क्लीन बोल्ड/राजेन्द्र सजवान
क्रिकेट क्यों ओलंपिक खेल का दर्जा पाना चाहता है और क्यों भारतीय क्रिकेट बोर्ड 2028 के ओलंपिक खेलों में भागीदारी को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं है? इन सवालों का सीधा सा जवाब यह है कि अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी अपने खेल को विश्व स्तर पर स्थापित करना चाहती है। लेकिन भारतीय क्रिकेट बोर्ड इसलिए असमंजस में है क्योंकि उसे अपने खेल मंत्रालय और आईओए के इशारे पर चलना स्वीकार नहीं है।
हाल ही में हुई बोर्ड मीटिंग में ओलंपिक में क्रिकेट की वापसी पर बात तो हुई पर अधिकांश सदस्यों के बीच यही मंत्रणा हुई कि यदि क्रिकेट टीम ओलंपिक खेलती है तो उसे ओलंपिक संघ के दिशा निर्देशों और खेल कोड के अनुरूप चलना पड़ेगा और उसे डोप प्रक्रिया से भी गुजरना पड़ सकता है। यह सब क्रिकेट को बर्दाश्त नहीं है।
एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार बीसीसीआई ने ओलंपिक कमेटी से कुछ और जानकारी चाही है। तत्पश्चात ही इस मुद्दे पर आगे कोई निर्णय लिया जा सकता है। एक पूर्व अधिकारी के अनुसार क्रिकेट को ओलंपिक बिरादरी में शामिल होने से पहले अपनी सदस्य इकाइयों से बातचीत करनी पड़ेगी और तत्पश्चात ही कोई फैसला लिया जा सकता है।
इंग्लैंड ने जीता था पहला ओलंपिक गोल्ड:
इंग्लैंड न सिर्फ क्रिकेट का जन्मदाता है बल्कि पहला ओलंपिक गोल्ड भी उसने हासिल किया है। हुआ यूं कि जब 1896 के पहले ओलंपिक खेल एथेंस में आयोजित हुए तो क्रिकेट को भी शामिल करने की बात चली थी। तब बहुत कम देश क्रिकेट खेलते थे इसलिए आयोजन संभव नहीं हो पाया।
1900 के पेरिस खेलों के लिए कुछ देशों ने हामी भरी लेकिन अंततः सिर्फ इंग्लैंड और फ्रांस ही भाग ले पाए। एक मैच खेला गया जिसमें इंग्लैंड 158 रनों से विजयी रहा। लेकिन इस नतीजे को ओलंपिक रिकार्ड में दर्ज नहीं किया गया। 1912 में निर्णय लिया गया कि इंग्लैंड को ओलंपिक गोल्ड और फ्रांस को सिल्वर दिया जाए।
आईओए की अधीनता स्वीकार नहीं:
ओलंपिकमें भागीदारी को लेकर भारतीय क्रिकेट बोर्ड फिलहाल कोई फैसला नहीं ले पाया है। बोर्ड अध्यक्ष सौरभ गांगुली और उनके अन्य पदाधिकारियों के मूड सेनहीं लगता कि ओलंपिक में टीम उतारने को लेकर कोई भी गंभीर है, हालांकि गांगुली क्रिकेट को शामिल किए जाने के फैसले का स्वागत कर चुके हैं फिरभी खुल कर नहीं बोलना चाह रहे।बड़ा कारण यह माना जा रहा है कि किसी को भी आईओए की चौधराहट मंजूर नहीं है।
हो सकता है कि दो बड़ी संस्थाओं के हित आपस में टकराने के कारण नया विवाद पैदा हो जाए। बीसी सीआई को इस बात का गुमान होना स्वाभाविक है कि वह वह सबसे धनी और प्रभावी खेल इकाई है। उसे आईओए की अधीनता कदापि स्वीकार नहीं होगी।
खेल कोड से परहेज:
बीसीसीआई को खेल मंत्रालय के झंडे तले काम करना भी शायद मंजूर नहीं होगा। यदि उसने एक राष्ट्रीय खेल फेडरेशन की तरह का दर्जा स्वीकारा तो क्रिकेट और क्रिकेटरों के अहंकार पर चोट पहुंचेगी। उन्हें अन्य खेलों की तरह ट्रीट किया जाएगा जोकि उन्हें कदापि सहन नहीं होगा। यह नहीं भूलना चाहिए कि जितना देश का कुल खेल बजट है उससे कहीं ज्यादा आईपीएल पर खर्च होता है।
खेल मंत्रालय पहले भी क्रिकेट के पर कतरने की कोशिश कर चुका है पर उसेकभी कामयाबी नहीं मिली।
धनाढ्य क्रिकेट :
क्रिकेट की अकड़ का बड़ा कारण यह भी है कि उसके सामने किसी भी खेल फेडरेशन की कोई हैसियत नहीं है। बोर्ड धनी है तो एक अदना सा क्रिकेटर भी अन्य खेलों के चैंपियनों पर भारी पड़ता है। क्रिकेट की लोकप्रियता के सामने कोई भी खेल कहीं नहीं ठहरता।आईपीएल में एक नया खिलाड़ी करोड़ों पा जाता है जबकि अन्य खेलों की लीग का बजट उस अकेले खिलाड़ी को मिलने वाले पैसे के सामने कम पड़ता है।
क्रिकेटरों पर लांछन:
क्रिकेट को अन्य खेलों के साथ अंतरराष्ट्रीय भागीदारी के मौके पहले भी आए। लेकिन कामनवेल्थ खेलों और एशियाड में भाग लेने वाले खिलाड़ी क्रिकेट की नखरेबाजी के शिकार नज़र आए। जबकि ओलंपिक आंदोलन के अनुसार सभी देशों और खिलाड़ियों के लिए समान नियम कानून तय हैं। क्रिकेटरों पर यह आरोप भी लगा कि उन्होंने कामनवेल्थ खेलों में जानबूझ कर हार को गले लगाया ताकि रुपए डालरों के लिए पेशेवर आयोजन में भाग ले सकें।