Pro Kabaddi league

वरना हॉकी की तरह कबड्डी भी भारत के हाथ से निकल जाएगी!

क्लीन बोल्ड/ राजेन्द्र सजवान

प्रो कबड्डी लीग के आयोजन ने इस विशुद्ध भारतीय खेल को ओलंपिक के काफी करीब पहुंचा दिया था लेकिन एशियाड में मिली हार ने भारत से बादशाहत छीन ली है। यदि देश में कबड्डी को संचालित करने वाले अब भी नहीं समझे तो शायद कबड्डी के साथ भी वही हाल हो सकता है जैसा भारतीय हॉकी के साथ हुआ। ऐसा मानना है अनेकों बार राष्ट्रीय कोच का दायित्व निभाने वाले बलवान सिंह का।

जकार्ता एशियाई खेलों में न सिर्फ पुरुष टीम को अपितु महिलाओं को भी ईरान के हाथों खिताब गंवाने पड़े थे। ईरान की जीत को बलवान धैर्य, सब्र और दूरदृष्टि का फल मानते हैं। तीन बार भारत को एशियाई खेलों का स्वर्ण जिताने वाले बलवान कहते हैं कि ईरान बड़ा शातिर खिलाड़ी है। उसने संयम से काम लिया। पहले कबड्डी लीग में अपने खिलाड़ी भेजे। बहुत कुछ सीखा और मौका मिलते ही वह कर दिखाया जिसकी उसे वर्षों से तलाश थी। बलवान की रायमें यदि भारतीय कबड्डी ने अब भी सबक नहीं सीखा तो आने वाले सालों में हम बहुत कुछ खो सकते हैं।

देश के श्रेष्ठतम और बेहद आदरणीय कोच को डर इस बात का है कि भारतीय कबड्डी की आंतरिक लड़ाई खेल को और अधिक नुकसान पहुंचा सकती है। सिर्फ ईरान ही नहीं पाकिस्तान, बांग्ला देश, कोरिया आदि भी भारत को घेरने की कोशिश में हैं। उनके अनुसार कुर्सी की लड़ाई के चलते खेल को हमेशा नुकसान हुआ है। हॉकी, फुटबाल और तमाम खेल भुक्तभोगी हैं। उन्हें समझ नहीं आता कि जनार्दन गहलौत के अध्यक्ष रहते खेल को क्या नुकसान हो रहा था और झगड़ा बढ़ जाने से कौनसा लाभ हो गया?

भारतीय वायुसेना के अधिकारी को लगता है कि यदि अगले एशियाड में भारत ने अपना खोया सम्मान नहीं पाया तो बहुत देर हो सकती है। खासकर , कबड्डी को ओलंपिक में शामिल कराने का सपना फिर शायद ही कभी पूरा हो सके। कारण, भारत के अलावा अन्य कोई देश इस अभियान को आगे नहीं बढ़ा पायेगा।

बलवान मानते हैं कि कबड्डी लीग के आयोजन से भारतीय खेलों में कबड्डी का कद बहुत ऊंचा उठ गया था। जो खिलाड़ी कुछ साल पहले खुराक तक के पैसों के मोहताज थे उन्हें लाखों से डेढ़ दो करोड़ तक मिलने लगे थे। कई खिलाड़ी राष्ट्रीय हीरो बने लेकिन एशियाड स्वर्ण गंवाने के कारण उन्हें खलनायक माना जाने लगा है।

बलवान चाहते हैं कि देश में कबड्डी का हित चाहने वाले एकजुट हो जाएं, खेल का भला सोचें। यदि संभलने में देर हुई तो कबड्डी पर से भारतीय कब्जा छिन जाएगा। ऐसा हुआ तो खिलाड़ियों का भविष्य अधर में लटक सकता है। उनके लिए नौकरियों का अकाल पड़ सकता है। हो सकता है कि कबड्डी लीग पर भी असर पड़े।

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