Muttiah Muralitharan's journey to become the greatest bowler

“कांटों” भरी रही 21वीं सदी का सबसे महान गेंदबाज बनने की मुरलीधरन की यात्रा

अजय नैथानी

हाल ही में मुथैया मुरलीधरन को 21वीं सदी का सबसे महान गेंदबाज चुना गया है। हालांकि इस मुकाम तक पहुंचने की उनकी यात्रा आसान नहीं रही। मुरलीधरन के ऊपर अपने करियर के शुरुआती दौर में चकिंग के आरोप बार-बार लगे और इसको लेकर अभियान भी चलाए गए। लेकिन उन्होंने हर बार मैदान के अंदर और बाहर जुझारूपन का परिचय दिया और डगमगाए बिना खुद पाक-साफ साबित किया।

ये सम्मान यह साबित करता है कि उनकी गेंदबाजी शैली पर उठीं तमाम अंगुलियां एक भ्रष्ट अभियान का हिस्सा थीं। उनके चमकदार करियर को दाग लगाने की कोशिश थी। ये उन लोगों की तरफ से की गई थी, जो क्रिकेट में रंगभेद और नस्लभेद जैसी मानसिकता रखते थे।

लेकिन तमाम रुकावटों के बावजूद इस श्रीलंकाई स्पिनर ने अपने क्रिकेट करियर में बुलंदियां हासिल की, जिसमें रिकॉर्ड 800 टेस्ट विकेट (133 मैचों में) और 534 वनडे विकेट (350 मैचों में) उनके खाते में है।

इस खिताब की होड़ में दिग्गज बॉलरों को पछाड़ा

श्रीलंकाई दिग्गज स्पिनर को गत मंगलवार को 21वीं सदी के सर्वकालीन महान गेंदबाज चुना गया। खेल प्रसारक स्टार स्पोर्ट्स की ओर से 50 सदस्यीय जूरी ने महान ऑफ स्पिनर को सर्वश्रेष्ठ मानते हुए इस खिताब का हकदार माना।

मुरलीधरन ने इस होड़ में ऑस्ट्रेलिया के महान लेग स्पिनर शेन वॉर्न, साउथ अफ्रीका के पेसर डेल स्टेन और ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाज ग्लेन मैक्ग्रा को जैसे दिग्गज बॉलरों को पीछे छोड़ा। मुरली का इस खिताब के लिए चुना जाना, इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि उन्होंने अपने पूरे करियर में अनचाहे विवादों, नकारात्मक टिप्पणियों और अपमानजनक प्रतिक्रिया का सामना किया, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वियों को कभी भी ऐसे हालात से दो-चार नहीं होना पड़ा।

विवादों और संघर्षों से भरा रहा करियर

साल 2011 में क्रिकेट को अलविदा कह चुके मुरलीधरन अपने अनूठे बॉलिंग ऐक्शन के कारण करियर की शुरुआती दौर में कई बार अनचाहे विवादों में फंसते नजर आए लेकिन वह हर बार विजयी होकर मुसीबतों से बाहर हो आए।

उनको बहुत से वैज्ञानिक परीक्षणों से गुजरना पड़ा। इस दौरान उनकी गेंदबाजी एक्शन पर चार बार वैज्ञानिक परीक्षण हुए। तमाम अध्यनों के बाद पाया गया कि उनकी गेंदबाजी एक्शन एक दृष्टि भ्रम है। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया में उनका अपमान बार-बार होता रहा और उनको खासतौर पर निशाना बनाया जाता रहा।

2004 में तो तत्कालीन ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री जॉन हावर्ड ने एक बयान में मुरली को “चकर” तक कह डाला था। जिससे खिन्न होकर मुरली ने भविष्य के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर नहीं जाने के संकेत दिए थे।

चार बार हुई वैज्ञानिक ढंग से जांच

साल 1995 के बॉक्सिंग टेस्ट मैच के दौरान अम्पायर डेरेल हेयर ने मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड में लगभग 55 हजार दर्शकों के सामने मुरली पर थ्रोइंग का आरोप लगाया। अम्पायर हेयर ने 23 वर्षीय ऑफ स्पिनर को तीन ओवर में सात बार नॉ-बाल करार दिया, क्योंकि उनकी कोहनी उस समय के तय मानकों से ज्यादा मुड़ रही थी। इस तरह मुरली के गेंदबाजी एक्शन पर पहली बार सवाल खड़े हुए थे।

इसके बाद उनका मामला अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) में चल गया। साल 1996 में उनके गेंदबाजी एक्शन का बायोमैकेनिकल विश्लेषण यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया और हांगकांग यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेकेनॉलिजी में किया गया।

उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि उनके एक्शन ने ‘फेंकने का ऑप्टिकल भ्रम’ पैदा किया। इस प्रमाण के आधार पर आईसीसी ने मुरली के गेंदबाजी जारी रखने की मंजूरी दे दी।

हालांकि इस मंजूरी के बावजूद 1998-99 में ऑस्ट्रेलिया दौरे में मुरली की गेंदबाजी एक्शन को लेकर संदेह बना रहा। दूसरी बार एडिलेड ओवल में इंग्लैंड के खिलाफ वनडे मैच के दौरान अम्पायर रॉय एमर्सन ने एक बार फिर उनकी गेंद को नॉ-बाल करार दिया।

इस कारण श्रीलंकाई टीम ने मैच को लगभग छोड़ दिया था लेकिन श्रीलंका में क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष से प्राप्त निर्देशों के बाद खेल फिर से शुरू हो गया। मुरलीधरन को आगे के परीक्षणों के लिए इंग्लैंड और पर्थ भेजा गया और एक बार फिर से उन्हें मंजूरी दे दी गई।

तीसरी बार मुरलीधरन की गेंदबाजी विवाद में आई 2004 में। आस्ट्रेलिया के खिलाफ घरेलू श्रृंखला के अंत में उनकी ‘दूसरा’ गेंद पर मैच रेफरी क्रिस ब्रॉड ने आधिकारिक तौर पर सवाल उठाया। वेस्टर्न आस्ट्रेलिया यूनिवर्सिटी (डिपार्टमेंट ऑफ ह्यूमन मूवमेंट एंड एक्सरसाइज साइंस) में एक ऑप्टिकल मोशन कैप्चर सिस्टम का इस्तेमाल कर मुरलीधरन द्वारा ‘दूसरा’ प्रकार का गेंद फेंकते हुए उनके उस हाथ का त्रिआयामी–कीनेमेटिक्स प्रणाली से मापन किया गया।

मुरलीधरन द्वारा ‘दूसरा’ प्रकार का गेंद फेंकते समय उनकी कोहनी का औसत विस्तार 14 डिग्री था जिसे बाद में विश्वविद्यालय में एक उपचारात्मक परीक्षण के बाद 10.2 डिग्री के एक औसत तक कम कर दिया गया था। वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया यूनिवर्सिटी के अध्ययन द्वारा आईसीसी को भेजी गई रिपोर्ट का निष्कर्ष यह था कि मुरलीधरन के ‘दूसरा’ ने स्पिनरों के लिए आईसीसी की निर्धारित कोहनी विस्तार सीमा का उल्लंघन किया था।

फरवरी 2005 में वार्षिक महाधिवेशन में आईसीसी ने गेंदबाजों के लिए 15 डिग्री के विस्तार या अत्यधिक विस्तार की स्वीकृति के लिए जांच पैनल की सिफारिशों के आधार पर एक नया दिशा-निर्देश जारी किया। इस प्रकार मुरलीधरन के ‘दूसरा’ को वैध माना गया।

मुरली बायो-मैकेनिकल जांच से चौथी बार फरवरी 2006 में गुजरे। क्योंकि पिछले तीन परीक्षणों की यह कहते हुए आलोचना की गई कि जुलाई 2004 में प्रयोगशाला में हुई जांचों के दौरान गेंदबाजी की धीमी रफ्तार मैच की परिस्थितियों से मेल नहीं खाती है।

उन जांच के नतीजे बताते हैं कि औसतन 86 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से ‘दूसरा’ गेंद की गेंदबाजी के दौरान कोहनी का औसत झुकाव 12.2 डिग्री था। उनके ऑफ ब्रेक गेंद का झुकाव 99.45 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार पर 12.9 डिग्री था।

इससे पहले साल 2004 में कोलंबो के आर. प्रेमदासा स्टेडियम में मुरलीधरन ने खुद से लाइव वीडियो कैमरों के सामने जांच की एक श्रृंखला का प्रदर्शन किया। माइकल स्लेटर और रवि शास्त्री इसके गवाह बने। मुरली ने एक बार फिर साबित किया कि वो ‘दूसरा’ समेत अपनी सभी तरह की गेंदें बांह में पट्टी बांधकर भी कर सकते हैं जो कोहनी को सीधा होने से रोकती है।

हड्डी विशेषज्ञ डॉक्टर मंदीप ढिल्लन ने कहा कि मुरली के पास एक अनोखी क्षमता है जिससे वो अपने कंधे के साथ-साथ कलाई से अतिरिक्त गति पैदा करते हैं जिससे वे ‘दूसरा’ गेंदे बिना कोहनी को सीधा किए फेंक सकते हैं।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *