क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान
टोक्यो ओलम्पिक में भारतीय हॉकी टीमों के शानदार प्रदर्शन के बाद भारतीय हॉकी के पटरी पर लौटने की उम्मीद की जा रही है। हॉकी इंडिया और देश में हॉकी के करताधर्ता सातवें आसमान पर उड़ रहे हैं। उन्हें ओलम्पिक के बाद पुरुष टीम के प्रदर्शन को लेकर भी खास चिंता नहीं है।
वे भारतीय जूनियरों की फ्रेंच टीम के हाथों हुई पिटाई से जैसे कोई सरोकार नहीं रखते और ना ही वे यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि क्यों हमारी सीनियर टीम जापान से पिट गई। लेकिन जिन लोगों को यह तक नहीं पता कि देश का सबसे प्रतिष्ठित हॉकी टूर्नामेंट दम तोड़ रहा है, वे भला खेल का क्या भला करेंगे।
भले ही देश में कई बड़े हॉकी टूर्नामेंट आयोजित किए जाते रहे हैं लेकिन जो शान और नाम सम्मान नेहरू हॉकी टूर्नामेंट का रहा है वह शायद ही कोई अन्य आयोजन अर्जित कर पाया हो। 1964 में शुरू हुए नेहरू कप को अन्य आयोजनों की तुलना में बेहतर और श्रेष्ठ इसलिए बताया जाता है क्योंकि यह अपने किस्म का इकलौता ऐसा आयोजन रहा है जिसमें देश के प्रधानमंत्रियों से लेकर राष्ट्रपति, राजयपाल, नेता सांसद और तमाम बड़ी हस्तियों के हाथों उद्घाटन और समापन समारोह संपन्न होते रहे।
जिन महान हस्तियों की उपस्थिति ने नेहरू हॉकी को गौरवान्वित किया उनमें विजय लक्ष्मी पंडित, लाल बहादुर शास्त्री, श्रीमति इंदिरा गाँधी, डाक्टर राधा कृष्णन, फकरुद्दीन अली अहमद, डाक्टर ज़ाकिर हुसैन, वीवी गिरी, नीलम संजीव रेड्डी, ज्ञानी जेल सिंह, डाक्टर शंकर दयालशर्मा और और अन्य बड़े नाम शामिल हैं। लेकिन बदले हालात में चंद कंपनियों के बड़े अधिकारी और कुछ पूर्व खिलाडी ही नेहरू हॉकी में उपस्थिति दर्ज करा पाते हैं। ज़ाहिर है नेहरू हॉकी टूर्नामेंट का कद कितना बड़ा था।
लेकिन नेहरू हॉकी आज अपनी पहचान बचाने के लिए प्रयासरत है। हालाँकि सीनियर टूर्नामेंट से शुरुआत करने वाले आयोजन के साथ स्कूली लड़के लड़कियों के जूनियर और बालकों के सब जूनियर टूर्नामेंट भी जुड़ गए । कुछ साल बाद चैम्पियंस कॉलेज टूर्नामेंट की शुरूवात हुई लेकिन साल दर साल नेहरू हॉकी की लोकप्रियता में भारी कमी आई। ऐसा इसलिए क्योंकि जिन संस्थपक सदस्यों ने नेहरू हॉकी टूर्नामेंट सोसाइटी का गठन किया उन्होंने भविष्य के बारे में गंभीरता से नहीं सोचा।
नेहरू हॉकी एक ऐसा आयोजन रहा है जिसमें देश विदेश के हॉकी ओलम्पियन, ओलम्पिक चैम्पियन और विश्व चैम्पियन खिलाडी भाग लेने आते थे, जिनमें सैकड़ों नाम शामिल हैं । महान ओलम्पियन ध्यान चंद, बलबीर सीनियर, जेंटल, बालकिशन, शंकर लक्ष्मण आदि ने नेहरू टूर्नामेंट के चलते शिवाजी स्टेडियम पर दोस्ताना मैच खेले।
लेकिन पृथीपाल , चरणजीत सिंह, गुरबक्श, हरिपाल कौशिक, हरबिंदर सिंह, अजीतपाल सिंह, अशोक कुमार, गणेश, गोविंदा, असलम शेर खान, सुरजीत सिंह, ज़फर इकबाल, मोहम्मद शहीद धनराज पिल्लै जैसे दर्जनों चैम्पियन नेहरू हॉकी की शान और पहचान बने। लेकिन आज नेहरू हॉकी दर बदर है। कुसूर चाहे किसी का भी हो लेकिन वह दिन दूर नहीं जब यह आयोजन सिर्फ हॉकी पुस्तिकाओं में सिमट कर रह जाएगा।
कुसूरवार कौन है, कहना मुश्किल है। लेकिन हॉकी इंडिया की कोई जिम्मेदारी बनती हो तो आगे बढ़ कर एक डूबते टूर्नामेंट को बचाने के प्रयास जरूर करे।