क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
भारतीय टेबल टेनिस में सर्वाधिक सफल और चर्चित खिलाड़ी मणिका बत्रा को एशियन चैंपियनशिप में भाग लेने वाली देश की टीम में स्थान नहीं मिल पाया है। टेबल टेनिस फ़ेडरेशन आफ इंडिया और उसके राष्ट्रीय कोच सौम्य दीप राय के साथ चल रहे टकराव के कारण फ़ेडरेशन ने मणिका को टीम में स्थान नहीं दिया है। विश्व रैंकिंग में 56 वें नंबर की भारतीय खिलाड़ी के साथ टीटीएफआई का यह वर्ताव इसलिए सही माना जा रहा है क्योंकि मणिका ने राष्ट्रीय कैंप में भाग नहीं लिया।
संभवतया मणिका यह सोचे बैठी थीं कि उनके बिना टीम का काम नहीं चल सकता और हार कर फ़ेडरेशन उन्हें शामिल कर लेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भले ही भारतीय टीम की ताक़त कम हुई है लेकिन साथ ही यह संदेश भी गया है कोई भी खिलाड़ी खेल से बड़ा नहीं हो सकता और फ़ेडरेशन यदि अपनी पर आ जाए तो किसी भी खिलाड़ी का घमंड तोड़ सकती है| फ़ेडरेशन ने एक सर्कुलर द्वारा पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि हर खिलाड़ी को राष्ट्रीय कैंप में ज़रूर भाग लेना पड़ेगा जिसका माणिका ने पालन नहीं किया।
भले ही वह श्रेष्ठ महिला खिलाड़ी हैं, अर्जुन अवॉर्ड और खेल रत्न अवार्ड पा चुकी हैं लेकिन इसका यह मतलब कदापि नहीं कि वह कोच सौम्यदीप का निरादर करें या ओलम्पिक मुकाबलों के चलते उन्हें मैच स्थल पर भी ना देखना चाहे। यह सही है कि वह ओलम्पिक में आख़िरी 32 खिलाड़ियों में स्थान बनाने मे सफल रही, राष्ट्रमंडल खेलों में टीम स्पर्धा के साथ कुल चार स्वर्ण जीतने में सफल रही।
लेकिन यह कहाँ तक ठीक है कि सार्वजनिक तौर पर वह कोच पर मैच फिक्स करने जैसे आरोप लगाए। बेशक, यदि आरोप सही निकले तो कोच को माफ़ नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन 26 साल की चैम्पियन ने अपने खेल पर ध्यान देने की बजाय विवादों में फँसना शुरू किया जिसका उसे फ़ेडरेशन ने सही जवाब दे दिया है।
लेकिन मणिका बत्रा ऐसी अकेली खिलाड़ी नहीं है, जिसने फ़ेडरेशन या कोच से टकराने की सज़ा पाई हो। पहलवान विनेश फोगाट से टोक्यो ओलम्पिक में पदक की पक्की उम्मीद की जा रही थी लेकिन वह कम चर्चित पहलवान से हार कर दौड़ से बाहर हो गई। आरोप लगाया गया कि साथी पहलवानों और कोच के प्रति विनेश का रवैया ठीक नहीं था।
कुश्ती फ़ेडरेशन ने सही समय पर मामले की पड़ताल की और देश की सबसे बड़ी पहलवान से सवाल जवाब कर फ़ैसला सुना दिया। उम्मीद है कि विनेश फोगाट एक बार फिर एक्शन में नज़र आएगी और पेरिस ओलम्पिक में पदक जीत कर दिखाएगी।
कुछ अन्य खेलों पर नज़र डालें तो बहुत से खिलाड़ी खुद को खुदा समझ लेते हैं। हल्के फुल्के मुकाबलों में विश्व चैम्पियन बन कर और विश्व रैंकिंग में अव्वल स्थान ग्रहण कर फ़ेडरेशन, कोच और सपोर्ट स्टाफ को कुछ भी नहीं समझते। घमंड उनके सिर पर सवार रहता है।
निशानेबाज़ी और तीरनदाजी के उदाहरण सामने हैं। देश का नाम डुबोने में इन खेलों का बड़ा हाथ रहा है। ख़ासकर निशानेबाज़ अपनी अकड़ धकड़ में यह भी भूल गए कि देशवासियों के खून पसीने की कमाई उन पर खर्च की जा रही है। तमाम महिला -पुरुष निशांची टोक्यो में फिसड्डी साबित हुए। फ़साद की जड़ एनआरएआई भी रही।तीरन्दाज़ भी सालों से विदेश दौरे कर रहे हैं लेकिन ओलंम्पिक आते ही उनके तीर देशवासियों के कलेजे के आर पार होते हैं। वक्त आ गया है निशानेबाजों और तीरन्दाज़ों से भी हिसाब किताब माँगा जाए। उनकी नकारा फ़ेडरेशनों को भी गंदी राजनीति के चलते माफ़ नहीं किया जाना चाहिए।