क्लीन बोल्ड/राजेंद्र सजवान
“टोक्यो ओलंम्पिक में भारत को खाली स्टेडियमों का फायदा मिलेगा”, भारतीय क्रिकेट टीम के साथ फिजियोथेरेपिस्ट रहे और वर्तमान में ओलंम्पिक में भाग ले रहे 11 खिलाड़ियों से जुड़े जान ग्लास्टर कहते हैं कि हैं कि चूंकि ओलंम्पिक में अधिकांश स्टेडियम खाली रहेंगे, इसलिए भारतीय ख़िलाड़ी लाभ की स्थिति में होंगे।
महामारी के चलते खेल प्रेमियों को प्रवेश की अनुमति नहीं है या बहुत कम संख्या में प्रवेश मिल पाएगा। ग्लास्टर का मानना है कि भारत में बहुत से खेल दर्शकों की अनुपस्थिति या बहुत कम संख्या के चलते खेले जाते हैं। ऐसे में जापान का माहौल भारतीय खिलाड़ियों के अनुरूप होगा और वे अपना श्रेष्ठ दे सकते हैं।
यह पता नहीं कि विदेशी फिजियोथेरेपिस्ट भारतीय खेलों और खिलाड़ियों का मज़ाक उड़ा रहा है या कटाक्ष कर रहा है लेकिन यह सच है कि भारत में खेल मैदान प्रायः सूने पड़ने लगे हैं। खासकर ,टीम खेलों में दर्शकों की अनुपस्थिति चिंता का विषय है। ऐसा शायद इसलिए हो रहा है क्योंकि ओलंम्पिक में खेलेजाने वाले किसी भी टीम खेल में हमारी हालत ठीक नहीं है। फिर चाहे हॉकी, फुटबाल, वॉलीबॉल, बास्केटबॉल या कोई भी अन्य खेल क्यों ना हो।
लेकिन जब भारतीय हॉकी का नाम था, देश के तमाम स्टेडियम खचाखच भरे होते थे। ना सिर्फ अन्तरराष्ट्रीय मुकाबलों में बल्कि लोकल आयोजनों में भी शिवाजी और नेशनल स्टेडियम हॉकी प्रेमियों से पटे रहते थे।
आज़ादी पूर्व से लगभग नब्बे के दशक तक कोलकाता, मुम्बई, गोआ, दिल्ली, पंजाब, आंध्रा, केरल,कर्नाटक के फुटबाल स्टेडियमों का नज़ारा देखते ही बनता था। दस पैसे से एक रुपए के टिकट लेकर हजारों फुटबाल प्रेमी खेल का लुत्फ उठाते थे। आज तमाम स्टेडियम सूने पड़े हैं। फुटबाल और हॉकी की विफलता ने खेल प्रेमियों के पांव बांध दिए हैं। बेशक, दर्शकों की बेरुखी के बाद से भारतीय खेलों का स्तर भी गिरा है।
यदि कहीं दर्शक नज़र आते हैं तो वह क्रिकेट है। भले ही टेस्ट क्रिकेट को दर्शकों की कमी खल रही है पपर सीमित ओवर और टी20 में अच्छी खासी भीड़ दिखाई पड़ती है। लेकिन क्रिकेट ओलंम्पिक खेल नहीं है।
यह तो वक्त बताएगा कि कम दर्शकों की उपस्थिति का भारतीय खिलाड़ी कितना फायदा उठाते हैं ।लेकिन कम उपस्थिति का फायदा भारतीय खिलाड़ियों को मिलने वाली बात हजम नहीं हो रही। आम तौर पर यह माना जाता है कि दर्शको के प्रोत्साहन से आम खिलाड़ी भी खास बन जाता है।