Sorry PM sir, we are not ready for Tokyo Games

Sorry PM sir, We are not ready for Tokyo Games, बदहाल भारतीय खेलों की सुध लें! एक खुला खत।

क्लीन बोल्ड/ राजेंद्र सजवान

आदरणीय प्रधानमंत्री जी,

एक खिलाड़ी, खेल प्रेमी, खेल पत्रकार, खेल समालोचक और वरिष्ठ नागरिक की हैसियत से मैं भारतीय खेलों की बदहाली को लेकर अपने अनुभव आपके साथ शेयर करने का दुस्साहस कर रहा हूँ, जिसके लिए क्षमा चाहता हूँ। चूँकि मैने आजीवन देश के खेलों, खिलाड़ियों और उन्हें तबाह करने वाले खेल प्रशासकों को बहुत करीब से देखा है, इसलिए मेरे पास कहने के लिए बहुत कुछ है पर करने को कुछ भी नहीं।

आपने स्वदेशी और आत्मनिर्भरता का नारा दे कर आम भारतीय में देशभक्ति का जो संचार किया है वह धीमा नहीं पड़ना चाहिए। आप देश के युवाओं को भी लगातार प्रोत्साहित करते रहे हैं लेकिन अपने खिलाड़ियों की बदहाली को देख कर तो यही कहा जा सकता है कि हमारे युवा और खिलाड़ी सही मार्गदर्शन के अभाव में भटक रहे हैं।

भले ही आपकी सरकार खिलाड़ियों के हित में कई योजनाएँ बना रही है, खिलाड़ियों पर पहले के मुक़ाबले ज़्यादा खर्च हो रहा है लेकिन मुझे यह कहते हुए ज़रा भी झिझक नहीं हो रही कि आपके खेल मंत्रालय, भारतीय खेल प्राधिकरण, खेल संघों और भारतीय ओलंपिक संघ में ऐसे लोगों की भारी कमी है, जोकि भारतीय खेलों के बारे में गंभीर जानकारी रखते हैं।

सच तो यह है कि इनमें से ज़्यादातर सिर्फ़ कुर्सी से चिपके रहने और खिलाड़ियों के शोषण के लिए कुख्यात हैं। यदि आप को भरोसा नहीं तो टोक्यो या उसके बाद के ओलंपिक खेलों का इंतजार करें, जहाँ भारतीय खेलों की असलियत उजागर होने वाली है।

एक पदक की भी उम्मीद नहीं:

सर, आपके खेल मंत्री और भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन के संतरी चाहे कोई भी दावा करें, भारत को एक-एक ओलंपिक पदक के लिए खून के आँसू रोने पड़ेंगे। कारण, देश में खेलों का कारोबार करने वाले तमाम सरकारों के सामने झूठ परोसते रहे हैं। रियो ओलंपिक से पहले खेल मंत्री सोनोवाल ने दावे के साथ कहा था कि हम दस से बारह पदक जीत रहे हैं और मिले सिर्फ़ दो।

आदरणीय खेल मंत्री किरण रिजिजू और आईओए अध्यक्ष आदरणीय नरेंद्र बत्रा भी अपने खिलाड़ियों से आशावान हैं। वे भी भारतीय खिलाड़ियों में कई शूरमा देख रहे हैं। ज़रा उनसे भी पूछ लें की कौन कौन खिलाड़ी पदक के दावेदार हो सकते हैं। जाने माने खेल विशेषज्ञ और पूर्व चैम्पियन अपने खिलाड़ियों की उम्मीदों को किसी और चश्मे से देख रहे हैं। उन्हें नहीं लगता कि टोक्यो ओलंपिक में हम कुछ ख़ास करने जा रहे हैं। कुछ और अपयश और बटोर सकते हैं।

खेल महाशक्ति कैसे बनेंगे?

खेल मंत्रालय और खेल प्राधिकरण ने तो बाक़ायदा यह नारा भी उछाल दिया है की 2028 के ओलंपिक से भारत खेल महाशक्ति के रूप में लौटेगा। अर्थात हमारा खेल स्तर और नतीजे देश का गौरव बढाने वाले रहेंगे, ठीक वैसे ही जैसे अमेरिका और चीन ओलंपिक में अव्वल रहे हैं।

उनके अलावा जर्मनी, रूस, जापान, कोरिया, इटली, इंग्लैंड, ब्राज़ील और लगभग पचास अन्य देश ओलंपिक पदक तालिका में भारत से बहुत आगे चल रहे हैं। तो क्या हम आने वाले सात-आठ सालों में सुपर पावर बनने वाले हैं? पता नहीं कौनसा जादुई चिराग हाथ लग गया है! सालों साल एक एक पदक के लिए तरसते रहे हैं और अब शेखचिल्ली जैसी बातें की जा रही हैं।

चीन को कैसे पछाड़ेंगे?

दुनिया में चीन हमारे सबसे बड़े दुश्मन के रूप में खड़ा है, जिसको आपने अपनी और अपने योग्य अधिकारियों की सूझबूझ से कड़ी टक्कर दी है। व्यापार, व्यवसाय, तकनीकी और अन्य छेत्रों में चीन के एकाधिकार से टक्कर लेने का आपने साहस दिखाया, जिसकी पूरी देश तारीफ कर रहा है। लेकिन खेलों में हम चीन के मुक़ाबले सौ साल पीछे चल रहे हैं। चीन एशियाई खेलों में पचास फीसदी स्वर्ण लूट ले जाता है|

ओलंपिक में भी उसको सिर्फ़ अमेरिका टक्कर देता है। रही भारत की बात तो हम उसके सामने मेमने बन कर रह जाते हैं। बेशक, हम हर फील्ड में चीन को करारा जवाब दे सकते हैं पर खेल मैदान में हमारे खिलाड़ी उसके सामने फिसड्डी हैं। ऐसा क्यों? क्योंकि खेल के क्षेत्र में हम भ्रष्ट अवसरवादियों से घिरे हैं। जिन लोगों के हाथ खेलों की कमान है उनमे से ज़्यादातर योग्य नहीं हैं और उँची पहुँच से उच्च पदों पर बैठे हैं या उनके पास योजना का अभाव है। कम से कम अब तक के नतीजे तो यही कहते हैं।

युवा शक्ति का अपमान:

अमेरिका, चीन, कोरिया, जापान जैसेदेश यदि खेलों में आगे हैं तो सीधा सा मतलब है कि उनके बच्चे और युवा सही हाथों में हैं और उनका शिक्षण प्रशिक्षण ठीक ठाक हो रहा है। यूँ भी कह सकते हैं कि उनकी युवा पीढ़ी में दम है। यही युवा जब अलग अलग छेत्रों में उतरते हैं तो देश का गौरव बढ़ाने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता।

और हमारे युवा, उनका हाल यह है कि हॉकी में ओलंपिक स्वर्ण जीते 40 साल हो गए हैं, फुटबाल में 58 साल पहले एशियाई खेलों का स्वर्ण जीता था और एथलेटिक में सौ सालों में भी ख़ाता नहीं खुला। सीधा सा मतलब है कि देश में खेलों का कारोबार करने वाले युवा पीढ़ी को गुमराह कर रहे हैं। वरना क्या कारण है कि हमारे डाक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, लेखक, साहित्यकार और युवा फ़ौजी दुनियाभर में आदरणीय और अव्वल हैं और खिलाड़ी हेय दृष्टि से देखे जाते हैं?

स्वदेशी कोच क्यों नहीं?प्रधानमंत्री जी, आपके स्वदेशी नारे की भारतीय खेलों में लगातार अनदेखी हो रही है। करोड़ों के विदेशी कोच क्यों अनुबंधित किए जा रहे हैं,यह समझ नहीं आ रहा, जबकि हमारे तमाम ओलंपिक पदक विजेता, एशियन और वर्ल्ड चैम्पियन खिलाड़ी हमारे अपने गुरुओं और कोचों की देन रहे हैं। यह गहरी जाँच का विषय है। पिछले चालीस सालों से गोरे और अन्य विदेशी हमारे खिलाड़ियों को लूट रहे हैं| फिरभी खेल मंत्रालय और आईओए को विदेशी क्यों भाते हैं?

खिलाड़ियों को रोज़गार दें:

आप जानते हैं कि भूखे पेट भजन नहीं हो पता। तो भला खेल कैसे होगा! देश के कई लाख राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बेरोज़गार है। नतीजन उनका खेल से विश्वास उठने लगा है| यदि उनकी रोज़ी रोटी का इंतज़ाम हो पाए तो खेल के प्रति उनकी आस्था बढ़ेगी। ऐसे में जबकि आप देशभर में रोज़गार की व्यवस्था कर रहे हैं, खिलाड़ियों केलिए भी खेल कोटा ज़रूर निर्धारित करें। हर अच्छे खिलाड़ी को रोज़ी रोटी का नारा भी दे डालें। हो सकता है खेल का स्तर भी सुधर जाए।

बदहाल खेल पत्रकार :

कोरोना काल का सबसे ज़्यादा असर यदि किसी पर पड़ा है तो वह निसंदेह खेल पत्रकार है। खेल गतिविधियाँ ठप्प हो जाने के कारण अख़बार मालिकों ने उसे किसी लायक नहीं समझ कर दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल बाहर फेंका। कई अख़बार बंद हुए, हज़ारों पत्रकारों की नौकरियाँ गईं, जिनमे खेल से जुड़े पत्रकारों को किसी काम का नहीं समझा गया। सालों साल खेल और खिलाड़ियों की सेवा करने वाले कलम के सिपाही आज मर मर कर जी रहे हैं। वे नहीं रहे तो दम तोड़ रहे भारतीय खेल बिल्कुल भी नहीं रहेंगे, नहीं बचेंगे।

राजेंद्र सजवान
वरिष्ठ खेल पत्रकार

3 thoughts on “Sorry PM sir, We are not ready for Tokyo Games, बदहाल भारतीय खेलों की सुध लें! एक खुला खत।”

  1. बिल्कुल सही लिखा है आपने, भारत दूर दूर तक ओलिम्पिक पदकतालिक में नही दिखता। हम ख्वाबों की दुनिया मे जी रहे हैं और ख़्वाबों में ही पदक लाएंगे।

  2. Harpal singh Flora

    बिल्कुल सही लिखा है आपने, भारत दूर दूर तक ओलिम्पिक पदकतालिक में नही दिखता। हम ख्वाबों की दुनिया मे जी रहे हैं और ख़्वाबों में ही पदक लाएंगे।

  3. Devinder Kumar Kansal

    Great pioneer attempt to attract attention to sports promotion in India in a scientific manner.
    Indisn Sports universities are just by name sports universities without conducting any courses like B.A. Sports, B.Sc. Sports Science, B.Tech Sports, B.Com.Sports, M.Sc. Sports Science, M.Sc. Sports Physiology, M.Sc.Sports Medicine, M.Sc. Sports Biomechanics, M.Sc. Sports Psychology, MA Sporsts History, MA Sports Politics etc.etc.as well as Doctorate in each sports specialization.

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