानी वाली बात यह है कि वेदा को पीड़ा के वक्त महिला टीम की खैरख्वाहों और दुनिया के सबसे धनी क्रिकेट बोर्ड ने भी अकेला छोड़ दिया। सहानुभूति तो दूर बीसीसीआई ने उसके दुख को और बढाया। लेकिन खिलाड़ियों की कद्रदान के रूप में ऑस्ट्रेलिया की पूर्व कप्तान लिजा स्थालेकर सामने आई है। उसने बाकायदा एक बयान जारी कर कहा कि भारतीय बोर्ड उसके दुख में शामिल हो सकता था और कह सकता था कि आगामी इंग्लैंड दौरे के लिए शोकाकुल खिलाड़ी के नाम पर विचार नहीं किया गया।

आईसीसी हाल आफ फेम में स्थान पाने वाली लिजा ने बीसीसीआई पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिया है, जिसकी आवाज शायद सौरभ गांगुली और उनके थिंक टैंक ने भी जरूर सुन ली होगी। लिजा ने भारतीय बोर्ड को सबक देते हुए यह भी कहा है कि सिर्फ क्रिकेट आयोजन पर ध्यान न दें। उसे अपने खिलाड़ियों का बेहतर तरीकों से ध्यान भी रखना चाहिए।

देखा जाए तो लिजा ने कुछ भी गलत नहीं कहा। लेकिन भारत में पुरुष और महिला क्रिकेट में जमीन आसमान का अंतर है। किसी गली कूचे के पुरुष खिलाड़ी को छींक आ जाए, उसके किसी परिजन को बुखार हो जाए या कोरोना हो जाए तो बोर्ड और उसके चाटुकार मीडिया के पेट में मरोड़े पड़ने लगते हैं। लेकिन एक समर्पित महिला खिलाड़ी के दुख को किसी ने भी बांटने का प्रयास नहीं किया। भला हो ऑस्ट्रेलियन खिलाड़ी का जिसने भारतीय क्रिकेट बोर्ड को आइना दिखाने का साहस दिखाया है।

यह जग जाहिर है कि भारत में महिला क्रिकेट की हालत बहुत अच्छी नहीं है। अनेक अवसरों पर पुरुष खिलाड़ियों ने बेहद खराब प्रदर्शन किया लेकिन उनसे कोई सवाल नहीं पूछा जाता। उन्हें लाखों करोड़ों दिए जाते हैं जबकि महिला खिलाड़ियों के साथ हमेशा से सौतेला व्यवहार होता आया है। वेदा की उपेक्षा से यह तो साबित हो गयाहै कि महिला क्रिकेट के प्रति हमारे क्रिकेट कर्णधार ज्यादा गंभीर नहीं हैं।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *