क्लीन बोल्ड/ राजेन्द्र सजवान
ओलंपिक खेल 2020 में होने थे लेकिन कोरोना के चलते एक साल के लिए स्थगित हो गए । आगे भी दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि खेल नई तिथियों पर हो पाएंगे या कुछ और बदलाव संभव है। इस अगर मगर के चलते वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र पर खास ध्यान दिया गया है और हैल्थ केयर बजट 94,000 करोड़ से बढ़ा कर 2.4लाख करोड़ रुपए कर दिया गया है।
लेकिन जो सरकार देशवासियों को फिट रखने के लिए दिन रात ‘खेलो इंडिया’ और ‘फिट इंडिया’ जैसे आयोजनों की पैरवी कर रही है उसे खेलों की चिंता शायद कुछ कम है। वरना क्या कारण है कि खेल बजट में बढोतरी की बजाए कटौती की गई है।
नतीजन, खेल जानकार, खिलाड़ी, खेल विशेषज्ञ और खेल अधिकारी बेहद खफा हैं। हालांकि खेल मंत्री ने आश्वासन दिया है कि जरूरत पड़ने पर सरकार से अधिक राशि मांगी जा सकती है।
फ़िरभी वित्त मंत्री सीतारमण ने खेल मंत्री किरण रिजिजू के उस दावे को ज्यादा तबज्जो नहीं दी जिसमें वह बार बार भारत को खेल महाशक्ति बनाने की बात करते हैं। खेल मंत्री का सपना 2028 तक देश को ओलंपिक पदक तालिका में पहले दस देशों में शामिल करने का है। अर्थात अगले छह -सात सालों में वह भारतीय खेलों की पूरी तस्वीर बदल देना चाहते हैं।
लेकिन ओलंपिक वर्ष के खेल बजट पर नज़र डालें तो खेलों के लिए 2596.14 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं, जोकि पिछले वित वर्ष के बजट से 230.78 करोड़ रुपए कम हैं। महामारी के चलते पहले भी बजट में कटौती की गई थी, क्योंकि खेल गतिविधियां ठप्प पड़ी थीं।
खिलाड़ियों के विदेश दौरे बंद थे और विदेशी कोचों पर भी बहुत कम खर्च किया गया। अब चूंकि खिलाड़ी मैदानों की तरफ लौट रहे हैं और ओलंपिक की तैयारी में जुट गए हैं, ऐसे में उम्मीद की जा रही थी कि बजट में खिलाड़ियों पर ज्यादा खर्च का प्रावधान हो सकता है।
खेल बजट में कटौती का सीधा सा मतलब है कि देशवासियों के स्वास्थ्य की चिंता करने वाली सरकार को खेल और खिलाड़ियों से ज्यादा सरोकार नहीं है। खेलो इंडिया और फिट इंडिया जैसे आयोजन भी खेल मंत्रालय की प्राथमिकता से बाहर नज़र आ रहे हैं। पिछले की तुलना में खेलो इंडिया के बजट में 233 करोड़ की कटौती का सीधा सा मतलब है कि इस अभियान में गतिरोध पैदा हो सकता है।
भले ही खेलों के नतीजे कड़ी मेहनत और ईमानदार प्रयासों से तय होते हैं लेकिन पैसे की भूमिका अहम होती है। ओलंपिक पदक तालिका और अग्रणी देशों के खेल बजट के बीच का संबंध आसानी से समझा जा सकता है। चीन, अमेरिका, जापान, फ्रांस, इंग्लैंड आदि देश इसलिए खेलों में आगे हैं क्योंकि उनका खेल बजट भारत के मुकाबले कई गुना ज्यादा है। रियो ओलंपिक की पदक तालिका को देखें तो जिन देशों ने खिलाड़ियों पर अधिकाधिक पैसा बहाया या अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया उनका प्रदर्शन बेहतर रहा है।
खेल मंत्री जी यदि ओलंपिक में भारतीय सपने को साकार होते देखना चाहते हैं तो रियो ओलंपिक 2016 की पदक तालिका के दिग्गजों, अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, यूक्रेन, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, नीदरलैंड, ब्राज़ील, इटली, पोलैंड, स्पेन, फ्रांस जापान, कोरिया आदि का मुकाबला करने के लिए कमर कस लें। इनके अलावा कम से कम तीस अन्य देश भारतीय उम्मीदों पर भारी पड़ते आए हैं। इन सभी देशों के खेल बजट के सामने भारत का बजट ऊंट के मुहं में जीरा समान है। साधन सुविधा, स्टेडियमों का रखरखाव, खिलाड़ियों की खुराक, विदेश दौरे, विदेशी कोचों के भुगतान पर करोड़ों खर्च होते हैं।
खेल मंत्रालय और खेल प्राधिकरण के काबिल अधिकारी और अन्य का योगदान भले ही नगण्य हो परंतु उन पर किया जाने वाला खर्च बजट का एक बड़ा हिस्सा होता है। बेहतर होगा खेल मंत्रालय टोक्यो ओलंपिक को गंभीरता से ले और आज से ही 2024 के खेलों की तैयारी शुरू कर दे। पैसे की ताकत से ही ऐसा संभव हो सकता है।वरना खेल महाशक्ति बनने का सपना देखते रह जाओगे।