क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
टोक्यो ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ी ऊंची छलांग लगाने वाले हैं। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि भारतीय ओलंपिक समिति के अध्यक्ष डॉक्टर नरेंद्र बत्रा और देश के खेलमंत्री एवम अन्य कई खेल प्रशासक उम्मीद से लबालब हैं। भले ही कोरोना काल में दुनियाभर के खेल एक्सपर्ट्स और जानकार डरे सहमे हैं और कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हैं लेकिन भारतीय खेलों की अग्रणी कतार के लोग उत्साह से परिपूर्ण हैं जोकि भारतीय खिलाड़ियों के लिए बड़ी खबर है। लेकिन शेखचिल्ली भूल रहे हैं कि पदक पेड़ पर नहीं लगते।
आईओए अध्यक्ष ने हाल ही में कहा कि इस बार भारतीय खिलाड़ी पदक तालिका में डबल डिजिट के साथ नजर आएंगे। खेल मंत्री किरण रिजिजू भी ऐसी ही सोच रखते हैं। लेकिन यह जरूरी नहीं कि जैसा हमारे खेल आका सोच रहे हैं वैसा ही हो। यह न भूलें कि रियो ओलंपिक 2016 में उतरने से पहले खेल मंत्री सोनोवाल दर्जन भर पदकों का टारगेट लेकर चल रहे थे। लेकिन पदक मीले सिर्फ दो।
2012 के लंदन खेलों में भारत के खाते में रिकार्ड छह पदक थे, जोकि अपने खिलाड़ियों के लिए चुनौती बने हैं। हमारे खेल मंत्री और आईओए के शीर्ष अधिकारी लंदन से बेहतर का टारगेट ले कर चल रहे हैं क्योंकि कुछ खेलों से उन्हें ज्यादा ही उम्मीद है। यह सही है कि कुश्ती, निशानेबाजी, बैडमिंटन, मुक्केबाजी, पुरुष हॉकी और कुछ और खेलों में हमारे खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं।
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम उन्हें पदक विजेता मान लें। कुश्ती में जरूर उम्मीद कर सकते हैं लेकिन जब तीरंदाजी में दावा किया जाता है तो हम यह भूल जाते हैं कि हमारे तीर हमेशा चूकते रहे हैं। इसी प्रकार एथलेटिक और महिला हॉकी को उछालना भी समझदारी नहीं है। तीरंदाजी और निशानेबाजी में पता नहीं कितने वर्ल्ड कप और वर्ल्ड चैंपियनशिप का आयोजन होता है।
हमारे खिलाड़ी चैंपियन भी बनते हैं पर ओलंपिक पदक के लिए अभिनव बिंद्रा, विजय कुमार और नारंग जैसी योग्यता चाहिए जोकि कम ही दिखाई पड़ती है। यह सही है कि दिन अच्छा रहा तो निशानेबाजी में ज्यादा पदक मिल सकते हैं।
मैरीकॉम, सायना नेहवाल और कुछ अन्य महिला खिलाड़ियों से पदक की उम्मीद तब ही की जा सकती है जब उनके पास श्रेष्ठ बचा हो। पुरुष हॉकी टीम तो बार बार धोखा देती आई है और उससे भरोसा उठ चुका है। इस बार पदक मिला तो कुल पदक भी बढ़ सकते हैं। लेकिन महिला टीम की कामयाबी किसी चमत्कार पर टिकी है।
एथलेटिक में दुति चंद, हिमा दास पदक की उम्मीद कदापि नहीं हैं। कोई चमत्कार हो जाए तो बात अलग है। कुश्ती में सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है। फेडरेशन अध्यक्ष ब्रज भूषण अपने पहलवानों से छह पदक की उम्मीद कर चल रहे हैं। क्यों नेताजी बाकी देशों के पहलवान सैर सपाटे के लिए टोक्यो जा रहे हैं?
क्वीन सिंधु बैडमिंटन में भारत की एकमात्र उम्मीद हैं, कुछ पहलवान और एक दो मुक्केबाज और दो-तीन निशानेबाज मिला कर भी छह आठ पदक के दावेदार कहे जा सकते हैं। भारतीय खेलों की कुल ताकत को देखें तो दहाई का आंकड़ा छूना आसान नहीं लगता। तो क्या तमाम जिम्मेदार लोग हमेशा की तरह देश के खेल प्रेमियों को गुमराह कर रहे हैं?