राजेंद्र सजवान/क्लीन बोल्ड
टोक्यो ओलंम्पिक में कांस्य पदक जीतने वाले बजरंग पूनिया अब पेरिस ओलंम्पिक में पदक का रंग बेहतर करने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। हालांकि वह स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय पहलवान बनना चाहते हैं लेकिन उनकी दिली इच्छा है कि पत्नी संगीता फोगाट पूनिया भी ओलंम्पिक में पदक जीते।
यदि ऐसा संभव हो पाया तो पूनिया दंपति ओलंम्पिक में पदक जीतने वाले पहले भारतीय पति पत्नी बन सकते हैं। ओलंम्पिक से पहले कोरोना काल के चलते वह द्रोणाचार्य महाबीर फोगाट की पहलवान बिटिया संगीता फोगाट के साथ विवाह बंधन में बंध गए थे।
संगीता कुछ दिनों तक कुश्ती से दूर रहने के बाद लौट आई है और पति का मनोबल बढ़ाने के साथ साथ खुद भी गंभीर तैयारी में जुट गई है। हाल ही में उसने 62 किलो वर्ग में क्वालिफाइंग मुकाबला जीत कर विश्व चैंपियनशिप में भाग लेने का मौका पाया है।
कोरोना ने किया उलटफेर:
आज यहां खेल परिधान बनाने वाले एसिक्स इंडिया(asics) के ब्रांड एम्बेसडर बजरंग ने एक साक्षात्कार में बताया कि टोक्यो ओलंम्पिक की चूक को वह हमेशा याद रखेगा। चोट के चलते वह देशवासियों को सोने का पदक नहीं दे पाया लेकिन पेरिस खेलों में भरपाई की कोशिश करेगा। उसके साथ एसिक्स के मैनेजिंग डायरेक्टर रजत खुराना भी मौजूद थे।
भारत के लिए एकमात्र ओलम्पिक स्वर्ण विजेता नीरज चोपड़ा को बजरंग ने अभूतपूर्व खिलाड़ी बताया और कहा कि यदि कोई खिलाड़ी नीरज की तरह फिट होता है तो वह कुछ भी कर सकता है, जैसा कि नीरज ने किया। उसके अनुसार यदि ओलंम्पिक 2020 में संभव हो पाता तो नीरज शायद स्वर्ण नहीं जीत पाता क्योंकि तब वह चोट के कारण अस्वस्थ था।
हो सकता है मैरी काम एकऔर पदक जीत जातीं। कोरोना के चलते खेलों का एक साल देरी से संभव हो पाना बढ़ती उम्र वाले खिलाड़ियों के लिए कठिन अनुभव साबित हुआ। बजरंग ने मैरिकाम को महान खिलाड़ी ।बताया और कहा कि वह कभी हार नहीं मानती पर उम्र भी कोई चीज होती है।
ताकि स्कूल न जाना पड़े:
बजरंग देश का ऐसा पहला पहलवान है जिसने विश्व चैंपियनशिप, एशियाई खेलों, कामनवेल्थ खेलों और ओलंम्पिक में शानदार रिकार्ड के साथ पदक जीते हैं। अपनी कुश्ती यात्रा के बारे में उसने बताया कि सात आठ साल की उम्र से अखाड़े जाना शुरू कर दिया था।
तब हरियाणा में बहुत से दंगल होते थे। दंगलों में भाग लेने का चस्का लग गया, क्योंकि स्कूल नहीं जाना पड़ता था। बस दिन रात कुश्ती और स्कूल की छुट्टी।लेकिन आज खेल के साथ साथ पढ़ाई भी जरूरी है। उसने 18 साल की उम्र में विश्व चैंपियनशिप का पदक जीत लिया था लेकिन ओलंम्पिक पदक हमेशा ख्वाबों में रहा और अंततः जीत दिखाया।
दिव्यांग चैंपियन बड़े सम्मान के हकदार:
बजरंग ने पैरालम्पिक में भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन को बड़ी कामयाबी बताया और कहा कि दिव्यांग खिलाड़ी भी बड़े से बड़े सम्मान के हकदार हैं । उनका मनोबल बढ़ाने में किसी तरह की कमी नहीं होनी चाहिए। बजरंग ने उनके जज्बे को सलाम किया और कहा कि उन्हें भी सामान्य खिलाड़ियों जैसा मान सम्मान मिलना चाहिए।