क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
इसमें दो राय नहीं कि टीवी रेटिंग के हिसाब से क्रिकेट के बाद कबड्डी भारत में दूसरा सबसे लोकप्रिय खेल है। इसमें भी कोई शक नहीं कि गांव देहात और पिछड़े वर्ग का खेल कहा जाने वाला कबड्डी अब अन्य खेलों की तरह ट्रीट किया जाने लगा है। अब वह वक्त नहीं रहा जब इस खेल को हेय दृष्टि से देखा जाता था।
हालांकि कबड्डी की कहानी वर्षों पुरानी है लेकिन जब 1990 में इस खेल को एशियाड में शामिल किया गया और भारत ने पहला स्वर्ण पदक जीता तो कबड्डी फेडरेशन ने दावा किया कि अब उनका लक्ष्य ओलंपिक में खेल को शामिल करने का है। बाकायदा, दुनिया भर में खेल के लिए संभावनाएं तलाशी जाने लगीं। लेकिन आज तक जरा भी संकेत नहीं मिला कि कभी यह खेल ओलंपिक के द्वार तक पहुंच पायेगा।
बेशक प्रो कबड्डी लीग के आयोजन के बाद से इस खेल ने रात चौगुनी तरक्की की। स्कूल कालेजों में खेल को जगह मिली किंतु आठवें संस्करण तक पहुंचते पहुँचते भी कबड्डी को वह दर्जा नहीं मिल पाया जिसकी हकदार है। आज भी चंद सरकारी स्कूलों तक ही यह खेल पकड़ बना पाया है। यहभी तब हो पाया है जबकि स्टार स्पोर्ट्स ने प्रो कबड्डी लीग को गले लगाया।
लेकिन कब तक? कब तक कोई टीवी चैनल कबड्डी जैसे खेल को पालता रहेगा? जकार्ता एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीतने के बाद से कबड्डी के कर्णधार और टीवी चैनल सोच विचार में जरूर लग गए हैं। लगातार 7 बार एशियाई खेलों का शीर्ष चूमने वाली टीम को ईरान ने जो आघात पहुंचाया उसकी भरपाई के लिए जह जरूरी है कि अगले साल होने वाले एशियाड में भारत फिर से महाद्वीप में श्रेष्ठता दर्ज करे। वरना वह दिन दूर नहीं जब कबड्डी की हालत हॉकी जैसी हो सकती है। शायद उससे भी बदतर।
कभी हॉकी में सिर्फ पाकिस्तान हमारा परंपरागत प्रतिद्वंद्वी था। एशियाड में उसका रिकार्ड हमसे बेहतर रहा। लेकिन आठ ओलंपिक स्वर्ण जीतने वाले देश की हालत आज ऐसी है कि उसे कोरिया, जापान, मलेशिया जैसे देश भी पीट डालते हैं। कबड्डी में सिर्फ ईरान इसलिए टक्कर दे रहा है क्योंकि बाकी देश कबड्डी में रुचि नहीं लेते। हालांकि इस खेल में भी पाकिस्तान ने शुरुआती टक्कर दी पर अब उसकी जगह ईरान ने ले ली है, जोकि पाकिस्तान से कहीं ज्यादा खतरनाक है।
कबड्डी से जुड़े खिलाड़ियों और गुरुओं की राय में एक और झटका भारतीय कबड्डी पर भारी पड़ सकता है। साल भर बाद यदि एशियाई स्वर्ण की वापसी नहीं हुई तो प्रो. लीग का जलवा भी जाता रहेगा। ऐसे में कबड्डी के ठेकेदारों को गंदी राजनीति से बाहर निकलकर सोचने की जरूरत है। यह न भूलें कि लीग में खेलने वाले कबड्डी बाज कुश्ती, बैडमिंटन, हॉकी, टेनिस, वॉलीबाल और तमाम खेलों की लीग से ज्यादा कमा रहे हैं। सिर्फ आईपीएल ही उनसे आगे है। इस सम्मान को बनाए रखना है तो महाद्वीप में श्रेष्ठता जरूरी है।
यह भी याद रखें कि यदि इस खेल में भारत की हैसियत घटी तो खेल का अस्तित्व भी खतरे में पड़ सकता है। ओलंपिक खेलने का सपना तो शायद ही पूरा हो, एशियाई खेलों से भी बाहर होने का संकट मंडरा सकता है।