क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
भारतीय खिलाड़ियों और कोचों को अक्सर यह शिकायत रही है कि देश में अपने कोचों को समुचित सम्मान नहीं दिया जाता। उनके सिर पर विदेशी कोच बैठा दिए जाते हैं, जोकि बेहतर रिज़ल्ट देने में प्रायः नाकाम रहे हैं। यह हाल तब है जबकि सरकार आत्मनिर्भरता और अपनी प्रतिभाओं को अवसर देने की बात करती है। शायद दिल्ली सरकार ने अपने खिलाड़ियों और कोचों के मन की बात सुन ली है। यही कारण है कि शिक्षा निदेशालय ने 171 सहायक कोचों की भर्ती की प्रक्रिया शुरू कर दी है। लेकिन इस खुश खबरी से दिल्ली के बेरोज़गार और क्वालीफाइड कोच खुश नहीं हैं।
छला गया महसूस कर रहे हैं:
सहायक खेल कोचों की नियुक्ति नियमों पर सरसरी नज़र डालें तो 30 वर्ष तक के वे अभ्यर्थी आवेदन कर सकते हैं जिनके पास एनआईएस डिप्लोमा हो या ओलंपिक, एशियाड, कामनवेल्थ और सीनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में भाग लिया हो। दिली के कोच पिछले कई सालों से ऐसे अवसर की तलाश में थे। उन्हें खुशी है कि सरकार ने वर्षों बाद उनके बारे में सोचा है लेकिन उन्हें इस बात से नाराज़गी है कि दिल्ली में काबिल कोचों के होते हुए भी देश भर से आवेदन माँगे गए हैं। बहुत से कोच इस बारे में लिखित विरोध दर्ज करने पर विचार कर चुके हैं।
उनकी शिकायत है कि जहाँ एक तरफ अन्य राज्यों में अपने खिलाड़ियों और कोचों के लिए पद रिज़र्व होते हैं तो दिल्ली के अवसरों को बाहरी हड़प रहे हैं। स्थानीय कोाचों की पीड़ा यह है कि तमाम डिग्री डिप्लोमे अर्जित करने के बाद भी वे वर्षों से नौकरी नहीं पा सके। इस इंतजार में ज़्यादातर 35-40 साल की उम्र पार कर चुके हैं, जबकि भर्ती के लिए तीस साल की उम्र तय की गई है।
खेलने की उम्र में बनेंगे कोच :
भारतीय खेलों पर नज़र डालें तो आमतौर पर भारतीय खिलाड़ी 35-40 साल की उम्र तक मैदान में डटे रहते हैं। कुछ एक खिलाड़ियों को तो जबरन खेल मैदान से हटाना पड़ता है। लेकिन दिल्ली सरकार तीस साल की उम्र के कोच खोज रही है। यह तर्क कदापि गले उतरने वाला नहीं है। यदि इस प्रयास को बेतुका कहें तो ग़लत नहीं होगा।
ज़रा कल्पना कीजिए, यदि कोई तीस सालका कोच अपने से आठ दस साल बड़े खिलाड़ी को खेल की बारीक़ियाँ सिखाएगा तो कैसा लगेगा? यह ना भूलें कि कोच जितना परिपक्व और अनुभवी होगा उतने ही अच्छे रिज़ल्ट देगा। खिलाड़ी उसकी शिक्षा-दीक्षा को दिल से ग्रहण करेंगे।
अखाड़ों ने गुहार लगाई:
दिल्ली के लगभग दर्जन भर अखाड़ों नें दिल्ली प्रशासन द्वारा कोचों की भर्ती की उम्र और बाहरी कोचों को आमंत्रित करने का खुल कर विरोध किया है। उनके अनुसार भारतीय कुश्ती में दिल्ली के अखाड़ों का बड़ा योगदान रहा है।
तमाम चैम्पियन पहलवान दिल्ली के अखाड़ों ने निकाले। गुरु हनुमान अखाड़ा, कैप्टन चाँद रूप अखाड़ा, मास्टर चंदगीराम , विक्रम प्रेमनाथ अखाड़ा, जसराम अखाड़ा, डेसू अखाड़ा, सोनकर अखाड़ा, गुरु बद्री अखाड़ा, राजपूत अखाड़ा, विजय लाल अखाड़ा और अन्य कई अखाड़ों ने गुहार लगाई है कि उनके गुरु ख़लीफाओं को प्राथमिकता दी जाए, जोकि पिछले कई सालों से देश को चैम्पियन पहलवान दे रहे हैं
स्वदेशी को प्राथमिकता:
देशभर में सहायक कोचों की भर्ती करने के दिल्ली सरकार की पहल की प्रशंसा हो रही है तो साथ ही खेल मंत्रालय, आईओए और खेल संघों से यह भी कहा जा रहा है कि विदेशी की बजाय अपने कोचों को वरीयता दें। कारण विदेशी कोच ना सिर्फ़ कई गुना ज़्यादा महँगे पड़ते हैं अच्छे परिणाम भी नहीं दे पा रहे। लाखों करोड़ों लूटने के बाद विदेशी कोच भारतीय खिलाड़ियों और अधिकारियों को नकारा बता कर भाग खड़े होते हैं।
Videshi coach aur apno ko nakarna bhartiya khel sango ki purani addat hai, par ab aur nhi saha jayega…..indian first wali neeti ko badhawa denei ka samay aa chuka hai……
30 saal kei bajaie satkar ko 40 saal ki umer kei coach o ki niyukti krani chhaiyei…..khiladi aur coach kei anubhav mei frk zaruri hai….jaha 35/40 taknki khiladio ko teamo mei aksar jagha di jaata hai…vha coach unkei barbaar ya hum umer to hona he chhiyei…..Bbai saab aap nei khel sango ki dhikti rakh ko pakda hai.
Thx🌟✨🍁