Corona went to sports journalism

खेल पत्रकारिता को लील गया कोरोना।

क्लीन बोल्ड/ राजेन्द्र सजवान

‘जंगल में मोर नाचा किसने देखा’, यह कहावत जरूर है लेकिन आज की परिस्थितियों के हिसाब से भारतीय खेल पत्रकारिता की दयनीय हालत पर फिट बैठती है।

कोरोना काल में दुनिया के सभी बड़े छोटे और अमीर ग़रीब देशों ने तमाम उतार चढ़ाव देखे। धनाढ्य फकीर बन गए और ग़रीब और ग़रीब हो गए। लेकिन खेल पत्रकारों के साथ जो कुछ हुआ उसे देखकर तो यही कहा जा सकता है कि आने वाले सालों में खेल पत्रकारों के लिए रोज़ी रोटी और सम्मान कमाना आसान नहीं होगा। बड़े- छोटे मीडिया हाउस चरमरा गए हैं| दर्जनों अखबार बंद हो चुके हैं या मर मर कर चल रहे हैं।

हालाँकि बड़े-छोटे पदों पर आसीन लोगों की नौकरियाँ भी गईं लेकिन सबसे बड़ी मार पड़ी बेचारे ग़रीब खेल पत्रकारों पर, जिनके मालिकों ने खेल पेज तक बंद कर डाले या जैसे तैसे चल रहे हैं। मीडिया हाउस और अखबारों के मालिक तर्क दे रहे हैं कि चूंकि खेल आयोजन ठप्प पड़े हैं इसलिए खेल पेज या खेल खबरों पर गाज गिरना स्वाभाविक है।

कोरोना काल में कई खेल पत्रकारों की नौकरी गई तो कुछ को आधी या उससे भी कम तनख़्वाह पर काम करने के लिए विवश किया गया। यह हाल राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रों का है। छोटे, साप्ताहिक और पाक्षिक पत्रों ने तो खेल पेज के साथ खेल पत्रकारों का ख़ाता भी बंद कर दिया है।

कोई माने या ना माने लेकिन यह सत्य है कि खेल पत्रकारों को आज भी वह दर्जा नहीं मिल पाया है, जिसके वे हकदार बनते हैं। उन्हें मीडिया हाउस और उनके संपादक मंडल हेय दृष्टि से देखते हैं। कारण कई हैं। आम तौर पर यह मान लिया जाता है कि जो कुछ नहीं बन सकता खेल पत्रकार बन जाता है। ऐसा इसलये है क्योंकि भारतीय खेलों की स्थिति बेहद दयनीय है। जब 135 करोड़ की आबादी वाला देश ओलंपिक में बमुश्किल पदक जीत पाता है तो खेल पत्रकारों को ताने सुनने को मिलते हैं। चूँकि खिलाड़ी बेहद फिसड्डी हैं इसलिए खेल पत्रकारों के बारे में भी राय बना ली जाती है।

यह सही है कि कोरोना के कारण भारत में खेल गतिविधियों पर लगभग विराम लग गया है। अखबार या चैनल के मालिक यह भूल रहे हैं कि सिर्फ बलात्कार, ठगी, खून खराबे, लूट, नेताओं के कुकर्मों और उनके स्तुतिगान की खबरों से ही इस देश में खबरों का कारोबार चल रहा है। उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश का एक बड़ा वर्ग अखबार पढ़ने की शुरुआत खेल पेज से करता है।

हालांकि अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, स्पेन, चीन जापान, इटली आदि देश भी महामारी की चपेट हैं लेकिन इन देशों ने खेल पत्रकारों के साथ अन्याय नहीं किया। प्राप्त जानकारी के अनुसार अग्रणी खेल राष्ट्रों के समाचार माध्यमों ने अपने पूर्व चैंपियनों और खेल जानकारों की मदद से भविष्य के लिए योजनाएं बनाईं । ज्यादातर खेल पत्रकारों को टोक्यो ओलंपिक 2021 की तैयारियों और योजनाओं के साथ जोड़ा गया है और उनके द्वारा तैयार रिपोर्ट पर देश के खेलों को बढ़ावा देने के तरीके खोजे जा रहे हैं।

लेकिन भारत में खेल पत्रकारों और खेल पत्रकारिता को कभी भी सम्मान नहीं मिल पाया। कोरोना ने तो यहां तक साबित कर दिया कि भारत में खेल पत्रकार एक बेकार प्राणी है। अखबार, टीवी चैनल या किसी भी समाचार एजेंसी में उसके बिना भी काम चल सकता है। इसी सोच का नतीजा भारतीय खेल भुगत रहे हैं। 140 करोड़ की आबादी एक ओलंपिक चैंपियन क्यों पैदा नहीं कर पाती, इसका जवाब भी मिल गया है।

सीधा सा मतलब है कि मोर चाहे, जंगल, सड़क, गली या खलिहान में नाचे, उसके नाचने की खबर छपने से ही दुनिया को पता चलता है। इसी प्रकार खेल गतिविधियां कहाँ हुईं या क्यों नहीं हुईं का पता भी खेल पेज से ही चलेगा। लेकिन खेल पेज नहीं छपेगा या आधा अधूरा छपेगा तो खेल पत्रकार की पीड़ा को समझा जा सकता है। यह भी पता चल जाएगा कि भारतीय खेल क्यों पिछड़े हैं और भारत के खेल महाशक्ति बनने के दावे क्यों झूठे साबित होते आए हैं!

1 thought on “खेल पत्रकारिता को लील गया कोरोना।”

  1. दादा सरकार की नीतियों के कारण खेल हो नही पा रहे है और इसका सीधा असर खेल पत्रकारिता में पड़ रहा है।
    इसमें सरकार के अलावा परिस्तिथिया भी है।मैं आपसे पूर्णतया सहमत हूं।
    दादा हमने इसी से लड़ना है।
    थैंक्स

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