क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
हालांकि, भारतीय खेलों के कर्णधार, मानने वाले नहीं है लेकिन कोरोना के चलते भारत ने इतना कुछ खो दिया है कि संभलने में कई साल लग सकते हैं। भले ही सरकार कितने भी दावे करे पर अब तो भारतीय न्याय व्यवस्था के पालनहार भी कह रहे हैं कि देशवासियों के साथ कुछ भी ठीक नहीं हो रहा।
अर्थव्यस्था पूरी तरह चरमरा गई है और गरीब एवम मजदूर वर्ग नारकीय जीवन जीने के लिए मजबूर है। ऐसे में यदि हम हमेशा की तरह जगहंसाई के लिए ओलंपिक में भारी भरकम दल भेजेंगे तो कोरोना पीड़ित और कुचली गई अर्थव्यवस्था वाले देशवासियों के साथ घोर पाप कहा जाएगा।
टोक्यो ओलंपिक पर अब भी संशय बना हुआ है। कुछ देश कोरोना के कहर के चलते भाग नहीं लेने का फैसला कर चुके हैं तो बाकी ने दल का आकार बहुत छोटा करने का फैसला किया है। लेकिन शर्मनाक बात यह है कि जिस देश को उसकी नकारा सरकारों ने नरक बना दिया है , उसके अवसरवादी बड़े से बड़ा दल भेजने की कुचेष्टा में लगे हैं।
दवा मिल नहीं रही, आक्सीजन की कमी के चलते सैकड़ों – हजारों जानें जा रही हैं, आम नागरिक भूख और बेरोजगारी से जूझ रहा है। ऐसे में ओलंपिक की बात करना भी तर्कसंगत नहीं लगता।
पूर्व खिलाड़ियों, खेल प्रशासकों, कोचों और खेल विशेषज्ञों का एक बड़ा वर्ग तो यहां तक कहने लगा है कि सिर्फ उन्हीं खिलाड़ियों को ओलंपिक में भेज जाए, जिनसे पदक की उम्मीद है। इसबारे में खेल मंत्रालय, आईओए और खेल संघों की सिफारिशों को कतई न माना जाए। उनसे सिर्फ खेल- खिलाड़ियों के प्रदर्शन के बारे में रिपोर्ट मांगी जाए और बाकी फैसला जनता की अदालत में किया जाए।
भारतीय ओलंपिक प्रदर्शन और दलों के आकार पर नजर डालें तो खेल मंत्रालय और आईओए ने बार बार देश को ठगा है,गुमराह किया है। गलत आंकड़े परोस कर देशवासियों के खून पसीने की कमाई को बर्बाद किया गया।
कुछ पूर्व ओलम्पियनों के अनुसार तीसवां स्थान पाने वाली तीरंदाज, पांच में चौथा स्थान लेने वाले जिम्नास्ट, बीसवां स्थान पाने वाले एथलीटों, डूबी नाव वाले नौका चालकों और अन्य फिसड्डीयों को टोक्यो भेजना आज के हालात को देखते हुए ठीक नहीं है। अधिकांश खेल जानकर चाहते हैं कि उन्हीं खिलाड़ियों को भेजा जाए जिनसे पदक की उम्मीद हो या जो कमसे कम पहलेआठ स्थान पाने के हकदार हों।
इसमें दो राय नहीं कि कुश्ती,कुक्केबाजी, निशानेबाजी, बैडमिंटन और एक दो अन्य खेलों में हमारे खिलाड़ी लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। पदक की उम्मीद वाले इन खेलों को प्राथमिकता अवश्य दी जाए लेकिन चोर दरवाजे से ओलंपिक गांव में सैर सपाटे का वक्त फिलहाल नहीं है।
जो देश सौ साल में मात्र एक व्यक्तिगत स्वर्ण जीत पाया है और जिसने बार बार बड़े दल भेजने का रिकार्ड बनाया है, उसे अब तो शर्म आनी चाहिए। खासक्कर, खेल मंत्रालय और आईओए को नैतिकता दिखानी होगी। एक पूर्व ओलंपियन और विशव चैंपियन हॉकी खिलाड़ी की राय में क्योंकि देश महामारी से त्रस्त है, ऐसे में एक भी अवसरवादी खिलाड़ी और अधिकारी को ओलंपिक में भेजना देशवासियों के साथ गद्दारी होगी।
इस पैसे को कोरोना पीड़ितों और ऑक्सीजन की कमी से मरने वाले के परिजनों पर खर्च किया जाए तो बेहतर रहेगा। हो सके तो कोर्ट की निगरानी में अंतिम निर्णय लिया जाए। ऐसा इसलिए भी जरूरीहै क्योंकि भारतीय दल बार बार दलदल लपेट कर स्वदेश लौटता आया है।