क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान
भारतीय हॉकी टीम की रक्षा दीवार और जाने माने ड्रैग फ्लिकर रुपिंदर पाल सिंह ने अन्तरराष्ट्रीय हॉकी को अलविदा कहने का फैसला किया है। रुपिंदर ने बाकायदा एक भावुक बयान के साथ अपने सन्यास की घोषण की है।
हालांकि उस पर टीम में बने रहने का दबाव डाला जा रहा है। यार दोस्त, प्रशंसक, साथी खिलाड़ी, कोच, स्पोर्र्ट स्टाफ, परिजन और तमाम लोग उससे कुछ और साल टीम में बने रहने की गुहार लगा रहे हैं लेकिन उसने शायद बहुत सोच समझ कर फैसला लिया है।
2008में अपना अंतर राष्ट्रीय करियर शुरू करने वाले इस खिलाड़ी ने 13 साल के लंबे पीरियड तक भारतीय हॉकी को सेवा दी और अनेक आयोजनों में हीरो बनकर उभरे। एशियाड, कॉमनवेल्थ खेल, वर्ल्ड कप और ओलंम्पिक में उसने कई यादगार पर्दर्शन किए। अनेक अवसरों पर श्रेष्ठ खिलाड़ी का सम्मान भी पाया। 223 मैचों में 119 गोल करने और सैकड़ों गोल बचाने का रिकार्ड उसके साथ जुड़ा है।
रुपिंदर के बारे में कहा जाता है कि जब कभी भारत को गोल की जरूरत हुई उसने पेनल्टी कार्नर, पेनल्टी स्ट्रोक और कभी कभार फील्ड गोल दाग कर भारत को विजयी बनाया। टोक्यो ओलंम्पिक में यूं तो सभी भारतीय खिलाड़ी एक मैच विजेता टीम के रूप में खेले , सभी ने अपना अपना रोल बखूबी निभाया लेकिन मुश्किल पलों में रुपिंदर मैच विजेता खिलाड़ी बनकर सामने आया।
पेनाल्टी कार्नर मिलते ही भारतीय खिलाड़ियों के चेहरे इसलिए खिल जाते क्योंकि उनके पास रुपिंदर जैसा निशानची था। फार्म में चल रहा हमारा 31 वर्षीय खिलाड़ी अब आगे जारी नहीं रखना चाहता। जाते जाते वह भारतीय हॉकी को उस मुकाम तक पहुंचा चुका है जहां से खुशहाल दिनों की राह आसान नजर आती है।
टोक्यो ओलंम्पिक में यूं तो सभी खिलाड़ियों ने बढ़ चढ़कर योगदान दिया लेकिन पेनल्टी कार्नर पर जमाए उसके मैच विजयी गोल हमेशा याद किए जाएंगे। जिस् पदक के लिए भारतीय हॉकी 41 सालों से तरस रही थी उसे हासिल करने के बाद रुपिंदर का सन्यास बताता है कि वह अपनी टीम और साथी खिलाड़ियों से संतुष्ट है और अब भारतीय हॉकी को उनके हवाले सुरक्षित हाथों में सौंप देना चाहता है।
हालांकि कई साथी खिलाड़ी उसे रोकने की कोशिश कर रहे हैं पर वह जानता है कि 2024 के पेरिस ओलंम्पिक तक श्रेष्ठ फार्म में बने रहना आसान नहीं होगा। फिटनेस के मामले में वह बेजोड़ है लेकिन वह अपने पूर्व खिलाड़ियों की शानदार परंपरा को बनाए रखना चाहता है।
थोड़ा पीछे चलें तो अधिकांश महान खिलाड़ियों ने उस वक्त सन्यास लिया जबकि टाप फार्म में थे। हरविंदर सिंह, गणेश, गोविंद, अजीतपाल, अशोक, मोहम्मद शाहिद आदि ने भी कुछ ऐसी ही स्थिति में हॉकी टांग दी थी।
रुपिंदर की उम्र के कुछ अन्य खिलाड़ी भी सन्यास के बारे में सोच रहे हैं। वे जानते हैं कि आज की तेज तर्रार हॉकी में वही खिलाड़ी ज्यादा समय तक टिक सकता है जिसकी फिटनेस लाजवाब हो और जिसमें यूरोप के तेज तर्रार खिलाड़ियों का मुकाबला करने का दमखम हो। उसके पीछे पीछे शायद श्रीजेश, बीरेंद्र लाकरा और कप्तान मनप्रीत भी बस कर जाएं।