Santosh Trophy Delhi

संतोष ट्राफी: दिल्ली ने उत्तराखंड की बोलती बंद की, फिसड्डी को बुरी तरह पीटा।

क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान

संतोष ट्राफी राष्ट्रीय फुटबाल चैम्पियनशिप के मुकाबले शुरू हो चुके हैं। दिल्ली के नेहरू स्टेडियम में खेले गए दिन के पहले मैच में मेजबान ने उत्तराखंड को 11-1 से हरा कर न सिर्फ पूरे अंक किए अपितु उत्तराखंड की फुटबाल को हैसियत का आईना दिखा दिया।

उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड की फुटबाल पिछले कई सालों से लगातार गर्त में धसक रही है। आज की हार ने राज्य की फुटबाल और उसके खैर ख़्वाहों की कलई खोल कर रख दी है। उन्हें बता दिया है कि सुधर जाओ वरना हालात बद से बदतर हो सकते हैं|

Santosh Trophy captaincy to Gaurav Chadha

इसमें दो राय नहीं कि संतोष ट्राफी अब सिर्फ खाना पूरी रह गई है। फुटबाल फेडरेशन, राज्य इकाइयां और अन्य जिम्मेदार लोग इस आयोजन को ज्यादा भाव नहीं देना चाहते। लेकिन उत्तराखंड की फुटबाल में जो गोरखधंधा चल रहा है उसकी झलक आज खेले गए मैच में साफ दिखाई दी। सही मायने में दिल्ली के सामने एक नौसिखिया टीम खड़ी थी। पता चला है कि पराजित टीम में अधिकांश खिलाड़ी सिफारशी हैं, जिन्होंने खेल का पहला पाठ भी ढंग सेनहीं सीखा।

यह सही है कि फुटबाल फेडरेशन और देश में फुटबाल का कारोबार करने वालों को इस आयोजन से कोई कोई खास लेना देना नहीं है। उनका मकसद बस आई एस एल और आई लीग की सफल मेजबानी है। तो फिर देश के उभरते और समर्पित खिलाडियों को बेवकूफ क्यों बनाया जा रहा है? भले ही महामारी का दौर है, फुटबाल प्रेमी कोई खतरा नहीं उठाना चाहते और बमुश्किल ही मैच देखने आ रहे हैं लेकिन तमाम आयोजन स्थलों से प्राप्त जानकारी से पता चलता है कि संतोष ट्राफी के लिए कहीं कोई उत्साह नजर नहीं बचा। बस खाना पूरी हो रही है। यही कारण है कि उत्तराखंड में बिना किसी लीग आयोजन के राज्य की टीम गठित कर दी गई, जिसमें नेता और ऊंची पहुंच वालों के बच्चे ज्यादा हैं।

आईएसएल और आई लीग पर मेहरबान फेडरेशन को यह नहीं भूलना चाहिए कि कभी इस आयोजन का कद बहुत ऊंचा था और संतोष ट्राफी में खेलना किसी भी उभरते खिलाडी का पहला सपना होता था इसी प्रदर्शन के आधार पर देश की टीम चुनी जाती थी। अब यह आयोजन स्कूल कॉलेज में दाखिले और बहुत छोटी नौकरी पाने के लिए ही बचा है।

तमाम आयोजन स्थलों से प्राप्त शिकायतों को देखते हुए यह तो कहा ही जा सकता है कि राज्य की टीम में चयन को लेकर मारा मारी बढ़ी है। हजारों खिलाडी संतोष ट्राफी में भाग लेना चाहते हैं लेकिन आधी से ज्यादा टीमें जुगाड़ुओं और अवसरवादियों से भरी होती हैं, जिसका जीता जागता उदाहरण उत्तराखंड है। वैसे टीम चयन को लेकर हर राज्य में लड़ाई झगडे और मार पीट आम बात है। कुछ एक में तो मामले कोर्ट कचहरी तक पहुँच गए हैं।

उत्तराखंडी मूल के 12 खिलाड़ी: यहां उत्तराखंड का जिक्र इसलिए बार बार करना पड़ रहा है क्योंकि कभी उत्तराखंड की फुटबाल का बड़ा नाम था। उसके खिलाड़ी देश के कई बड़े कलबों से खेलते रहे हैं। तारीफ की बात यह है कि विजेता दिल्ली की टीम में उत्तराखंडी मूल के 12 खिलाड़ी शामिल हैं जिनमें से ज्यादातर दिल्ली के लीग चैंपियन गढ़वाल हीरोज के लिए खेलते हैं।

संतोष ट्राफी की घटती लोकप्रियता के चलते उत्तराखंड और उसके जैसे कई राज्यों की फुटबाल का पतन गहरी चिंता का विषय है। देखना होगा कि उत्तराखण्ड सरकार का खेल मंत्रालय और खेल विभाग राज्य फुटबाल एसोसिएशन पर क्या कार्यवाही करता हैं।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *